जब हिमाचल में चूड़ियां बेचते मिले पूर्व विधायक... और शुरू हुई विधायकों की पेंशन !

हिमाचल में विधायकों की पेंशन को लेकर अक्सर चर्चाएं होती रहती हैं। आज प्रदेश में पूर्व विधायकों को करीब 85 हजार रुपये पेंशन मिलती है, मगर जब यह व्यवस्था शुरू हुई थी, तब पेंशन की रकम सिर्फ 300 रुपये थी। लेकिन क्या आप जानते हैं, इस पेंशन की शुरुआत कैसे हुई ? इसके पीछे की कहानी बेहद दिलचस्प है—
बात साल 1974 की है। हिमाचल के तत्कालीन मुख्यमंत्री डॉ. यशवंत सिंह परमार हमीरपुर में एक मेले के उद्घाटन के लिए पहुंचे थे। गर्मियों की चटक धूप के बीच मेला अपने रंग में था—दुकानों पर भीड़ थी। मुख्यमंत्री परमार, अन्य गणमान्य व्यक्तियों के साथ दुकानों का अवलोकन कर रहे थे। तभी, उनकी नज़र एक चूड़ियों की दुकान पर पड़ी। दुकान में बैठे व्यक्ति को देखते ही वह ठिठक गए। यह कोई आम दुकानदार नहीं था, यह अमर सिंह चौधरी थे, जो 1967 से 1972 तक जनसंघ के टिकट पर मेवा (अब भोरंज) विधानसभा क्षेत्र के विधायक रह चुके थे।
मुख्यमंत्री परमार ने चौंकते हुए पूछा, "अमर सिंह जी, आप यहां? यह दुकान?"
अमर सिंह चौधरी हल्के से मुस्कुराए, फिर बोले, "क्या करें डॉक्टर साहब, अब विधायक नहीं हूं, तो गुजारा करने के लिए कुछ तो करना होगा। परिवार पालना है, इसलिए मेलों में दुकानदारी करता हूं।"
यह सुनते ही परमार साहब का चेहरा गंभीर हो गया। हिमाचल के पहले मुख्यमंत्री के रूप में उन्होंने प्रदेश को खड़ा करने में अपना जीवन लगा दिया था, और अब उनके सामने एक पूर्व विधायक, जिसने जनता की सेवा की थी, आर्थिक तंगी में चूड़ियां बेचने को मजबूर था।
मेला खत्म हुआ, पर यह दृश्य डॉ. परमार के दिलो-दिमाग में घर कर गया। शिमला लौटते ही उन्होंने अगली कैबिनेट बैठक में यह मुद्दा उठाया। चर्चा के बाद फैसला हुआ, अब प्रदेश के पूर्व विधायकों को 300 रुपये मासिक पेंशन दी जाएगी, ताकि वे सम्मानजनक जीवन जी सकें। इस एक फैसले से हिमाचल में विधायकों की पेंशन की नींव पड़ गई, और धीरे-धीरे समय के साथ यह व्यवस्था मजबूत होती चली गई। खास बात यह है कि अमर सिंह चौधरी का राजनीतिक सफर यहीं खत्म नहीं हुआ। इस घटना के कुछ सालों बाद, वह 1977 में जनता पार्टी के टिकट पर फिर से विधायक बने और 1980 तक हिमाचल विधानसभा में रहे। हालांकि, अब विधायकों को कोई ऐसी समस्या नहीं है l पेंशन तो मिलती ही है, साथ ही विधायकों का टेलीफोन भत्ता भी 15 हजार रुपये है।