तो क्या इस बार टूटेगा महेंद्र सिंह का तिलिस्म !
दल कोई भी हो लेकिन जीत हमेशा मिली। कभी अंतर कम रहा तो कभी ज्यादा, पर महेंद्र सिंह ठाकुर का परचम निरंतर धर्मपुर विधानसभा क्षेत्र में लहराता रहा है। ठाकुर अब तक सात चुनाव जीते है, तीन भाजपा से, एक कांग्रेस से, एक हिमाचल विकास कांग्रेस से, एक लोकतांत्रिक मोर्चा से और एक बार निर्दलीय। दल बेशक बदलते रहे लेकिन जनता का भरोसा अब तक महेंद्र सिंह पर बरकरार रहा है। हालांकि पिछले तीन चुनाव वे भारतीय जनता पार्टी से ही जीते है। अब विधानसभा चुनाव से पहले उन्हें लेकर फिर कयासों का बाजार गर्म है। बहरहाल सियासत में कयास लगते रहते है लेकिन ठाकुर फिलवक्त भाजपा में ही है और जयराम सरकार के शक्तिशाली मंत्रियों में शुमार है। पर इस मर्तबा उनके लिए टिकट की राह शायद आसान न रहे। दरअसल बीते कुछ समय से महेंद्र सिंह बेवजह के विवादों से घिरे रहे है। परसेप्शन पॉलिटिक्स के पैमाने पर ये विवाद उनकी राह का रोड़ा बन सकते है। चर्चा वैसे ये भी है कि महेंद्र सिंह अपने बेटे रजत ठाकुर को आगे करने की इच्छा रखते है किन्तु वंशवाद के नाम पर दस साल पार्टी में लगा चुके चेतन बरागटा का टिकट काटने वाली भाजपा रजत को टिकट दें, ऐसा मुश्किल लगता है। इस पर भाजपा के युवा नेता नरेंद्र अत्री भी टिकट के दावेदारों में है। अत्री के साथ भाजपा का एक बड़ा तबका दिख रहा है और निश्चित तौर पर टिकट की दौड़ में वे महेंद्र सिंह को टक्कर देते दिख रहे है।
उधर कांग्रेस को इस सीट पर अंतिम बार 1993 में जीत मिली थी और दिलचस्प बात ये है कि तब कांग्रेस उम्मीदवार थे महेंद्र सिंह ठाकुर। इसके बाद हुए पांच चुनाव में कांग्रेस ने महेंद्र सिंह के आगे पानी नहीं मांगा। बीते तीन चुनाव पर नज़र डाले तो 2007 में पार्टी यहाँ दस हज़ार वोट से हारी। 2012 में पार्टी ने बेहतर किया और ये अंतर करीब एक हजार वोट का रह गया, पर 2017 में फिर बढ़कर करीब दस हजार पहुंच गया। तीनों मर्तबा पार्टी के कैंडिडेट थे चंद्रशेखर। अब चंद्रशेखर की हार की हैट्रिक के बाद मुमकिन है कि पार्टी यहाँ से उम्मीदवार बदलने पर मंथन करें। कई दावेदार मैदान में दिख भी रहे है, पर कोई ऐसा नहीं जो फिलवक्त मजबूत स्थिति में हो। हालाँकि चुनाव में अभी वक्त है और समीकरण बदलते देर नहीं लगती।
भूपेंद्र और आप को लेकर कयास :
भाजपा और कांग्रेस के अलावा तीसरा मोर्चा भी धर्मपुर में कई मर्तबा कामयाब रहा है। 1998 में हिमाचल विकास कांग्रेस यहाँ से चुनाव जीती तो 2003 में लोकतांत्रिक मोर्चा को जीत मिली। हालांकि दोनों बार महेंद्र सिंह ही प्रत्याशी थे। 2017 के विधानसभा चुनाव नतीजों पर नजर डाले तो यहाँ करीब दस प्रतिशत वोट सीपीआईएम को मिला था और उम्मीदवार थे तब जिला परिषद सदस्य रहे भूपेंद्र सिंह। बीते जिला परिषद चुनाव में सज्जाओपिपलू वार्ड से मंत्री महेंद्र की बेटी वंदना गुलेरिया मैदान में थी और उनके सामने कांग्रेस और सीपीआईएम ने भूपेंद्र सिंह को साझा उम्मीदवार बनाया था। हालाँकि भूपेंद्र जीत न सके पर टक्कर कड़ी दी। अब आम आदमी पार्टी के मैदान में आने के बाद इन्हीं भूपेंद्र सिंह पर निगाहें टिकी है। कयास लग रहे है कि भूपेंद्र आप का दामन थाम सकते है, हालांकि उनकी तरफ से अब तक ऐसा कोई संकेत नहीं दिया गया है। पर जानकार मानते है कि यदि ऐसा होता है तो यहाँ त्रिकोणीय मुकाबला देखने को मिलेगा।
