येन केन प्रकारेण : जीत से कम कुछ मंजूर नहीं
संगठन भी मजबूत और संसाधन भी पर्याप्त, पर अंतर्कलह चुनौती
मजबूत संगठन भी है और पर्याप्त संसाधन भी। उपचुनाव में जीत का दृढ़ निश्चय भी दिख रहा है और लफ्जों में भरपूर आत्मविश्वास भी, मगर ज़हन का दबाव चेहरों से छलक रहा है। देश की सबसे बड़ी पार्टी भाजपा हिमाचल में आगामी उपचुनाव के लिए पूरा दमखम लगाने को तैयार है मगर पार्टी को ये डर भी सता रहा है कि कहीं अंतर्कलह जीत में रोड़ा न बन जाएं। ऐसे में भाजपा बेहद संभलकर आगे बढ़ रही है। मंथन और मंत्रणा जारी है, प्रचार- प्रसार शुरू हो चुका है, कहीं चुनाव लड़ने के लिए किसी को मनाया जा रहा है तो कहीं चुनाव न लड़ने के लिए। बकायदा फील्ड सर्वे हो रहे है। मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर खुद फ्रंट फुट पर मोर्चा संभाले हुए है, जाहिर है निजी तौर पर सबसे अधिक दबाव भी उन्हीं पर होगा। नतीजे अनुकूल रहे तो जीत का सेहरा भी उन्हीं के सिर बंधेगा और प्रतिकूल नतीजों की स्थिति में हार का ठीकरा भी उन्हीं के सिर फूटना है। फिलवक्त चारों उपचुनाव क्षेत्रों में भाजपा के लिए सबसे बड़ी चुनौती रूठों को मनाना ही होने वाला है। टिकट की जंग में पिछड़ने वालों से बगावत और भीतरघात का खतरा लगातार बना हुआ है। अर्की में पूर्व विधायक गोविन्द राम शर्मा तो टिकट की घोषणा से पहले ही नामांकन की घोषणा कर चुके है। जुब्बल - कोटखाई में भी चेतन बरागटा और नीलम सरैक आमने- सामने दिख रहे है। फतेहपुर में अभी बार चक्की पार का नारा बुलंद है। ऐसे में पार्टी नेतृत्व के सामने विकट स्थिति है। पर भाजपा एक अनुशासित पार्टी है और संभवतः आलाकमान के हस्तक्षेप के जरिये रूठों को मना लिया जाए, पर यदि ऐसा न हो पाया तो जीत की डगर कठिन होगी। बेरोज़गारी, महंगाई जैसे मुद्दों के साथ -साथ भाजपा को बागवानों और कर्मचारियों को भी साधना होगा।
आत्मविश्वास अच्छा हैं, पर अतिआत्मविश्वास अच्छी बात नहीं
न संगठन सशक्त, न संसाधन सम्पन्नता, पर हौंसला बुलंद दिख रहा हैं। जिस आत्मविश्वास की कमी हिमाचल कांग्रेस में अक्सर दिखती रही हैं वो आत्मविश्वास भी उपचुनाव से पहले मानो लौट आया हैं। अंदाजा इसी बात से लगा लीजिये कि प्रदेश कांग्रेस के सरदार कुलदीप राठौर खुलकर आगामी उपचुनाव को 'सत्ता का सेमीफाइनल' करार दे रहे हैं। अब ये आत्मविश्वास हैं या अति आत्मविश्वास ये तो नतीजे तय करेंगे, पर फिलवक्त समर्थकों को सुकून इस बात का होगा कि कम से कम कांग्रेस की बॉडी लैंग्वेज सकरात्मक दिख रही हैं। पर अचानक ऐसा क्या हुआ कि सुस्त पड़ी कांग्रेस आत्मविश्वास से लबरेज दिखने लगी हैं, ये यक्ष प्रश्न हैं। क्या जमीनी स्तर पर कांग्रेस संगठन में मजबूती आई हैं? या यकायक संसाधनों की कमी से झूझती दिख यही कांग्रेस साधन संपन्न हो गई? आखिर हिमाचल कांग्रेस में बदला क्या हैं? दरअसल, कांग्रेस की जमीनी स्थिति में कोई ख़ास बदलाव नहीं दिखता। पर इसमें कोई संदेह नहीं हैं कि पूर्व मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह के निधन के बाद उपजी सहानुभूति ने कांग्रेस को जोश की ऑक्सीजन दे दी हैं। इसी सहानुभूति की लहर के बुते पार्टी संगठन और संसाधन की कमी को पाटना चाहती हैं, और कुछ हद तक ऐसा होता भी दिख रहा हैं। इस पर कुछ हालात भी पार्टी के अनुरूप बने है, विशेषकर नगर निगम चुनाव के बाद। पहले नगर निगम चुनाव में भाजपा की गलतियों ने कांग्रेस को बेहतर करने का मौका दिया। फिर सेब के गिरते दामों का मुद्दा हो, आईजीएमसी में कैंटीन का मुद्दा, या बाहरी राज्यों के लोगों को नौकरी का मुद्दा, कांग्रेस को बैठे बिठाये आवाज बुलंद करने का भरपूर मौका मिला। कांग्रेस की आस का तीसरा कारण है भाजपा में मची खींचतान। देश में बदलते मुख्यमंत्रियों के बीच प्रदेश में भी तरह-तरह की अटकलें लगती रही है जिससे निसंदेह एक संशय की स्थिति बनी। इसका मनोवैज्ञानिक लाभ भी कांग्रेस को मिला है। बहरहाल बेशक कांग्रेस आत्मविशवास के साथ मैदान में है लेकिन अनुकूल परिणाम के लिए पार्टी को अति आत्मविश्वास की स्थिति से बचना होगा। पार्टी को जहन में रखना होगा कि उनका मुकाबला उस भाजपा से है जिसके पास बेहद मजबूत संगठन भी है, पर्याप्त साधन भी और सबसे महत्वपूर्ण अनुशासन भी। इस पर भाजपा का मजबूत राष्ट्रीय नेतृत्व सोने पर सुहागा है। कांग्रेस को सुनिश्चित करना होगा कि उपचुनाव में ज़रा सी भी चूक न हो, न टिकट वितरण में और न संभावित बगावत और भीतरघात थामने में।
सबसे बड़ा इम्तिहान
2017 में सत्ता वापसी के उपरांत मोठे तौर पर भाजपा के लिए हिमाचल में सब चंगा रहा है। 2019 में लोकसभा चुनाव में भाजपा ने क्लीन स्वीप किया और फिर धर्मशाला और पच्छाद उपचुनाव में जीत मिली। जयराम ठाकुर के मुख्यमंत्री बनने के बाद सरकार व्यापक तौर पर क्लीन इमेज के साथ आगे बढ़ती रही। पंचायत चुनाव भी ठीक-ठाक निकल गए पर भाजपा को पहला झटका नगर निगम चुनाव में लगा। अब उपचुनाव होने है। विपक्ष अभी से उपचुनाव को सत्ता का सेमीफइनल कह रहा है। ये बीते चार साल में प्रदेश भाजपा और जयराम ठाकुर का सबसे बड़ा इम्तिहान है।
