कैबिनेट विस्तार ...मंत्री आ रहे हैं मंत्री आए मंत्री आए जाते हैं !
( words)
- कैबिनेट में रिक्त स्थान कहीं कांग्रेस की संभावनाओं को रिक्त न कर दे !
- अब सियासी माहिरों के भी गले नहीं उतर रही 'वेट एंड वॉच' की नीति
- सुक्खू कैबिनेट में क्षेत्रीय और जातीय असंतुलन !
- अब सोचने की नहीं, बल्कि कुछ करने की जरुरत !
इसी ख्याल में हर शाम-ए-इंतज़ार कटी
वो आ रहे हैं वो आए वो आए जाते हैं
न आलाकमान का फरमान आया और न राजभवन से संदेश। सरकार गठन को एक साल होने को आया पर सुक्खू कैबिनेट में एंट्री की राह देख रहे कई चाहवानों का इन्तजार अब भी जारी है। आस टूटती नहीं और बात बनती नहीं। असंतोष को खारिज नहीं किया जा सकता, पर कैबिनेट विस्तार तय होकर भी तय नहीं। थोड़ा सा असंतोष जाहिर हो रहा है, तो बहुत घुट रहा है। पब्लिक मीटर पर सरकार की रेटिंग 'अप' सही लेकिन पॉलिटिकल मीटर पर मामला फंसा है। अब तो राजनैतिक माहिरों की कयासबाजी पर भी लगभग विराम लग चुका है। 'सुख की सरकार' में मंत्री पद किसको मिलेगा, इससे भी बड़ा सवाल ये है कि आखिर कब मिलेगा।
सुक्खू कैबिनेट में रिक्त स्थान कहीं कांग्रेस की संभावनाओं को भी रिक्त न कर दे, ये डर अब कांग्रेस के चाहवानों को भी सताने लगा है। लोकसभा चुनाव का माहौल आहिस्ता-आहिस्ता बन रहा है और कैबिनेट में क्षेत्रीय और जातीय असंतुलन पर लगातार सवाल उठ रहे है। अब सरकार को एक साल भी होने को आया, लेकिन सुक्खू कैबिनेट में तीन पद अब भी रिक्त है। ये 'फिल इन दी ब्लैंक्स' का सियासी सवाल अब भी अनसुलझा है और जल्द माकूल जवाब न मिला तो बवाल भी तय मानिये। सीएम सुक्खू सहित कई मंत्रियों के पास अतिरिक्त कार्यभार है, इसमें कोई दो राय नहीं है। इस पर सीएम का स्वास्थ्य भी नासाज है। फिर आखिर ऐसी भी क्या मजबूरी है कि कैबिनेट विस्तार टलता रहा है। आखिर कब तक खाली रहेंगे ये पद और इस विलम्ब से कांग्रेस को हासिल क्या हो रहा है, ये सवाल बना हुआ है।
अब तक कांगड़ा के खाते में एक मंत्री पद है, मंडी संसदीय क्षेत्र से भी सिर्फ एक मंत्री है, सीएम-डिप्टी सीएम के संसदीय क्षेत्र हमीरपुर में भी कई नेता टकटकी लगाए बैठे है। यहाँ 25 साल से कांग्रेस लोकसभा चुनाव हार रही है। पद और कद के मामले में शिमला जरूर संतुष्ट भी दिखता है और संपन्न भी, पर बाकी तीन संसदीय क्षेत्रों में पार्टी को अब सोचने की नहीं, बल्कि कुछ करने की जरुरत है। अब सोचने का वक्त सम्भवतः जा चुका है। तीन मंत्री पदों के अलावा विधानसभा उपाध्यक्ष सहित कई अहम बोर्ड निगमों के पद भी अभी खाली है। 'वेट एंड वॉच' की पार्टी की नीति अब सियासी माहिरों के गले नहीं उतर रही। खीच-खीच की आवाज आने लगी है और अब मीठी गोली से नहीं बल्कि मुकम्मल दवा से ही काम चलेगा।
अब तक कांगड़ा संसदीय क्षेत्र से सिर्फ एक मंत्री पद दिया गया है। यहाँ सुधीर शर्मा और यादविंदर गोमा सहित कई दावेदार है। कांगड़ा जब भी बिगड़ा है इसने सियासतगारों के अरमानों का कबाड़ ही किया है, फिर भी कांग्रेस यहाँ जल्दबाजी में नहीं दिखी। मंडी संसदीय क्षेत्र का भी कमोबेश ये ही हाल है। यहाँ से जगत सिंह नेगी ही इकलौते मंत्री है। यहाँ कांग्रेस के गिने चुने विधायक है, लेकिन बोर्ड - निगमों में तो समय पर तैनाती दी ही जा सकती है। विशेषकर जिला मंडी में कांग्रेस 6 साल से लगातार हारी है। 2017 में स्कोरकार्ड 10 -0 था, तो 2022 में कांग्रेस को मिली महज एक सीट। बावजूद इसके यहाँ पार्टी में कोई बड़ा जमीनी बदलाव नहीं दिखता। पार्टी का कोई बड़ा चेहरा सरकार में किसी अहम पद पर नहीं है।
वहीँ हमीरपुर संसदीय क्षेत्र से बेशक सीएम और डिप्टी सीएम दोनों आते है, पर यहाँ चुनौती भी बड़ी है। ये भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा का क्षेत्र है, ये केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर का भी क्षेत्र है और ये प्रो प्रेम कुमार धूमल का भी क्षेत्र है। साथ ही वर्तमान में यहाँ से भाजपा के तीन सांसद है। इस पर लगातार आठ चुनाव में कांग्रेस यहाँ से हार चुकी है। ऐसे में जाहिर है यहाँ कांग्रेस को अतिरिक्त प्रयास करना होगा। माना जा रहा है कि कुछ अप्रत्याशित नहीं हुआ तो घुमारवीं को मंत्री पद मिलना तय है, पर फिर विलम्ब क्यों ? जो अधिमान पांच साल के लिए मिल सकता था वो चार के लिए मिले तो इसमें कांग्रेस को क्या हासिल होगा ? क्या कांग्रेस में अंदरूनी राजनीति हावी है, बहरहाल ये यक्ष प्रश्न है।
सिर्फ क्षेत्रीय लिहाज से ही नहीं सुक्खू कैबिनेट में जातीय पैमाने से भी असंतुलन दिखता है। देश में जातिगत जनगणना की पैरवी कर रही कांग्रेस के सामने ये वो गूगली है जिस पर पार्टी खुद हिट विकेट न हो जाएँ। फिलहाल प्रदेश में सीएम सहित कुल 9 मंत्री है जिनमें से 6 राजपूत है, सिर्फ एक ब्राह्मण, एक एससी और एक ओबीसी है। लोकसभा चुनाव में पार्टी को इस पर भी जवाब देना होगा। स्वाभाविक है भाजपा इस लिहाज से सियासी मोर्चाबंदी कर कांग्रेस को घेरने में कोई कसर नहीं छोड़ने वाली।
बहरहाल पार्टी आलाकमान पांच राज्यों के चुनाव में व्यस्त है और इस बीच कैबिनेट विस्तार थोड़ा मुश्किल जरूर लगता है। हालांकि माहिर मान रहे है कि सीएम सुक्खू, सरकार की पहली वर्षगांठ पूरी कैबिनेट के साथ मना सकते है। ऐसे में थोड़ा इन्तजार और सही।
तरकश से निकलने को तैयार असंतोष के बाण !कांग्रेस के भीतर से असंतोष से स्वर फूटते रहे है। पीसीसी चीफ प्रतिभा सिंह खुद भी बोर्ड निगमों में तैनाती में हो रहे विलम्ब पर बोलती रही है। पूर्व पीसीसी चीफ कुलदीप राठौर कार्यकर्ताओं के मान -सम्मान की बात कह सवाल उठाते रहे है, तो कार्यकारी प्रदेश अध्यक्ष राजेंद्र राणा कभी 'कृष्ण की चेतावनी' की पंक्तियां सोशल मीडिया पर डालते है, तो कभी सीएम को पत्र लिख अधूरे वादे याद दिलाते है। असंतुष्टों की फेहरिस्त लंबी है। हालांकि पहले आपदा के चलते शायद कई नेताओं ने असंतोष पूर्ण शब्द बाणों को तरकश में रखा और फिर संभवतः सीएम के खराब स्वास्थ्य ने इन्हें थामे रखा। पर माहिर मानते हैं कि सरकार का एक साल इन सन्तुष्टों के लिए मौका भी लाएगा और दस्तूर भी। बहरहाल माहिर ये भी तय मान रहे है कि जल्द या तो कैबिनेट विस्तार होगा या असंतोष प्रखर।