पुष्कर बने सीएम तो धूमल निष्ठावान ऑन फायर
सियासत में कुछ स्थायी नहीं होता, न नीति, न सिद्धांत। न कोई स्थायी मित्र होता है और न स्थायी शत्रु। यदि कुछ स्थायी है तो वो है अवसरवाद। 'पार्टी विथ डिसिप्लिन' भाजपा भी इससे अछूती नहीं है। यहाँ भी 'जिसकी लाठी उसकी भैंस' का सिद्धांत ही लागू होता है। ये विचार, ये भाव विरोधियों के नहीं है, अपितु खुद भाजपाइयों के है। दरअसल जब से पुष्कर सिंह धामी को उत्तरखंड का सीएम घोषित किया गया है हिमाचल भाजपा में मानो बवाल आ गया है। पार्टी आलाकमान के इस निर्णय से मानो धूमल समर्थकों के पुराने जख्म खुरच भी गए और उन पर नमक भी छिड़क गया। धूमल के निष्ठावान खुलकर सोशल मीडिया पर अपनी भड़ास निकाल रहे है। #मनमर्जियां वायरल हो रहा है और पार्टी के डबल स्टैण्डर्ड पर सवाल उठाये जा रहे है।
दरअसल, हाल ही में हुए उत्तराखंड विधानसभा चुनाव में भाजपा को प्रचंड जीत मिली है। भाजपा तो जीत गई लेकिन खुद मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी चुनाव हार गए। इसके बाद सवाल ये था कि क्या भाजपा खुद चुनाव हार चुके नेता को मुख्यमंत्री बनाएगी। 11 दिन के इंतजार के बाद 21 मार्च को इस सवाल का जवाब मिला और आलाकमान ने धामी को ही मुख्यमंत्री बनाया। ठीक ऐसी ही स्थिति 2017 में हिमाचल प्रदेश में भी बनी थी। हालंकि तब पार्टी विपक्ष में थी लेकिन चुनाव पूर्व मुख्यमंत्री प्रो प्रेमकुमार धूमल के चेहरे पर लड़ा गया था। तब अंतिम समय तक पार्टी ने सीएम फेस नहीं घोषित किया था लेकिन जब पार्टी की स्थिति बिगड़ती दिखी तो चुनाव से 10 दिन पूर्व धूमल को सीएम फेस घोषित करना पड़ा। दांव सही पड़ा और भाजपा सत्ता में लौटी, पर खुद धूमल चुनाव हार गए। तब धूमल समर्थकों ने उन्हें ही सीएम बनाने की मांग की, कई विधायकों ने अपनी सीट छोड़ने की पेशकश भी की। पर पुष्कर की तरह आलाकमान का आशीर्वाद धूमल को नहीं मिला। इसी बात की टीस धूमल समर्थकों में है। अब मौका हाथ लगा है तो समर्थक पार्टी के सिद्धांतो पर भी सवाल उठा रहे है और डबल स्टैंडर्ड्स पर भी।
बहरहाल चुनाव हारने के बावजूद पुष्कर सिंह धामी को मौका मिला है और कहा जा रहा है की पुष्कर फ्लावर नहीं फायर है। तो क्या धूमल में फायर कम थी ? या सीधे कहे तो क्या धूमल में अब भाजपा को फायर नहीं दिखती ? दरअसल ऐसा बिलकुल नहीं है। बेशक खुद प्रो प्रेम कुमार धूमल इस वक्त किसी उच्च पद पर न हो लेकिन उनके पुत्र अनुराग ठाकुर मोदी कैबिनेट में ताकतवर मंत्री भी है और राष्ट्रीय सियासत का उभरता सितारा भी। ऐसे में धूमल की उपेक्षा की बात में कोई तर्क नहीं दिखता। समर्थकों को ये भी सोचना होगा कि यदि धूमल इस वक्त प्रदेश के मुख्यमंत्री होते तो क्या अनुराग भी केंद्रीय मंत्री बनते ?
