100 दिन संगठन बिन ....हिमाचल में हाल-ए-कांग्रेस !

- 6 नवम्बर से न प्रदेश कार्यकारिणी और न जिला व ब्लॉक अध्यक्ष !
- दिग्गज नेताओं को भी खल रही आलाकमान की लेट लतीफी, उठने लगी आवाजें !
- दिन-ब-दिन आक्रामक होती दिख रही बीजेपी और कांग्रेस बेसंगठन !
अलबत्ता, सन्नाटा चौधरी चंद्र कुमार ने भंग कर दिया हो, लेकिन कांग्रेस आलाकमान की निद्रा अभी भी नहीं टूटी। सौ दिन से ज्यादा हो गए हैं हिमाचल में कांग्रेस के संगठन को भंग हुए, मगर आलाकमान अब भी किसी जल्दबाजी में नहीं दिख रहा। शायद हिमाचल में सरकार होने की तसल्ली के आगे संगठन की गैरमौजूदगी पार्टी को खल ही नहीं रही। कांग्रेस की इस हाल-ए-हालत पर गोपाल दास नीरज की कुछ पंक्तियाँ मौजूं हैं ....हम खड़े-खड़े बहार देखते रहे ...कारवां गुजर गया, गुबार देखते रहे ......
आलाकमान का यही सुस्त रवैया बरकरार रहा तो डर है हिमाचल में भी कांग्रेस के हिस्से रह जाएगा सिर्फ गुबार।
करीब 140 साल पुरानी कांग्रेस आज अपने सबसे बुरे दौर से गुजर रही है। ताजा दौर की बात करें तो महाराष्ट्र, हरियाणा और दिल्ली में पार्टी को शर्मनाक हार मिली है। 16 साल से केंद्र की सत्ता से पार्टी दूर है और अब ले-देकर महज तीन राज्यों में पार्टी की सरकार है, जिनमें से एक हिमाचल प्रदेश है। हैरत की बात यह है कि इस हिमाचल प्रदेश में भी पिछले सौ दिन से पार्टी का संगठन नहीं है। 6 नवंबर को पार्टी आलाकमान ने पीसीसी चीफ प्रतिभा सिंह के अलावा समस्त प्रदेश कार्यकारिणी तथा सभी जिला और ब्लॉक इकाइयाँ भंग कर दी थीं और तब से नई कार्यकारिणी का इंतजार बना हुआ है। पार्टी मुख्यालय में सन्नाटा पसरा है और पार्टी के बड़े चेहरे भी अब इस लेट-लतीफी पर आवाज बुलंद करने लगे हैं।
कांग्रेस हिमाचल में संगठन की नियुक्तियों के लिए नया फार्मूला इस्तेमाल कर रही है। इसके मुताबिक अब प्रदेश अध्यक्ष को मर्जी की टीम नहीं मिलेगी, बल्कि ऑब्जर्वर की रिपोर्ट के आधार पर संगठन में ताजपोशी होगी। संगठन भंग करने के बाद आलाकमान ने सभी 12 जिलों और चारों संसदीय क्षेत्रों में पर्यवेक्षक नियुक्त किए हैं, ताकि जमीनी फीडबैक मिल सके। ये पर्यवेक्षक अपनी रिपोर्ट आलाकमान को सौंप चुके हैं, बावजूद इसके नई कार्यकारिणी का गठन नहीं हुआ है। अब आलाकमान की इस लेट-लतीफी से पार्टी का आम वर्कर जरूर मायूस दिख रहा है।
अब बात करते हैं कांग्रेस के असल मर्ज की। सर्वविदित है कि हिमाचल कांग्रेस में कई गुट हैं, लेकिन मोटे तौर पर सुक्खू गुट और होली लॉज कैंप के अलावा मुकेश अग्निहोत्री की अपनी एक अलग लॉबी दिखती है। हालांकि, अग्निहोत्री बेहद संतुलित ढंग से सियासत करते दिखे हैं, लेकिन जाहिर है वे भी अपने समर्थकों को संगठन के अहम ओहदों पर एडजस्ट करना चाहेंगे। आलाकमान भी इससे अवगत है और पार्टी के जहन में हरियाणा भी होगा, जहाँ गुटबाजी कांग्रेस को ले बैठी। हरियाणा में अर्से से पार्टी संगठन तक नहीं बना पा रही है। ऐसे में लाजमी है आलाकमान भी फूंक-फूंक कर कदम बढ़ाए और संतुलन सुनिश्चित करे।
वहीं दूसरी ओर, प्रदेश भाजपा ने 18 लाख नए सदस्य बनाने के साथ-साथ नए ब्लॉक और जिला अध्यक्ष चुन लिए हैं। नई ऊर्जा से लबरेज बीजेपी, कांग्रेस सरकार को हर मुद्दे पर जोरदार ढंग से घेर रही है। मगर सरकार को डिफेंड करने के लिए कांग्रेस के पास कोई पदाधिकारी नहीं बचा। संगठन की मजबूती किसी भी राजनीतिक दल की असली ताकत होती है, और अगर कांग्रेस इसे नजरअंदाज करती रही, तो हिमाचल में उसकी पकड़ और भी कमजोर होगी।