राणा मोर्चे पर, ठाकुर ताव में और चौहान अब 'आप' में
न कोई कम, न कोई ज्यादा। नालागढ़ निर्वाचन क्षेत्र की सियासत का हाल कुछ ऐसा ही है। कांग्रेस -भाजपा दोनों यहाँ बराबर है और इस पर अब आम आदमी पार्टी की एंट्री ने सियासत में उबाल ला दिया है। अलबत्ता अभी विधानसभा चुनाव में करीब सात माह का वक्त है लेकिन आधा दर्जन से ज्यादा भावी उम्मीदवार मैदान में उतर चुके है। नालागढ़ अभी से इलेक्शन मोड में आ चुका है। कांग्रेस से वर्तमान विधायक लखविंदर राणा मोर्चा संभाले हुए है तो भाजपा से पूर्व विधायक के एल ठाकुर भी ताव में है। जबकि नए नवेले आम आदमी हुए पूर्व जिला परिषद् अध्यक्ष धर्मपाल चौहान दोनों के अरमानों पर झाड़ू फेरने की ताक में है। पिछले चुनाव में भाजपा का खेल खराब करने वाले हरप्रीत सैनी का इरादा इस बार भी मैदान में उतरने का लग रहा है, तो कांग्रेस के एक और नेता आप के संपर्क में बताएं जा रहे है।
नालागढ़ निर्वाचन क्षेत्र के अतीत में झांके तो भाजपा से हरि नारायण सिंह सैनी ने लगातार तीन बार कमल खिलाया था। वे वर्ष 1998, 2003 व 2007 में वे विधायक रहे। उनके निधन के बाद 2011 में हुए उपचुनाव में कांग्रेस के लखविंदर सिंह राणा ने बाजी मारी। पर एक ही साल में जनता का राणा से मोहभंग हो गया और 2012 के विधानसभा चुनाव में राणा को शिकस्त का सामना करना पड़ा। वहीँ भाजपा उम्मीदवार के एल ठाकुर पहली बार विधायक बने। 2017 के चुनाव की बात करें तो नालागढ़ से एक बार फिर लखविंदर सिंह राणा और के एल ठाकुर आमने -सामने थे। हालांकि यहाँ राणा ने बाजी मारी किन्तु बेहद रोचक मुकाबला देखने को मिला। कांग्रेस का टिकट न मिलने पर बाबा हरदीप सिंह ने बतौर निर्दलीय चुनाव लड़ा और साढ़े सात हज़ार वोट लेकर तीसरे स्थान पर रहे। जबकि भाजपा के बागी हरप्रीत सैनी ने करीब दो हज़ार वोट हासिल कर ठाकुर का खेल खराब कर दिया था।
वर्तमान की बात करें तो लखविंदर सिंह राणा ही नालागढ़ कांग्रेस का मुख्य चेहरा है। राणा इस सीट से पांच चुनाव लड़ चुके है। उन्होंने पहली बार वर्ष 2003 में बतौर निर्दलीय चुनाव लड़ा था। इसके बाद हुए तीन विधानसभा चुनाव और एक उपचुनाव में कांग्रेस ने उन्हें ही टिकट दिया है जिसमें से दो बार उन्हें जीत मिली है।
जबकि भाजपा में भी फिलवक्त के एल ठाकुर के समकक्ष कोई चेहरा नहीं दिखता। ठाकुर के खाते में एक जीत और एक हार दर्ज है। वहीँ, बतौर निर्दलीय 2017 में चुनाव लड़ने वाले बाबा हरदीप अब भी अपनी जमीन मजबूत करने की जद्दोजहद ही करते दिख रहे है। उनकी बेशक कांग्रेस में वापसी हो गई हो लेकिन टिकट की दौड़ में वे राणा के आगे टिकते नहीं दिखते। धर्मपाल चौहान की बात करें तो निसंदेह वे चुनाव लड़ने के इच्छुक है और आम आदमी पार्टी से टिकट के प्रबल दावेदार भी होंगे, बशर्ते आप कोई अन्य नेता इम्पोर्ट न कर ले। धर्मपाल भी मैदान में टिके है और उनके रहते ये मुकाबला कांग्रेस -भाजपा किसी के लिए आसान नहीं होगा।
