कांग्रेस में हूँ और रहूँगा, जीवन के अंत तक धर्मशाला ही मेरी कर्मभूमि : सुधीर
मंत्री रहते हुए सुधीर शर्मा ने धर्मशाला के हक की आवाज हमेशा बुलंद की। स्मार्ट सिटी मिलने की बारी आई तो धर्मशाला तो तरजीह मिली, नगर निगम की बारी आई तो भी धर्मशाला को तरजीह मिली। विकास हुआ भी और दिखा भी, पर 2017 के चुनावी इम्तिहान में सुधीर फेल हो गए। फिर 2019 के उपचुनाव का मौका आया तो सुधीर मैदान में ही नहीं उतरे और नतीजन कांग्रेस की जमानत जब्त हो गई। नगर निगम चुनाव में भी कांग्रेस पिट गई। अब फिर विधानसभा चुनाव का काउंटडाउन शुरू है और सुधीर शर्मा मैदान में है। पर इस बीच उन्हें लेकर कई तरह की चर्चाएं आम है। इनमें क्या हकीकत है और क्या फ़साना, फर्स्ट वर्डिक्ट मीडिया ने खुद सुधीर शर्मा से जाना। सुनैना कश्यप ने सुधीर शर्मा से विशेष बातचीत की, कई तीखे सवाल किये और सुधीर ने बेबाकी से अपना पक्ष रखा। पेश है बातचीत के मुख्य अंश ...
सवाल : 2019 के उपचुनाव में मैदान में क्यों नहीं उतरे आप ?
जवाब : देखिये 2019 का जब उपचुनाव आया तो उस दौरान कई तरह की बाते थी। उस दौरान मेरा स्वास्थ्य ठीक नहीं था और इस बारे में मैंने हाईकमान को भी बताया था और स्वास्थ्य कारणों के चलते मैं उपचुनाव नहीं लड़ पाया। उस समय परिणाम जो भी रहे हो कांग्रेस पार्टी ने अपनी तरफ से पूरी ताकत झोंकी थी लेकिन जो सत्तारूढ़ दल होता है कई बार उसका वर्चस्व रहता है। तब सरकार भी नई थी और इसीलिए परिणाम हमारे अनुकूल रहे।
सवाल : सबके मन में एक ही सवाल है, क्या सुधीर शर्मा आगामी विधानसभा चुनाव लड़ेंगे और लड़ेंगे तो कहाँ से लड़ेंगे ?
जवाब : देखिये बहुत सारी चर्चाएं रहती है, कोई कहता है कही से लड़ेंगे कोई कहता है हमारे निर्वाचन क्षेत्र से चुनाव लड़ेंगे। मैं ये समझता हूँ कि ये जनता का प्यार है, लेकिन मैं बार-बार चुनाव क्षेत्र बदलने के पक्ष में नहीं हूँ। पहले भी 2012 में जब मैं धर्मशाला आया तो बैजनाथ चुनाव क्षेत्र आरक्षित हुआ। उस दौरान भी पार्टी ने सीट रिज़र्व होने के कारण मुझे धर्मशाला भेजा, मैं अपनी मर्ज़ी से यहाँ नहीं आया था। चुनाव से 15 दिन पहले मुझे पार्टी आलाकमान ने यहाँ भेजा ,तब से लेकर यहीं हूँ और अब तो जीवन के अंत तक यहीं रहना है। इस बार का चुनाव भी मैं धर्मशाला से ही लडूंगा।
सवाल : कुछ नेताओं के साथ सोशल मीडिया पर आपकी भी तस्वीरें वायरल हो रही है कि आने वाले समय में ये नेता आम आदमी पार्टी का दामन थाम सकते है। इनका सरदार भी आपको ही बताया जा रहा है। क्या कहेंगे इस बारे में ?
जवाब : देखिये आज सोशल मीडिया का जमाना है और ऐसी कई चीज़े सामने आती रहती है। आपको पता होगा की पुरानी पत्रकारिता में भी कार्टून बनाया करते थे और हमारे देश में बहुत से ऐसे कार्टूनिस्ट है जिन्होंने विश्व स्तर पर काम किया है। अब मिम्स का जमाना है तो ऐसे ही किसी ने व्यंग के लिए कुछ बना कर वायरल किया होगा, लेकिन ऐसा कुछ नहीं है। मैं तो कांग्रेस में ही हूँ, शुरू से ही कांग्रेस में रहा हूँ तो कांग्रेस के अलावा तो कहीं जाने का सवाल ही पैदा नहीं होता।
सवाल : राष्ट्रीय स्तर पर यदि कांग्रेस की बात की जाए तो आंतरिक लोकतंत्र की मांग लगातार उठ रही है। संगठन में बदलाव की बात की जा रही है। क्या कहेंगे ?
जवाब : देखिये आंतरिक लोकतंत्र को तो कांग्रेस पार्टी ने कभी भी नहीं रोका। आपको याद होगा जब पिछला चुनाव हुआ तो सबसे पहला इस्तीफा राहुल गाँधी जी ने दिया, उन्होंने कहा की मैं इस्तीफा दे रहा हूँ आप अपना अध्यक्ष चुनिए। सभी पार्टी के लोगो को कहा गया और इसके बाद निर्णय उन पर छोड़ा गया। जब कोई राय नहीं बनी तो कार्यकारी अध्यक्ष के रूप में सोनिया गाँधी जी आई। अब जल्द ही अधिवेशन होने जा रहा है उसमें जिसको भी चुनेगी पार्टी वो सर्वमान्य अध्यक्ष होगा और उसके साथ सब चलेंगे। कांग्रेस पार्टी ही ऐसी पार्टी है जिसमें अध्यक्ष चुने जाने की प्रक्रिया ब्लॉक ,जिला, प्रदेश और फिर राष्ट्रीय स्तर तक चलती है। हमारी पार्टी द्वारा सदस्यता अभियान भी चलाया गया, उसके बाद अब संगठन की चुनावी प्रक्रिया शुरू हो जाएगी और राष्ट्रीय स्तर से लेकर जिला व ब्लॉक स्तर के चुनाव परिणाम सामने आ जायेंगे।
सवाल : ओक ओवर का रास्ता कांगड़ा से होकर जाता है। कांगड़ा से मुख्यमंत्री हो इसे लेकर लम्बे समय से सुबुगाहट होती रही है। स्व बाली जी तो खुलकर इसकी हिमायत करते रहे। आपका क्या मत है ?
जवाब : देखिये ये बात ठीक है कि काँगड़ा सबसे बड़ा जिला है हिमाचल प्रदेश का, लेकिन ये कह देना कि मुख्यमंत्री काँगड़ा का ही होना चाहिए, ऐसा नहीं है। मुख्यमंत्री तो प्रदेश का बनेगा और वो बनेगा जिसके साथ चुने हुए विधायक हो और पहली बात ये है कि वो 35 का आंकड़ा तो प्राप्त कर ले। 15 से तो नहीं बन जायेगा। 15 से ही बनना होता तो पहले ही बन जाता, इसके लिए पहले 35 का आंकड़ा चाहिए फिर बहुमत होगा और बहुमत के बाद चुने हुए विधायकों की राय होगी और वो राय पार्टी नेतृत्व के समक्ष रखी जाएगी। उसके बाद जिसको सक्षम समझेंगे, उसे मुख्यमंत्री बनाया जायेगा। प्रदेश सरकार चलना भी इतना आसान काम तो नहीं है, कर्ज में हम लोग डूबे हुए है। जो लोग आज सोचते है कि हम सत्ता में आ जायेंगे जीत करके और फिर सरकार में बैठ जायेंगे, तो प्रदेश को चलाना आसान बात नहीं है। आपको कर्मचारियों को तनख्वाह तक देने के लिए कर्ज लेना पड़ता है तो आप किस तरह से प्रदेश को आत्मनिर्भर बना पाएंगे, क्या प्रोग्राम्स होंगे, पॉलिसी होगी, ये सब जहाँ में रखना होगा। क्षमता को लेकर नेतृत्व का निर्णय होगा।
सवाल : धर्मशाला की अगर बात करें तो आप मैदान में उस तरह नहीं दिख रहे, इस पर आपकी अपनी पार्टी के कई लोग ही आपको घेरने में लगे है। चूक कहाँ हो गई ?
जवाब : ऐसा नहीं है कि सक्रियता कम हुई है। कोरोना महामारी का आप समय देखे तो कोरोनाकाल में जो काम हुआ वो सबसे ज़्यादा धर्मशाला के अंदर हुआ और हमने किया। घर -घर तक दवाईयां पहुंची, राशन पहुंचा, पका हुआ भोजन पहुँचाया। यहाँ तक कि पशुओं के लिए चारा भी उस समय पंजाब से नहीं आ पा रहा था, वो हमने पहुँचाया। कई बार राष्ट्रीय स्तर की भी कई जिम्मेवारियां रहती है जिनके चलते बाहर रहना पड़ता है, तो समय इतना नहीं दे पाते। लेकिन जब भी धर्मशाला में होता हूँ तो सक्रियता पूरी है। धर्मशाला की भी यदि बात करे तो ये बहुत बड़ा निर्वाचन क्षेत्र है, इसमें न केवल बाजार का हिस्सा शामिल है बल्कि ग्रामीण इलाके इससे भी चार गुना ज़्यादा बड़े है। ग्रामीण इलाकों में जायेंगे तो पता चलता है कि कितना विकास हुआ है, किसने किया है, किसने नहीं किया है और कौन कितना सक्रिय है। मेरा ये मानना है कि ये केवल एक परसेप्शन तैयार करने का प्रयास किया जा रहा है और जो ये लोग करते है मैं ये समझता हूँ कि चुनाव तो आ ही रहे है, दो- दो हाथ सभी को आज़मा लेने चाहिए। प्रजातंत्र में कोई किसी को नहीं रोकता है।
सवाल : चलिए कांगड़ा की राजनीति पर आते है। नए ज़िलों को बनाने की मांग है, इस पर आपकी क्या राय है ?
जवाब : मेरा ये मानना है कि आज संचार का युग है, आप जितने प्रशासनिक यूनिट्स को कम करेंगे उतना बेहतर होगा। उस समय ज़्यादा प्रशासनिक कार्यालयों को खोला जाता था, जिलों को तोड़ा जाता था जब लोगों वहां तक पहुंचने में दिक्कत आती थी। आज वर्क फ्रॉम होम का कॉसेप्ट आ गया है। कोरोना ने हमें इतना कुछ सिखाया है। आज दुनिया में आप कही भी अपने डिप्टी कमिश्नर को आप रीच आउट कर सकते है। सभी चीज़े ऑनलाइन हो गयी है। मेरा मानना है कि नए ज़िले बनने से प्रदेश पर वित्तीय बोझ अधिक होगा। जो पैसा हम प्रदेश के विकास के लिए इस्तेमाल कर सकते है उसे ऐसे सफ़ेद हाथी पर खर्च करने में कोई समझदारी नहीं है। तो मैं नए जिले बनाने के पक्ष में नहीं हूँ।
सवाल : धर्मशाला आपकी कर्मभूमि रही है। ये बताये सेंट्रल यूनिवर्सिटी को लेकर आपकी निजी राय क्या है ?
जवाब : देखिये जब इसकी घोषणा हुई थी तो धर्मशाला के इंद्रुनाग में इसके निर्माण के लिए जगह देखी गयी थी, तब देहरा का कोई नाम नहीं था। बाद में उस जगह को कंस्ट्रक्शन के लिए उपयुक्त नहीं पाया गया। इसके बाद ये कहा गया कि कुछ कैंपस को देहरा ले जाते है और कुछ को यहाँ ही बनाया जायेगा, क्योंकि उतनी जगह नहीं थी। फिर सरकार बदली, मैं यहाँ से नया- नया विधायक था, मंत्री भी रहा तो हमने नई भूमि देखी जो उपयुक्त है। अब फिर उस जगह की फिसिबिल्टी पर सवाल है। अब कुछ देहरा में बनाने जा रहे है और कुछ धर्मशाला में। हमें तो देहरा से भी कोई विरोध नहीं है। मेरा मानना ये है कि आप एक साथ दोनों जगह कार्य शुरू करे। एक बात और कहूंगा कि इस मुद्दे को मुझसे जोड़ा जाता है लेकिन ये मुद्दा तो मेरा था ही नहीं। 2006 में इसकी घोषणा हुई थी और तब में बैजनाथ से विधायक था। इस विषय पर जब एक बार निर्णय हो चुका है तो राजनीतिक लाभ लेने के लिए इसे मुद्दा बनाये जाना इतने बड़े संस्थान के साथ अन्याय है।
सवाल : पिछली सरकार में आपको नंबर दो माना जाता था, लगता था कि सुधीर शर्मा ही वीरभद्र सिंह के सबसे करीब है। पर अगर अब हम सियासी चश्मे से देखे तो आप हॉली लॉज के उतने करीब नहीं दिख रहे। क्या ऐसा है ?
जवाब : ऐसा नहीं है, ये प्रश्न आप वहां भी पूछ सकते है। देखिये राजनीति की बात अलग है लेकिन हम लोग एक परिवार है और कोई भी निर्णय हो कोई भी फैसला राजनीति में हो तो एक परिवार की तरह साथ में रह कर हम उस पर विचार करते है और आगे बढ़ते है। हाल ही में मंडी लोकसभा का जो उपचुनाव था, उस दौरान भी मैं वहीँ था और वो चुनाव हम जीते भी। ये बेहद ख़ुशी की बात है कि प्रतिभा सिंह जी मंडी से सांसद है। विक्रमादित्य सिंह युवा नेता है और पूरे प्रदेश की अपेक्षाओं का और वीरभद्र सिंह जी की लिगेसी का भार उनके कन्धों पर है। वे बड़ी संजीदगी से उसे निभा रहे है और अच्छी बात है कि कांग्रेस के अंदर अगली जनरेशन में भी इस तरह की लीडरशिप निकल कर आ रही है। मैं मानता हूँ कि ये हमारी पार्टी के लिये अच्छा है।
