4जी पॉलिटिक्स की चपेट में दूसरी राजधानी...
◆ घिरथ ,गद्दी,गोरखा और जनरल वोट बैंक में फंसी धर्मशाला इस बार
धर्मशाला, प्रदेश की दूसरी "कागजी" राजधानी है। वीरभद्र सरकार की विदाई के बाद अब इसकी घोषणा का कागज भी गायब है। अगर कोई दिखाता भी है तो उसकी सत्यता पर सवाल-बवाल बराबर होते हैं। खैर,शुक्र यह है कि धर्मशाला गायब नहीं हो पाया है। धर्मशाला के साथ पॉलिटिक्स का चलन बहुत पुराना है। पर बेचारे धर्मशाला का हाल यह है कि स्मार्ट सिटी का दर्जा मिलने के बावजूद आम आदमी के लिए कुछ स्मार्ट तो नहीं हो पाया अलबत्ता इसके अंदर की पॉलिटिक्स जरूर स्मार्ट हो चुकी है।
मोबाइल तकनीक फोर-जी की तर्ज पर धर्मशाला की पॉलिटिक्स भी फोर-जी की तरह हाई स्पीड वाली हो गई है। फोर-जी फैक्टर में यहां घिरत,गद्दी,गोरखा और जनरल के बीच पॉलिटिकल रेडियेशन्स पसरी हुईं हैं। भाजपा का तो इतिहास ही रहा है कि उसने गद्दी जाति की तरंगों पर ही सफर किया। स्व मेजर बृज लाल से शुरू हुआ सफर वाया किशन कपूर होता हुआ अब विशाल नैहरिया तक पहुंच चुका है। भाजपा की टिकट कभी गैर गद्दी के हाथ नहीं चढ़ पाई। साल 2017 में जब कपूर की टिकट कटने की नौबत आई थी तब उन्होंने अश्रु धाराओं की दीवार बना कर उन्होंने पण्डित उमेश दत्त की टिकट रोक ली थी। इसके बाद साल 2019 में कपूर साहब की लॉटरी लोकसभा में लगी तो उनके जीतने के बाद फिर से टिकट की गद्दी पर गद्दी समुदाय के विशाल नैहरिया को भाजपा ने सत्तासीन कर दिया। यह तो थी फोर-जी फैक्टर के पहले अहम जी-फैक्टर गद्दी की।
अब बात करते हैं कांग्रेस की। एक वक्त था, जब कांग्रेस भी गद्दी समुदाय के मूलराज पाधा के साथ अपना हाथ लेकर चलती थी। फिर कांग्रेस ने यह वर्चस्व जनरल कैटागिरी से राज परिवार की चंद्रेश कुमारी को आगे लाकर तोड़ा। कांग्रेस ने एक बार गद्दी समुदाय को छोड़ा तो फिर कभी अपना पल्लू नहीं थमाया। चंद्रेश के बाद सुधीर शर्मा को धर्मशाला से उम्मीदवार बनाया और वह जीते भी। इसके बाद जब किशन कपूर के सांसद बनने के बाद उपचुनाव हुए तो जनरल फैक्टर के सुधीर शर्मा गायब हो गए। कांग्रेस मरती क्या न करती,एक बार फिर गद्दी समुदाय वाले विजय इन्द्रकर्ण जी-फैक्टर की तरफ बढ़ गई। भाजपा-कांग्रेस दोनों गद्दी फैक्टर पर भिड़ीं और भाजपा जीत गई।
मगर इसी चुनाव में तीसरे जी-फैक्टर यानि घिरथ समुदाय ने अपना जलवा दिखा दिया। कभी भाजपाई रहे राकेश चौधरी आजाद मैदान में उतरे और भाजपा की चीखें निकलवाने के साथ कांग्रेस की जमानत जब्त करवा दी। करीबन सोलह हजार वोट लेकर बता दिया कि ओबीसी बिन गति नहीं होने दी जाएगी।
अब बात करते हैं चौथे और लास्ट जी-फैक्टर गोरखा समुदाय की। हालांकि यह समुदाय बहुतयात में तो नहीं है,पर किसी को भी हरवाने में यह तबका, अपना तगड़ा दबका रखता है। इस समुदाय के अरुण बिष्ट ने एक बार चंद्रेश कुमारी को घर बिठा दिया था,तो दूसरी बार रविन्द्र राणा ने सुधीर शर्मा को तगड़ी चोट दे दी थी।
पर अब इस फोर-जी फैक्टर में जनरल फैक्टर पॉलिटिकल फ्रैक्चर डालने की कुव्वत बना चुका है। जनरल कैटागिरी का मत प्रतिशत एक अनुमान के मुताबिक करीबन 49 से 51 फीसदी के बीच पहुंच चुका है। इस बार भाजपा-कांग्रेस के लिए यह ट्रेडिशनल गद्दी फैक्टर खतरे का सामान बनता नजर आने शुरू हो गया है। खैर, असली फोर-जी के आगे फाइव-जी की तरफ बढ़ रही है। देखना दिलचस्प होगा कि स्ट्रेंथ ऑफ पॉलिटिकल सिग्नल कितना फलक्चुएट होता है...
