कांग्रेसियों इन्तजार करो, आलाकमान 'संगठन सृजन' में व्यस्त है !

गुजरात मॉडल अपनाया तो हिमाचल पर नज़र- ए -करम में लग सकता हैं और वक्त !
7 महीने बाद, कहाँ पहुंची हिमाचल में संगठन के गठन की बात ?
हिमाचल के कांग्रेसियों के साथ बड़ी 'खप' न कर दे आलाकमान !
कांग्रेस आलाकमान इन दिनों कई राज्यों के संगठन सृजन अभियान में मशगूल हैं। दरअसल, कांग्रेस अपने गुजरात मॉडल की तर्ज पर मध्य प्रदेश और हरियाणा में संगठन की नियुक्तियां करने जा रही हैं। हिमाचल के भी तीन विधायक आब्जर्वर बनाये गए हैं, ताकि उक्त राज्यों में मजबूत संगठन बने। इनके बाद अन्य राज्यों का भी नंबर आएगा और शायद हिमाचल पर भी नज़र- ए -करम हो। पर सवाल ये हैं कि क्या हिमाचल में कांग्रेस अपने इस गुजरात मॉडल को नहीं अपनाएगी ? और अगर अपनाएगी तो अब तक की फीडबैक रिपोर्टों का क्या होगा, जिसमें सात महीने खप गए ? गुजरात मॉडल के लिहाज से तो मुमकिन हैं हिमाचल में नए सिरे से जिलावार आब्जर्वर नियुक्त हो। यानी ऐसा होता हैं तो संगठन के गठन में अभी और वक्त लगना तय हैं। ऐसे स्थिति में हिमाचल के आम बोल चाल में लोग कहते है 'खप हो गई'। कांग्रेसियों के साथ भी 'खप' होने की सम्भावना फिलहाल बनी हुई है।
ठीक सात महीने पहले कांग्रेस आलाकमान ने एक फरमान जारी किया और हिमाचल में पार्टी संगठन भंग कर दिया गया। तब से हिमाचल कांग्रेस की इकलौती पदाधिकारी है पीसीसी चीफ प्रतिभा सिंह। हैरत हैं, देश के कई राज्यों में कांग्रेस संगठन सृजन अभियान चला रही हैं, लेकिन जिस हिमाचल में सत्ता पर काबिज हैं वहां संगठन की खैर खबर ही नहीं हैं। इन सात महीनों में कांग्रेस के भीतर बहुत कुछ घटा है। संगठन के गठन में हो रहे विलम्ब पर मंत्रियों / नेताओं / कार्यकर्ताओं ने खुलकर नाराजगी जताई हैं। प्रदेश प्रभारी बदले दिए गए। कई बार संगठन गठन की उम्मीदें जगी, लेकिन हर बार हाथ लगी सिर्फ मायूसी और नई तारीख। अब तो बेउम्मीदी इस कदर हावी हैं कि नई तारीख भी नहीं मिल रही।
नवंबर में संगठन भंग होते ही जानकारी आई कि कांग्रेस नए फॉर्मूले से संगठन का गठन करेगी। आब्जर्वर तैनात हुए, प्रदेश भर में गए, ग्राउंड फीडबैक लिया और रिपोर्ट सौंपी। इन सब में करीब चार महीने बीत गए। फिर लगने लगा किसी भी वक्त अब संगठन की प्रस्तावित नियुक्तियों को आलाकमान की हरी झंडी मिल सकती हैं। पर इस बीच अचानक 15 फरवरी को प्रभारी राजीव शुक्ला ही बदल दिए गए और रजनी पाटिल की एंट्री हुई। पाटिल भी अपनी नियुक्ति के दो सप्ताह बाद जोश -खरोश के साथ हिमाचल पहुंची। बैठकें हुई , फीडबैक लिया गया, गिले-शिकवों की सुनवाई हुई और जाते -जाते वादा भी किया गया कि दो सप्ताह में संगठन बन जायेगा। अब तीन महीने से ज्यादा बीत चुके हैं, लेकिन पत्ता भी नहीं हिला। इस बीच रजनी पाटिल तीन बार हिमाचल आ चुकी हैं, लेकिन बात फीडबैक लेने और रिपोर्ट सौंपने से आगे बढ़ती नहीं दिखी।
सात महीनों में एक परिवर्तन और हुआ हैं। पीसीसी चीफ प्रतिभा सिंह का कार्यकाल भी अब पूरा हो चुका हैं और उन्हें बदलने की अटकलें भी लग रही हैं। हिमाचल कांग्रेस के तमाम गुट अपने -अपने निष्ठावानों की तैनाती के लिए लॉबिंग में जुटे हैं। स्थिति ये हैं कि पीसीसी चीफ कौन होगा, ये सवाल इतना प्रबल हो गया कि इसके आगे जमीनी संगठन का दर्द छिप सा गया हैं।
कांग्रेस की स्थिति समझनी हैं तो अंत में बात पीसीसी चीफ पद के दावेदारों की भी जरूरी हैं। प्रतिभा सिंह, मुकेश अग्निहोत्री, कुलदीप राठौर, आशा कुमारी, अनिरुद्ध सिंह , यादविंद्र गोमा, सुरेश कुमार, विनोद सुल्तानपुरी , चंद्रशेखर , संजय अवस्थी और विनय कुमार, कोई नाम रह गया हो तो हम क्षमा प्रार्थी हैं। ये तमाम वो नाम है जिन्हें पीसीसी चीफ की दौड़ में शामिल बताया जा रह है। हर गुजरते दिन के साथ कोई न कोई नया शिगूफा छिड़ जाता है, चौक -चौराहे से लेकर बंद कमरों तक सियासत के जानकार खूब चर्चा करते है। फिर यकायक नए राजनैतिक समीकरण सामने आते है, कुछ नया घटित होता है और फिर सियासी माहिर नए सिरे से अपने काम में जुट जाते है। गणित के क्रमपरिवर्तन और संयोजन सूत्र का बखूबी इस्तेमाल करते हुए माहिर फिर अपने कयासों के पिटारे से नई चर्चा को जन्म देते है और चर्चा में शामिल पुराने नाम सियासी हवा में गौते खाते रह जाते है। हिमाचल कांग्रेस पर विश्लेषण करने वालों की ये ही "मोडस ऑपरेंडी" बन गई हैं। दरअसल हकीकत ये हैं कि हिमाचल कांग्रेस को लेकर नेताओं या सूत्रों की किसी भी जानकारी में जान बची ही नहीं हैं। सो तमाम विश्लेषण भी 'बे जान' सिद्ध हो रहे हैं। इस बीच आलाकमान के कमान में रखे तीर किस-किस को घायल करेंगे, नए दौर की कांग्रेस में इसका अनुमान लगाना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन हैं। बहरहाल गुजरात मॉडल से 'संगठन सृजन' का डर जरूर कांग्रेसियों को सत्ता रहा होगा !