इस बार सत्ता के साथ नहीं गया जिला चंबा

2012 की तरह ही इस बार फिर जिला चम्बा सत्ता के साथ नहीं गया है। जिला की पांच में से तीन सीटों पर भाजपा ने बाजी मारी है, लेकिन सरकार कांग्रेस की बनी है। इन दो मौकों को छोड़ दिया जाएँ तो लम्बे समय से ये सिलसिला रहा है कि प्रदेश में जिसकी सरकार बनती है वो ही पार्टी चंबा में भी बाजी मारती है। आंकड़ों पर निगाह डाले तो भाजपा के अस्तित्व में आने के बाद 1982 से 2022 तक हिमाचल प्रदेश में 10 विधानसभा चुनाव हुए, जिनमें से आठ बार प्रदेश में उसी दल या गठबंधन की सरकार बनी है जिसने जिला चंबा में बढ़त हासिल की है। इस बार चम्बा जिला में चम्बा सदर और भटियात सीट पर कांग्रेस ने बाजी मारी है, तो भरमौर, डलहौज़ी और चुराह में भाजपा जीती है। वहीं 2017 के चुनाव की बात करे तो भाजपा ने शानदार प्रदर्शन करते हुए चार सीटें जीती थी, जबकि केवल एक सीट डलहौजी पर कांग्रेस को जीत मिली थी।
इस बार भाजपा ने चार सीटिंग विधायकों में से सिर्फ दो को मैदान में उतारा था और दो नए चेहरों को मौका दिया। 2017 में चुराह से हंसराज, चम्बा सदर से पवन नय्यर, भरमौर से जिया लाल और भटियात से विक्रम जरियाल, भाजपा टिकट पर जीत कर विधानसभा पहुंचे थे। पर इस बार इनमें से दो का रास्ता भाजपा ने टिकट आवंटन के साथ ही रोक दिया। चुराह से हंसराज और भटियात से विक्रम जरियाल को तो भाजपा ने टिकट दिया, लेकिन चम्बा सदर से सीटिंग विधायक पवन नैय्यर और भरमौर से सीटिंग विधायक जियालाल का टिकट काट दिया। भरमौर से पार्टी ने डॉ जनकराज को मैदान में उतारा, तो सदर सीट पर नाटकीय घटनाक्रम के बाद निवर्तमान विधायक की पत्नी नीलम नय्यर को टिकट दिया गया। वहीँ डलहौजी से भाजपा ने एक बार फिर आशा कुमारी के खिलाफ डीएस ठाकुर को मैदान में उतारा था। उधर कांग्रेस ने चार पुराने प्रत्याशी उतारे थे और एक नए चेहरे को मौका दिया गया। डलहौज़ी से आशा कुमारी, सदर सीट से नीरज नय्यर, भरमौर से ठाकुर सिंह भरमौरी, भटियात से कुलदीप सिंह पठानिया को कांग्रेस ने फिर मैदान में उतारा, जबकि चुराह सीट से पार्टी ने यशवंत खन्ना को मौका दिया।
भरमौर: भरमौरी के अनुभव पर भारी पड़े डॉ जनकराज
मंडी संसदीय उपचुनाव में भरमौर विधानसभा सीट पर कांग्रेस को लीड मिली थी, लेकिन विधानसभा चुनाव में उल्टा हुआ। दरअसल, इस बार भाजपा ने यहाँ से सीटिंग विधायक जियालाल का टिकट काट कर नए चेहरे के तौर पर आईजीएमसी के एमएस रहे डॉ जनकराज को टिकट दिया, तो उधर कांग्रेस ने अपने अनुभवी चेहरे ठाकुर सिंह भरमौरी को ही मैदान में उतारा था। डॉ जनकराज ने यहाँ करीब पांच हजार वोट के अंतर से ठाकुर सिंह भरमौरी को पटकनी दी और अपने पहले ही चुनाव में विधानसभा की चौखट चढ़ने में कामयाब रहे। डॉ जनकराज ने आईजीएमसी शिमला में सेवाएं देते हुए हमेशा चम्बा वालों का विशेष ख्याल रखा है। कहते है अगर उनके क्षेत्र से कोई अनजान व्यक्ति भी मदद के लिए उनके पास शिमला पंहुचा तो उन्होंने तन-मन -धन से हमेशा सहायता की। चुनाव प्रचार के दौरान भी डॉ जनकराज फील्ड में बीमारों का उपचार करते दिखे। उनकी सादगी और आम लोगों से जुड़ाव ठाकुर सिंह भरमौरी के लम्बे अनुभव पर भारी पड़ गया।
भरमौर में कांग्रेस टिकट को लेकर भी खींचतान थी। युवा कांग्रेस महासचिव सुरजीत भरमौरी भी यहाँ टिकट के दावेदार थे, पर पार्टी ने ठाकुर सिंह भरमौरी के अनुभव पर भरोसा जताया। अलबत्ता यहाँ कांग्रेस में खुलकर बगावत न हुई हो लेकिन माना जा रहा है कि सुरजीत के समर्थक इससे खफा थे। जो फ्लोटिंग वोट डॉ जनकराज के साथ गया है, संभवतः सुरजीत उसमें सेंध लगा सकते थे।
डलहौजी : विधानसभा नहीं पहुंची सीएम पद की दावेदार
2017 में जब जिला चम्बा की चार विधानसभा सीटों पर भाजपा ने फतेह हासिल की थी ,तब डलहौज़ी विधानसभा सीट एक मात्र ऐसी सीट थी जहाँ कांग्रेस को जीत मिली थी। पर इस बार चुनाव शुरू होने के साथ ही डलहौजी में आशा कुमारी के हारने के कयास लग रहे थे। हालांकि आशा कुमारी सीएम पद के दावेदारों में शुमार थी और उनके समर्थक उन्हें भावी सीएम के तौर पर प्रमोट भी कर रहे थे। किन्तु जनता ने बदलाव का मन बना लिया था और आशा कुमारी को यहाँ करीब दस हजार वोट के बड़े अंतर से हार का सामना करना पड़ा। परिसीमन बदलने से पहले डलहौज़ी विधानसभा सीट बनीखेत के नाम से जानी जाती थी। इस सीट पर आशा कुमारी का दबदबा रहा है। 1985 से आशा कुमारी यहाँ पांच बार विधायक रही है। 1990 और 2007 के बाद इस बार फिर भाजपा इस सीट पर कमल खिलाने में कामयाब रही है। इस बार भाजपा से फिर डीएस ठाकुर मैदान में थे जिन्होंने पिछले चुनाव में भी आशा कुमारी को कड़ी टक्कर दी थी।
आशा कुमारी प्रदेश कांग्रेस का बड़ा नाम है और विधानसभा चुनाव में स्टार प्रचारक भी थी। किन्तु पुरे चुनाव में आशा कुमारी अपने निर्वाचन क्षेत्र तक सिमित रही। संभवतः उन्हें अंदाजा था कि उनकी राह आसान नहीं होने वाली। हालांकि आशा कुमारी के प्रयास अंत में सफल सिद्ध नहीं हुए।
चुराह : हंसराज की हैट्रिक
चुराह विधानसभा सीट पर इस बार कांग्रेस ने एक नए चेहरे यशवंत सिंह खन्ना को मैदान में उतारा था। जबकि अपने बयानों से चर्चा में रहने वाले चुराह के सिटींग विधायक हंसराज भाजपा से एक बार फिर मैदान में थे। माहिर मान रहे थे कि इस बार हंसराज के लिए विधानसभा पहुंचना मुश्किल हो सकता है, किन्तु ऐसा हुआ नहीं। हंसराज ने करीब ढाई हजार के अंतर से चुनाव जीत इस बार हैट्रिक लगा ली है। परिसीमन बदलने से पहले चुराह विधानसभा सीट राजनगर के नाम से जानी जाती थी। इस सीट पर भाजपा और कांग्रेस दोनों ही राजनीतिक दलों को जनता का बराबर प्यार मिला है। 2012 में हंसराज पहली दफा मैदान में उतरे और जीत गए। 2017 में भी हंसराज ने ही रिपीट किया, और इस मर्तबा तीसरी बार जीते।
चुराह के जातीय समीकरणों का लाभ तो हंसराज को मिलता ही है, साथ ही उनकी छवि भी काम करने वाले नेता की है। निर्वाचन क्षेत्र के बाहर के लोगों के लिए हंसराज उनके विवादित बयानों की वजह से चर्चा का केंद्र रहते है, लेकिन क्षेत्र में उनकी छवि दमदार नेता की है।
चम्बा : हर्ष महाजन गए और कांग्रेस आ गई !
चम्बा सदर सीट पर इस बार सबकी निगाहें टिकी थी। कभी वीरभद्र सिंह के बेहद करीबी रहे हर्ष महाजन चुनाव से पहले भाजपा में शामिल हो गए थे। हर्ष महाजन 1993 से 2007 तक तीन बार चंबा विधानसभा क्षेत्र से विधायक रहे है। तीन दफा जीत की हैट्रिक लगाने के बाद महाजन ने पूर्व मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह के चुनावों का जिम्मा संभाला। तब से महाजन चुनावी राजनीति से दूर ही रहे, लेकिन इत्तेफाक ये रहा कि तब से चम्बा सदर सीट पर कांग्रेस को लगातार हार का सामना ही करना पड़ रहा था। अब महाजन इस बार भाजपा में गए, तो भाजपा हार गई। इस सीट पर टिकट आवंटन के बाद से भाजपा असहज दिखी। पहले पार्टी ने इंदिरा कपूर को टिकट दिया लेकिन सीटिंग विधायक पवन नैय्यर के विद्रोह के चलते अंतिम समय में उनकी पत्नी नीलम नय्यर को टिकट दे दिया। इसके बाद इंदिरा कपूर भी बगावत कर मैदान में उतर गई। उधर कांग्रेस ने पिछला चुनाव लड़े नीरज नैय्यर को फिर मैदान में उतारा। नीरज सात हजार से अधिक मतों के अंतर से चुनाव जीत गए।
भाजपा में हुई बगावत का लाभ यहाँ नीरज नय्यर को मिला। साथ ही नीरज बीते पांच साल से लगातार मैदान में थे जिसका लाभ भी उन्हें मिला। वहीं भाजपा का विधायक की पत्नी को टिकट देना पार्टी के भीतर भी कुछ लोगों को नहीं जमा। कांग्रेस को परिवारवाद पर घेरने वाली भाजपा चम्बा में परिवारवाद की ध्वजवाहक बन गई।
भटियात : कांग्रेस जीती, अब मंत्री पद की आस
भटियात विधानसभा सीट पर इस बार दो पुराने प्रतिद्वंदी एक बार फिर आमने-सामने थे। भाजपा से यहाँ सीटिंग विधायक विक्रम जरियाल मैदान में थे, तो कांग्रेस से कुलदीप पठानिया। पिछले नतीजों पर गौर करे तो यहाँ विक्रम जरियाल लगातार दो बार कमल खिलाने में सफल रहे थे। कुलदीप 2012 में सिर्फ 112 वोट से हारे थे, जबकि 2017 में ये अंतर सात हजार के करीब था। पर इस बार कुलदीप पठानिया को जीत मिली और उन्होंने जरियाल को करीब पंद्रह सौ वोट से शिकस्त दी।
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता कुलदीप सिंह पठानिया मंत्री पद के भी दावेदार है। माना जा रहा है कि उन्हें मंत्री पद या विधानसभा स्पीकर -डिप्टी स्पीकर में से कोई पद मिल सकता है। 2017 में भाजपा को चार सीटें देने वाले जिला चम्बा को तब विधानसभा उपाध्यक्ष का पद मिला था। क्या अब जिला में कांग्रेस को दो सीटें मिलने के बावजूद चम्बा को मंत्री पद मिलेगा, इस पर सबकी निगाहें टिकी है।