कांग्रेस : अहम और सुनहरे अतीत पर टिका वहम हुए चकनाचूर
नेतृत्व परिवर्तन अनिवार्य, अभी नहीं तो कभी नहीं
हिन्दुस्तान की सबसे बुजुर्ग पार्टी कांग्रेस अपना अस्तित्व बचाने के लिए जूझ रही है। पांच राज्यों में हुए चुनाव के नतीजे कांग्रेस के लिए 440 वाट का झटका साबित हुए है। पंजाब की सत्ता भी कांग्रेस के हाथों से खिसक गई है, यानी अब देश में सिर्फ दो राज्यों में कांग्रेस सत्ता पर काबिज है। हालांकि अन्य तीन राज्यों में कांग्रेस गठबंधन की सरकार है। वर्तमान स्थिति ये है कि पार्टी की विश्वसनीयता और नेतृत्व, दोनों सवालों के घेरे में है। स्पष्ट दिख रहा है कि लगातार मिल रही पराजय से कांग्रेस का जमीनी कार्यकर्ता उदास है और हौंसला पस्त। पार्टी के पास फिलवक्त न दिशा है, न मजबूत चेहरा और न ही कोई ठोस रणनीति। सर्वविदित है की पार्टी का असल मर्ज बड़े नेताओं का बड़ा अहम और सुनहरे अतीत पर टिका उनका वहम है। मंथन और मंत्रणा तो खूब होती है पर किसी नतीजे पर पहुंच पार्टी की स्थिति सुधरती नज़र नहीं आ रही। पार्टी अपनी गलतियों, कमियों को दूर करने की बजाय उन्हें दोहराती जा रही है। ये कांग्रेस के लिए अलार्मिंग सिचुएशन है, यदि परिस्थितियों को अभी पक्ष में न किया गया तो फिर ये कभी नहीं हो पाएगा।
पांच राज्यों में मिली करारी शिकस्त के बाद कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने ट्विटर पर लिखा कि जनता के फैसले को विनम्रता से स्वीकार करें। हम इस हार से सीखेंगे। यहां सवाल ये है कि आखिर कांग्रेस को और कितना सीखना बाकी है। 137 साल पुरानी बुजुर्ग पार्टी के लिए ये संकेत अच्छे नहीं है। मई 2014 के लोकसभा चुनाव में जब पीएम मोदी सत्ता में आए थे तब कांग्रेस शासित राज्यों की संख्या नौ थी जो अब दो है। पार्टी 2014 के बाद से 45 में से सिर्फ पांच चुनाव जीत पाई है। लग रहा है कि कांग्रेस के साथ बुरा होना यही नहीं थमेगा। विधानसभा चुनावों में हारने वाली कांग्रेस को अब राज्यसभा में भी तगड़ा झटका लगने वाला है। कांग्रेस के हाथ से राज्यसभा में विपक्ष की नेता का दर्जा भी जा सकता है। इस साल राज्यसभा के लिए द्विवार्षिक चुनाव होने के बाद, कांग्रेस के सदस्यों की संख्या में ऐतिहासिक गिरावट देखने को मिल सकती है। ऐसे में विपक्ष के नेता की स्थिति को बनाए रखने के लिए वह जरूरी संख्या के काफी नजदीक आ जाएगी। अगर पार्टी इस साल के अंत में हिमाचल और गुजरात चुनावों और अगले साल कर्नाटक विधानसभा चुनावों में अच्छा प्रदर्शन करने में असमर्थ रही तो राज्यसभा में विपक्ष की नेता का दर्जा भी खो देगी।
नेतृत्व पर सवाल, कब होगा बदलाव :
पार्टी की परफॉरमेंस के चर्चे बाहर ही नहीं अंदर भी खूब हो रहे है। आत्ममंथन के लिए हुई पार्टी की बैठक में कुछ बड़े नेताओं ने सीधे तौर पर पार्टी के नेतृत्व को आढ़े हाथों लिया है। सम्भवतः पार्टी में आपसी अंतर्कलह अभी और अधिक बढ़ सकता है। इस बीच जी 23 के नेताओं की बैठक भी हुई है जिससे आगामी दिनों में पार्टी के भीतर ही अंतर्कलह बढ़ता दिख रहा है। वहीँ शशि थुरूर सहित कई बड़े नेताओं ने पार्टी में परिवर्तन अनिवार्य बताया है।
आधे राज्यों में भाजपा सरकार :
भाजपा देश के 18 राज्यों में अपनी सरकार बरकरार रखने में कामयाब रही है। इन राज्यों में देश की करीब 50 फीसदी आबादी रहती है। यानी, देश की करीब आधी आबादी वाले राज्यों में भाजपा की सरकार हैं। वहीं, कांग्रेस की सरकार अब पांच राज्यों तक ही सिमटकर रह गई है। इनमें भी केवल दो राज्य ऐसे हैं, जहां कांग्रेस ने पूर्ण बहुमत के साथ सरकार बनाई जबकि तीन राज्यों में गठबंधन की सरकार है। इसी साल दो राज्यों में विधानसभा चुनाव होने है, गुजरात व हिमाचल प्रदेश। गुजरात में कांग्रेस कमजोर दिख रही है और निकाय चुनाव में आम आदमी पार्टी की एंट्री ने उसकी चिंता और बढ़ा दी है। जबकि हिमाचल में भी आप की एंट्री कांग्रेस को भारी पद सकती है।
ये है हाल -ए -कांग्रेस :
माना जा रहा है की संगठनात्मक रूप से कमजोर ढांचा, आधी अधूरी चुनावी तैयारियां, राष्ट्रीय नेताओं का चुनाव प्रचार में रुचि न लेना और राज्य के नेताओं के आपसी मतभेद कांग्रेस की नैया डुबोने के अहम कारण रहे। चुनावों से पहले पंजाब में कांग्रेस की सरकार थी जबकि उत्तराखंड, गोवा और मणिपुर में कांग्रेस मुख्य विपक्षी पार्टी थी। इन चार राज्यों में सत्ता वापसी करने का कांग्रेस के पास मौका था। सबसे बड़े राज्य यूपी की अगर बात करें तो कांग्रेस ने यहां 399 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे। 399 में से कांग्रेस को केवल दो सीटों पर जीत हासिल हुई और सिर्फ चार सीटों पर पार्टी के प्रत्याशी दूसरे नंबर पर रहे। राज्य में कांग्रेस की सिर्फ सीट ही कम नहीं हुई है बल्कि वोट शेयर में भी बड़ी गिरावट देखी गई है। 2017 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी को 6.25 प्रतिशत वोट मिले थे। तब कांग्रेस समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन में चुनावी मैदान में उतरी थी। इस बार एकला चलो रे की नीति रणनीति को अपनाते हुए पार्टी सिर्फ 2.33 प्रतिशत मत ही हासिल कर पाई है।
