करसोग : अंतर्कलह साधना ही कांग्रेस की जीत का मंत्र
राज सोनी। फर्स्ट वर्डिक्ट
करसोग की जनता के लिए पार्टी का चिन्ह बाद में, अपनी पसंद पहले आती है। बीते 12 विधानसभा चुनाव के नतीजों पर नज़र डाले तो यहाँ तीन बार निर्दलीय उम्मीदवार जीते है। भाजपा के गठन से पहले यहाँ 1977 में जनता पार्टी जीती, तो 1998 में पंडित सुखराम की हिमाचल विकास कांग्रेस को भी करसोग का प्यार मिला। वर्तमान में यहाँ भाजपा का कब्ज़ा है और कांग्रेस भी मैदान में डटी दिख रही है। यक़ीनन यहाँ आगामी चुनाव बेहद रोचक होने वाला है।
पहले बात कांग्रेस की करें तो पार्टी के लिए सबसे बड़ी चुनौती अंतर्कलह को साधना है। क्षेत्र में मनसा राम के बेटे महेश राज अभी से टिकट की कतार में है तो दूसरी ओर पूर्व में दो बार विधायक रहे मस्त राम तथा काफी समय से कांग्रेस पार्टी में कार्य कर रहे जगत राम, अधिवक्ता रमेश कुमार, निर्मला चौहान, हिरदाराम तथा उत्तम चंद चौहान भी ग्राउंड में डटे हुए है। अतीत में झांके तो 1993 व 2003 में कांग्रेस ने मस्त राम को मैदान में उतारा था, और दोनों बार मस्त राम ने करसोग सीट कांग्रेस की झोली में डाली। 2017 के चुनाव में मस्त राम पार्टी से टिकट की मांग कर रहे थे लेकिन तब कांग्रेस ने मनसा राम को मैदान में उतारा। टिकट बंटवारे को लेकर मस्त राम ने कांग्रेस पार्टी से नाता तोड़ा और निर्दलीय मैदान में उतरे। इसका लाभ भाजपा को हुआ और ये सीट भाजपा की झोली में गई।
उधर, भाजपा की बात करें तो वर्तमान में हीरा लाल विधायक है। वर्ष 2007 में उन्होंने ही मनसा राम के विजयरथ पर लगाम लगाई थी, लेकिन जनता ने अगले चुनाव में फिर से मनसा राम को कमान सौंप दी। 2017 में भाजपा ने हीरा लाल को दोबारा से मौका दिया था और तब कांग्रेस की बगावत के चलते वे जीत दर्ज करने में कामयाब रहे।
मनसा राम का रहा है दबदबा
करसोग की सियासत में मनसा राम का दबदबा रहा है। मनसा राम कुल 9 बार चुनावी संग्राम में उतरे और पांच बार करसोग से विधायक बने जिसमें 4 बार कैबिनेट मंत्री तथा एक बार सीपीएस रहे। पिछले कई चुनावों के नतीजों पर नज़र डाले तो इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि करसोग की जनता ने पार्टी चिन्ह के बिना भी मनसा राम पर अपना प्यार बरसाया है। 1967 में मनसा राम ने बतौर निर्दलीय चुनाव लड़ा और जीता भी। दूसरी बार 1972 में कांग्रेस के टिकट से चुनाव लड़े और जीते लेकिन 1977 में उन्हें हार का मुंह देखना पड़ा। मनसा राम ने 1982 में फिर निर्दलीय चुनाव लड़ा और जीते। इसके बाद 1998 में हिमाचल विकास कांग्रेस और 2012 में कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़कर मनसा राम इस क्षेत्र से विधायक बने। अब उनके पुत्र भी कांग्रेस से टिकट मांग रहे है। अब आने वाले विधानसभा चुनावों में देखना यह होगा की जनता किसको चुनेगी और किसके भाग्य का सितारा चमकेगा।
