कैबिनेट या दिल्ली, कहा पहुंचेंगे राणा !

लोकसभा के लिए राणा उपयुक्त
धूमल परिवार को विधानसभा में पटकनी दे चुके है राणा
क्या लोकसभा में भी दिख सकता है कमाल
राजेंद्र राणा, हिमाचल की सियासत का वो नाम जिसने अपनी एक जीत से प्रदेश की सियासत पलट कर रख दी थी। 2017 के चुनाव में राणा ने भारतीय जनता पार्टी के सीएम कैंडिडेट को हराकर जो इतिहास रचा उसके चर्चे पूरे देश में हुए। किसी ने शायद ही सोचा हो की राणा अपने ही गुरु रह चुके प्रोफेसर प्रेम कुमार धूमल को कभी पटकनी दे पाएंगे, मगर राणा ने ऐसा कर दिखाया और प्रदेश की सियासत की दशा और दिशा पलट कर रख दी। ये तो बात हुई तब की, अब माना जा रहा है कि कांग्रेस के लिए राणा हमीरपुर से दमदार उम्मीदवार हो सकते है, पर सवाल ये है कि क्या राणा इसके लिए तैयार है ? हालांकि राणा ने खुद कभी खुलकर नहीं कहा लेकिन चर्चा तो ये होती रही है कि राणा को तो कैबिनेट में एंट्री चाहिए, इशारों इशारों में उनकी नाराजगी भी झलकती रही है। अब राणा कैबिनेट की दिशा पकड़ते है, दिल्ली की राह बढ़ते है या तटस्थ रहते है, ये देखना रोचक होगा।
राणा कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं में से है और वो वीरभद्र सिंह के करीबी रहे है। राणा तीसरी बार के विधायक है और सीएम कैंडिडेट को हराने के बाद से प्रदेश की राजनीति में राणा का कद लगातार बढ़ा है। वे पीसीसी के कार्यकारी अध्यक्ष भी है। 2022 विधानसभा चुनाव से पहले सत्ता वापसी पर राणा का मंत्री पद तय माना जा रहा था, यहाँ तक की उनके समर्थक तो उन्हें सीएम पद के दावेदारों में मानते थे। पर चाहने से सियासत में क्या मिलता है, स्थिति परिस्तिथि ऐसी बनी कि राणा अब तक मंत्रिमंडल में भी शामिल नहीं हो पाए है। इसका मुख्य कारण हमीरपुर जिले से खुद मुख्यमंत्री का होना और हमीरपुर संसदीय क्षेत्र से मुख्यमंत्री और उपमुख्यमंत्री का होना माना जाता है। हालांकि याद ये भी रखना होगा कि राणा उन गिने चने नेताओं में से एक है जिन्होंने नतीजों से पहले खुलकर प्रतिभा सिंह को सीएम दावेदार बताया था। बहरहाल राणा मंत्रिमंडल से दूर है और ये दूरी राणा को भी शायद असहज करती रही है। कभी राणा की सोशल मीडिया पर रश्मिरथी की पंक्तियों को इससे जोड़कर देखा जाता है तो कभी राणा द्वारा सीएम को भेजे गए पत्र से उनका असंतोष झलकता रहा है। बावजूद इसके इसमें कोई संशय नहीं है की राणा का सियासी दमखम जरा भी कम नहीं है। पार्टी को भी इस बात का इल्म है और ये ही कारण है कि माना जा रहा है कि पार्टी उन्हें हमीरपुर संसदीय क्षेत्र से मैदान में उतार सकती है। पर क्या राणा लोकसभा के रण में उतरने को तैयार है, या अभी कैबिनेट विस्तार में राणा की एंट्री मंत्रिमंडल में होगी, ये देखना रोचक होगा। बहरहाल कांग्रेस के भीतर बहुत कुछ घट रहा है और बदलते समीकरणों में कब, क्या कैसे होगा, ये कहना मुश्किल है।
अब बात करते है कि आखिर हमीरपुर संसदीय क्षेत्र में राजेंद्र राणा कांग्रेस के लिए क्यों मजबूत उम्मीदवार हो सकते है। हमीरपुर संसदीय क्षेत्र वो संसदीय क्षेत्र है जहाँ कांग्रेस का सूर्य 1998 से अस्त है। ये हिमाचल प्रदेश की वो लोकसभा सीट है जहाँ कांग्रेस पिछले दो उपचुनाव और 6 आम चुनाव हार चुकी है। दरअसल हमीरपुर संसदीय क्षेत्र भाजपा के दिग्गज और केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर का गढ़ है। अनुराग से पहले उनके पिता प्रोफेसर प्रेम कुमार धूमल इस संसदीय क्षेत्र से तीन बार सांसद रह चुके है। ये भाजपा का गढ़ है, ये धूमल परिवार का गढ़ है और धूमल परिवार को यहाँ टक्कर देने के लिए राणा एक दमदार विकल्प हो सकते है। कभी इसी परिवार के करीबी रहे राणा की अब इस परिवार से सियासी रंजिश किसी से छिपी नहीं है। 2014 में अनुराग से लोहा लेने के लिए राणा विधायक पद से इस्तीफा देकर मैदान में उतरे थे, लेकिन तब हार गए थे। तब राणा का दांव उल्टा पड़ा था और उपचुनाव में उनकी पत्नी को भी सुजानपुर से हार का सामना करना पड़ा था। पर राणा ने सुजानपुर नहीं छोड़ा और फील्ड में डटे रहे।
नतीजन 2017 में प्रोफेसर प्रेम कुमार धूमल को पटकनी देकर उन्होंने इतिहास रच दिया और फिर 2022 के चुनाव में भी धूमल परिवार का तिलिस्म तोड़ा। तब भले ही धूमल खुद मैदान में नहीं थे, मगर पार्टी के कैंडिडेट के लिए फ्रंट फुट पर रह कर प्रचार कर रहे थे। सिर्फ वे ही नहीं केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर भी मैदान में डटे रहे मगर जीत एक बार फिर राणा की हुई। यानी राणा वो चेहरा है जो धूमल परिवार के गढ़ में धूमल परिवार को पटकनी देने की कुव्वत रखते है। जो दम राणा विधानसभा चुनाव में दिखा चुके है, अगर वो ही हमीरपुर लोकसभा में दिखा दें तो पार्टी के सितारे शायद यहाँ चमक उठेंगे।
बहरहाल फिलहाल ये सियासी अटकलें है और कैबिनेट विस्तार से पहले तस्वीर साफ़ होना मुश्किल है। संभवतः राणा की मंशा कैबिनेट में एंटीरी की होगी, फिर भी निसंदेह राणा कांग्रेस के लिए एक मजबूत विकल्प जरूर हो सकते है।