क्या जा रही है बिंदल की कुर्सी ?

चर्चा आम, बिंदल की जगह अध्यक्ष होंगे जयराम
खिलाफ : संगठन की कुंद धार, रुष्ट नेताओं की खुलकर ललकार
पक्ष : पूरा कार्यकाल न मिलना, दोनों कार्यकाल में कुल ढाई साल भी नहीं मिले
जल्द हिमाचल भाजपा को नया अध्यक्ष मिलना है और चर्चा आम है कि बतौर प्रदेश भाजपा अध्यक्ष डॉ राजीव बिंदल के रिपीट होने की संभावना अब बेहद कम है है। यदि ऐसा होता है तो ये व्यक्तिगत तौर बिंदल के लिए बड़ा सेट बैक होगा। रोलर कॉस्टर सा चल रहे बिंदल के राजनैतिक सफर में ये एक बड़ी ढलान होगा। दरअसल बिंदल 2022 का विधानसभा चुनाव भी हारे थे, ऐसे में जाहिर है सदन के भीतर भी उन्हें कोई ज़िम्मा नहीं मिलेगा। वहीं, माहिर मानते है कि यदि ऐसा हुआ तो मौटे तौर पर बिंदल फिर नाहन तक सिमित दिख सकते है।
दरअसल बीजेपी अध्यक्ष पद की दौड़ में खुद नेता प्रतिपक्ष जयराम ठाकुर का नाम आने के बाद वर्तमान अध्यक्ष डॉ राजीव बिंदल की दावेदारी अब कमजोर मानी जा रही है। 2021 के उपचुनाव से ही भाजपा लगातार प्रदेश में हारती आ रही है और इसका बड़ा कारण संगठन की कुंद धार है। चुनाव दर चुनाव प्रदेश संगठन बगावत थामने में नाकाम रहा है, और ये ही हार का एक बड़ा कारण भी रहा है। हालांकि 2022 का चुनाव बिंदल के नेतृत्व में नहीं लड़ा गया था, उनकी ताजपोशी अप्रैल 2023 में हुई है। पर वर्तमान हालात की भी बात करें तो खफा नेता खुलकर पार्टी को ललकार रहे है, समानांतर संगठन बनाने की बात कह रहे है, पर इन पर कोई अनुशासनात्मक कार्रवाई नहीं दिखती। भाजपा का संगठन एक किस्म से बेबस दिख रहा है।
इसी तरह अगर प्रदेश सरकार को घेरने की बात करे तो फ्रंट फुट पर भी जयराम ही दिखते है और प्रभावी भी जयराम ही है। संगठन के अधिकांश आला नेता अधिकांश मौकों पर बेअसर से लगते है। इसमें कोई संशय नहीं है कि प्रदेश स्तर पर भी भाजपा संगठन की सर्जरी की जरुरत दिखती है। ऐसे में मुमकिन है कि आलाकमान जयराम को ही संगठन का सरदार बना दे और कमोबेश पूरी टीम बिंदल बदल दी जाए। हालाँकि एक पक्ष ये भी है कि बिंदल को दोनों कार्यकाल में कुल ढाई साल भी नहीं मिले है। अगर जयराम पर मुहर नहीं लगती है तो ये फैक्टर उनके पक्ष में जा सकता है।
2017 से उतार चढ़ाव भरा रहा बिंदल का सफर
बिंदल के राजनैतिक करियर पर निगाह डाले तो लगातार पांचवी बार विधायक बनने के बाद वे 2017 में सीएम पद के दावेदार थे, लेकिन तब उन्हें कैबिनेट में भी जगह नहीं दी गई थी। बिंदल को विधानसभा अध्यक्ष बना कर एडजस्ट किया गया था, लेकिन करीब दो साल बाद वे भाजपा अध्यक्ष बनने में कामयाब रहे। फिर कोरोना काल में लगे आरोपों के बाद करीब पांच महीने बाद ही उन्हें इस्तीफा देने पड़ा। इस बीच पार्टी ने उन्हें अर्की उपचुनाव और सोलन नगर निगम चुनाव का जिम्मा तो दिया, लेकिन बिंदल पार्टी को जीत नहीं दिला सके। बिंदल को सबसे बड़ा सेट बैक 2022 के विधानसभा चुनाव में लगा जब वे खुद हार गए।पर इसके बाद अप्रत्याशित तौर पर अप्रैल 2023 में वे फिर अध्यक्ष पद पाने में कामयाब रहे। तब से अब तक उनके कार्यकाल में पार्टी ने नौ में से छ उपचुआव हारे है और लोकसभा चुनाव में भी पार्टी का वोट शेयर गिरा है। ऐसे में परफॉरमेंस के पैरामीटर पर भी बिंदल छाप नहीं छोड़ पाए है, हालांकि उन्हें ज्यादा समय नहीं मिला है।
एक और बात बिंदल के विरुद्ध जाती है, वो है उन पर लगते रहे आरोप। हालांकि उन पर लगा कोई आरोप कभी सिद्ध नहीं हुआ, वे हमेशा बरी हुए है। किन्तु राजनैतिक विरोधी उन पर लगातार निशाना साधते रहे है। विशेषकर बीते कुछ वक्त में खुद सीएम सुखविंद्र सिंह सुक्खू ने बिंदल पर खूब चुटकी ली है।