जिला मंडी की दस सीटों में निकलता दिख रहा कांग्रेस का दम
प्रदेश में वीरभद्र सिंह की सरकार थी और 2017 के विधानसभा चुनाव का ऐलान हो चुका था। 9 नवंबर मतदान का दिन मुकर्रर था और कांग्रेस मिशन रिपीट के लिए एड़ी चोटी का जोर लगा रही थी। पर उससे ठीक पहले 14 अक्टूबर को कांग्रेस को बड़ा झटका लगा। दिग्गज नेता पंडित सुखराम अपने बेटे और वीरभद्र सरकार के मंत्री अनिल शर्मा के साथ भाजपाई हो गए। अनिल शर्मा को भाजपा ने मंडी सदर सीट से टिकट दिया और जीत दर्ज कर वे जयराम कैबिनेट में मंत्री भी बन गए। हवा ऐसी बदली कि मंडी सदर सहित जिला मंडी में सभी 10 सीटें कांग्रेस हार गई। कैबिनेट मंत्री कौल सिंह ठाकुर और प्रकाश चौधरी भी चुनावी मैदान में धराशाई हो गए। तब से डी रेल हुई कांग्रेस की गाड़ी अब तक पटरी पर लौटती नहीं दिख रही। हालहीं में हुए मंडी संसदीय क्षेत्र के उपचुनाव में भी होलीलॉज के तिलिस्म के सहारे जैसे - तैसे कांग्रेस जीत तो गई लेकिन हकीकत ये है कि जिला मंडी की नौ में आठ सीटों पर भाजपा को बढ़त मिली थी। वहीँ इससे पहले हुए नगर निगम चुनाव हो या जिला परिषद चुनाव, कांग्रेस की बुरी गत किसी से छुपी नहीं है। 2019 के लोकसभा चुनाव में तो कांग्रेस प्रत्याशी को चार लाख से अधिक के रिकॉर्ड अंतर से हार का सामना करना पड़ा था। करीब सात माह में विधानसभा चुनाव है और कांग्रेस के सामने मंडी में बेहतर करने की विराट चुनौती है। अगर मंडी में कांग्रेस ठीक -ठाक भी नहीं कर पाई तो सत्ता वापसी का ख्वाब पूरा होना मुश्किल है।
उधर, मंडी में भाजपा के हौसले बुलंद है। साधन, संसाधन और संगठन के तराजू में तोले तो भाजपा का पलड़ा निसंदेह भारी है। सीएम जयराम ठाकुर के गृह जिला में भाजपा कोई कसर छोड़ती नहीं दिख रही। इस पर जयराम को मंडी का सीएम कहना भी कांग्रेस को भारी पड़ता दिख रहा है। अब तक जयराम ठाकुर मंडी के साथ कनेक्ट करते दिखे है और यदि प्रो इंकम्बैंसी लहर चली तो कांग्रेस का सफाया तय होगा।
वहीं आम आदमी पार्टी की एंट्री ने चुनावी समर को और दिलचस्प बना दिया है। 6 अप्रैल को पार्टी के राष्ट्रीय संयोजक अरविंद केजरीवाल और पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान मंडी से ही मिशन हिमाचल का आगाज करेंगे। यदि बदलाव के लिए मिलने वाले वोट में भी आप सेंध लगा पाई तो कांग्रेस का खेल खराब कर सकती है। जाहिर है आप के आने से अब कांग्रेस को दोहरी चुनौती का सामना करना पड़ रहा है।
जड़े गहरी, पर दिग्गजों को साथ आना होगा !
समय बेशक कुछ खराब चल रहा हो पर मंडी में कांग्रेस की जड़े बहुत मजबूत है। न तो कौल सिंह ठाकुर जैसे कद्दावर नेता को कम आंका जा सकता है और न ही पंडित सुखराम के परिवार को। पर क्या अनिल शर्मा की कांग्रेस में घर वापसी होगी या भाजपा से गीले शिकवे दूर होंगे, ये बड़ा सवाल है। चर्चा आम आदमी पार्टी को लेकर भी हो रही है। इन दोनों के अलावा ये भी जहन में रखना होगा कि अब प्रतिभा सिंह मंडी संसदीय क्षेत्र से सांसद है। विधानसभा चुनाव में उनकी भूमिका भी काफी कुछ तय कर सकती है। ये दिग्गज अगर एक साथ आते है तो कांग्रेस को कमतर आंकना विरोधियों के लिए भूल हो सकती है, पर यदि ऐसा नहीं होता तो 2017 की कहानी दोहराई भी जा सकती है।
