‘सीज़फायर या सियासी सरेंडर?’ ट्रम्प के बयान पर गरमाई राजनीति

**कांग्रेस का सवाल : क्या टूट गया शिमला समझौता?
भारत-पाकिस्तान के बीच हुए सीज़फायर की घोषणा अमेरिकी राष्ट्रपति द्वारा किए जाने पर देश में सियासत तेज़ है। इस घोषणा के बाद कांग्रेस केंद्र सरकार से कई सवाल पूछ रही है। पूछा जा रहा है कि क्या अमेरिका के दबाव में सरकार ने अपनी नीति में बदलाव किया? क्या अमेरिका की मध्यस्थता की वजह से सीज़फायर हुआ? क्या केंद्र सरकार ने कश्मीर मुद्दे पर तीसरे पक्ष के दखल को स्वीकार कर लिया? क्या शिमला समझौता अब रद्द हो गया? ये सवाल कांग्रेस के बड़े नेता लगातार सरकार से पूछ रहे हैं।
बीते रोज़ कांग्रेस नेता सचिन पायलट और आज पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल और के.सी. वेणुगोपाल ने सवाल खड़े किए कि आखिर अमेरिका के राष्ट्रपति ने अचानक सीज़फायर की घोषणा क्यों की? क्या यह भारत सरकार की कूटनीतिक नाकामी नहीं है? कांग्रेस का कहना है कि वह देश की सेना के साथ है और उन पर गर्व महसूस कर रही है, लेकिन देश के लोगों को भी यह जानने का हक़ है कि हमने सीज़फायर में पाकिस्तान से क्या वादे लिए हैं। क्या गारंटी है कि पाकिस्तान फिर से कोई हमला नहीं करेगा? कांग्रेस दलील दे रही है कि 1971 में जब युद्ध छिड़ा, तब भी अमेरिका ने कहा था कि हम बंगाल की खाड़ी में अपना सातवां बेड़ा भेज रहे हैं। लेकिन तब तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने अमेरिका के दबाव के बावजूद पाकिस्तान के दो टुकड़े किए। कांग्रेस का कहना है कि अगर सरकार कश्मीर मुद्दे पर तीसरे पक्ष की मध्यस्थता स्वीकार करती है, तो यह शिमला समझौते का उल्लंघन होगा।
बता दें कि शिमला समझौते में यह स्पष्ट किया गया था कि भारत और पाकिस्तान किसी भी मुद्दे को, ख़ासकर कश्मीर को लेकर, तीसरे पक्ष की मध्यस्थता के बिना, केवल आपसी बातचीत और शांतिपूर्ण साधनों से सुलझाएंगे। हालाँकि ट्रम्प द्वारा सीज़फायर की घोषणा को लेकर जो ट्वीट किया गया, उसमें यह लिखा गया है कि USA द्वारा मीडिएट की गई बातचीत के बाद यह सीज़फायर हुआ है। इतना ही नहीं, इस पोस्ट के ठीक 16 घंटे बाद अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने भारत और पाकिस्तान के बीच कश्मीर मुद्दे का समाधान खोजने में मदद करने की पेशकश भी की। ट्रम्प ने लिखा कि भारत और पाकिस्तान — के साथ व्यापार बढ़ाऊँगा। साथ ही, मैं इस दिशा में भी काम करूँगा कि क्या "हज़ार सालों" से चले आ रहे कश्मीर मुद्दे का कोई समाधान निकाला जाए। कांग्रेस केंद्र सरकार से इस मसले पर पारदर्शिता की मांग कर रही है। मांग की जा रही है कि संसद का एक विशेष सत्र बुलाया जाए, जिसमें सभी सवालों के जवाब दिए जाएं और यह स्पष्ट किया जाए कि क्या केंद्र सरकार कश्मीर मसले पर अमेरिका के हस्तक्षेप को स्वीकार करेगी या नहीं।