आप फैक्टर : कोई माने न माने, चिंता की आग दोनों तरफ बराबर लगी है

वर्तमान के सियासी समीकरण समझने के लिए कई मर्तबा अतीत के सियासी चलचित्र में झांक लेना मददगार होता है। सो शुरुआत करते है 1998 के विधानसभा चुनाव से। 1985 के बाद ये पहला मौका था जब प्रदेश में कोई सरकार रिपीट करने की स्थिति में दिख रही थी। वीरभद्र सरकार को लेकर प्रो इंकम्बैंसी दिख रही थी और मिशन रिपीट लगभग तय लग रहा था। पर पंडित सुखराम कुछ और ही ठान चुके थे, और उन्होंने हिमाचल विकास कांग्रेस बनाकर कांग्रेस को झटका दे दिया। तब काँटे के मुकाबले में 23 सीटें ऐसी थी जहाँ जीत-हार का अंतर दो हज़ार वोट से कम था। इन से 14 सीटें कांग्रेस हारी थी और तीन सीटों पर तो उसे हिमाचल विकास कांग्रेस से सीधे मात दी थी। इसके अलावा कई सीटें ऐसी थी जहाँ कांग्रेस की हार का अंतर बेशक दो हज़ार वोट से अधिक था लेकिन पार्टी का खेल हिमाचल विकास कांग्रेस ने ही बिगाड़ा था। ये आंकड़ें इस बात की तस्दीक करते है की यदि हिमाचल विकास कांग्रेस न होती तो 1998 में वीरभद्र दूसरी बार रिपीट कर जाते। ऐसे में जाहिर है कि बेशक कभी हिमाचल में तीसरी पार्टी सरकार न बना पाई हो लेकिन नतीजे बदलने की कुव्वत तो रखती है। भाषणों -ब्यानों में तीसरी पार्टी को लेकर कुछ भी कहा जा रहा हो, लेकिन 1998 का ये इतिहास कांग्रेस और भाजपा दोनों की धुकधुकी जरूर बढ़ा रहा होगा।
अब आते है वर्तमान स्थिति पर। करीब चार -पांच माह में हिमाचल प्रदेश में विधानसभा चुनाव होने है। भाजपा मिशन रिपीट के लिए और कांग्रेस सत्ता वापसी के लिए हाथ पाँव मार रहे है। और फिलवक्त प्रदेश में वो तीसरी पार्टी है आम आदमी पार्टी। अलबत्ता कांग्रेस -भाजपा दोनों आप के प्रभाव को सिरे से खारिज कर रहे है लेकिन टेंशन दोनों को है। दोनों को पता है कि आप को हल्के में लेने की भूल महंगी पड़ सकती है। बीते तीन चुनाव पर नज़र डाले तो प्रदेश के अधिकांश क्षेत्रों में फ्लोटिंग वोट न तो सरकार के खिलाफ मुखर दिखा है और न ही समर्थन में, पर तीनों मर्तबा प्रदेश ने बदलाव के लिए वोट किया है। यानी वोटर की खामोशी सत्ता पर भारी पड़ती आ रही है। मौजूदा समय में जयराम सरकार को लेकर भी न एंटी इंकम्बेंसी दिख रही है और न ही प्रो इंकम्बैंसी। ऐसे में यदि बदलाव के लिए वोट होता है और आप उसमे सेंध लगाती है तो लाभ भाजपा को हो सकता है। हवा और माहौल के हिसाब से चलने वाला न्यूट्रल वोटर दोनों पार्टियों को ठेंगा दिखा सकता है। वहीँ आप के गुड गवर्नेंस मॉडल से यदि ये वोटर प्रभावित हुआ तो भाजपा का मिशन रिपीट भी खटाई में पड़ सकता है। सो कोई माने न माने, चिंता की आग दोनों तरफ बराबर लगी है। बात करें आम आदमी पार्टी की तो पंजाब में जीत के बाद जिस तरह का आगाज हुआ था वो पार्टी बरकरार नहीं रख पाई। पर अब प्रदेश में आम आदमी पार्टी फिर से तेवर में आती दिख रही है। बीते दिनों प्रदेश की नई कार्यकारिणी का गठन भी हो गया है और वीआईपी दौरों का सिलसिला भी फिर से शुरू हो गया है। रोज़गार, शिक्षा और स्वास्थ्य के मुद्दे पर आम आदमी पार्टी वोट मांग रही है और इसी जद्दोजहद में है कि आगामी विधानसभा चुनाव में दमदार मौजूदगी दर्ज करवाई जा सके। बेशक खुले मंच से पार्टी के नेता सरकार बनाने के दावे कर रहे हो, लेकिन जाहिर है पार्टी का मकसद फिलहाल खुद को दमदार तरीके से हिमाचल की सियासत में स्थापित करना है, ताकि भविष्य के लिए नींव मजबूत की जा सके।
फायदा होगा, बशर्ते चुनावी मेहमान न बन कर रह जाएं पार्टी
पंजाब में सरकार बनने के बाद से अब तक आप के राष्ट्रीय संयोजक और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल हिमाचल प्रदेश के तीन दौरे कर चुके है। केजरीवाल कांग्रेस -भाजपा को खुलकर चुनौती दे रहे है कि जिन विकास के मुद्दों पर वो वोट मांग रहे है, वे भी उन पर वोट मांग कर दिखाएं। हाल ही में आप ने हिमाचल में एक शिक्षा संवाद भी किया है। निजी स्कूलों की बेलगाम फीस निसंदेह हिमाचल में एक बड़ा मुद्दा है और इसे भांपते हुए आप सही रास्ता पकड़े हुए दिख रही है। नजदीक भविष्य में न सही लेकिन इसका दूरगामी फायदा जरूर आप को मिल सकता है, बशर्ते पार्टी अब हिमाचल में परमानेंट सियासत करे, न कि चुनावी मेहमान की तरह। वहीँ फिलहाल हिमाचल में आप के लिए सबसे बड़ी कमज़ोरी किसी बड़े चेहरे का न होना है। पार्टी में ऐसा कोई चेहरा नहीं दिखाई देता जिसके दम पर पार्टी हिमाचल विधानसभा चुनाव जीत ले।
सावधान कांग्रेस, हर जगह 'आप' ने बिगाड़ा है खेल
माहिर मान रहे है कि संभवतः आप का पहला मकसद कांग्रेस को कमजोर करना हो ताकि न सिर्फ हिमाचल में बल्कि पूरे देश में विपक्ष का मुख्य चेहरा बन सके। जाहिर है यदि आगामी विधानसभा चुनाव में आप की मौजूदगी के चलते कांग्रेस के अरमानों पर पानी फिरता है तो 2027 में आप की भूमिका बड़ी हो सकती है। अतीत पर निगाह डाले तो आप हमेशा से ही कांग्रेस के समीकरण बिगाड़ते आई है। पहले आप ने दिल्ली की सत्ता पर 15 साल से आसीन कांग्रेस को सत्ता से बाहर किया और फिर अब पार्टी ने पंजाब भी कांग्रेस को बुरी तरह हराया। गोवा और उत्तराखंड में भी कांग्रेस के समीकरण बिगाड़ने का श्रेय आप को ही दिया जाता है, जिससे भाजपा का मिशन रिपीट सफल हो पाया। उत्तराखंड में आप को 3.31 प्रतिशत वोट हासिल हुए, वहीं गोवा में आप को 6.77 प्रतिशत वोट हासिल हुए है। ये आंकड़े सत्ता पाने के लिए तो नाकाफी है, मगर अब कांग्रेस का सतर्क होना आवश्यक दिखाई देता है। इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि हिमाचल में आप के आने से कांग्रेस के लिए स्थिति मुश्किल हो सकती है। यदि सत्ता विरोधी वोट बांटने में आप कामयाब रही तो कांग्रेस के अरमानों पर पानी फिर सकता है।
कुनबा न संभला, तो भाजपा होगी मुश्किल में
हिमाचल का एक तबका ऐसा भी है जो आप के दिल्ली मॉडल का मुरीद है, ऐसे में गुड गवर्नेंस की बात करने वाली भाजपा के लिए भी चुनौती कम नहीं होने वाली। पहली बार शिक्षा संवाद जैसे कार्यक्रम आयोजित कर कोई पार्टी शिक्षा -स्वास्थ्य जैसे बुनियादों मुद्दों पर वोट मांग रही है, जाहिर है इसका नुकसान सत्तारूढ़ पार्टी को ज्यादा हो सकता है। वहीँ भाजपा में टिकट तलबगारों की बढ़ती संख्या भी आप में लिए अवसर है। अगर पार्टी के कुछ मजबूत नेता आप का रुख करते है, तो नुक्सान भाजपा का होगा। मसलन कसौली से भाजपा नेता हरमेल धीमान अब आप में है और निसंदेह भाजपा के अरमान कुचल सकते है। कई अन्य निर्वाचन क्षेत्रों में भी हरमेल सरीखे भाजपाई पार्टी में उपेक्षित है और माना जा रहा है कि चुनाव नजदीक आते-आते आप के हो सकते है। ऐसे में भाजपा कुनबा नहीं संभाल पाती तो मिशन रिपीट मुश्किल है।