शिमला : नागेश गुलेरिया ने बताए जल, जंगल और जमीन बचाने के मंत्र
** अंबुजा सीमेंट फाउंडेशन की कार्यशाला को किया संबोधित
अंबुजा सीमेंट फाउंडेशन द्वारा आयोजित कार्यशाला को संबोधित करते हुए जाइका वानिकी परियोजना के मुख्य परियोजना निदेशक नागेश कुमार गुलेरिया ने जल, जंगल और जमीन बचाने के मंत्र दिए। वीरवार को शिमला में जलवायु परिवर्तन के लिए सतत् जलागम प्रबंधन पर आधारित एक दिवसीय कार्यशाला का आयोजन किया गया। इस अवसर पर नागेश कुमार गुलेरिया मुख्य वक्ता के रूप पर शिरकत की। यहां उपस्थित विभिन्न स्वयं सहायता समूहों के प्रतिनिधियों और अंबुजा सीमेंट फाउंडेशन के अधिकारियों व कर्मचारियों को नागेश कुमार गुलेरिया ने जलवायु परिवर्तन के लिए पांच मुख्य चुनौतियों के बारे अवगत करवाया। उन्होंने कहा कि विभिन्न प्रजातियों का समाप्त होना, भू-जल में लगातार गिरावट, पिघलते गलेशियर, तापमान में वृद्धि और लोगों का भविष्य असुरक्षित होना सबसे बड़ी चुनौतियां हैं।
उन्होंने कहा कि आज के इस दौर में जलवायु परिवर्तन और ग्लोबल वार्मिंग के बारे हर व्यक्ति जानता है, लेकिन उसे बचाए रखने के लिए सामुदायिक और आम नागरिकों को क्या कुछ करने की जरूरत है इसके बारे किसी को भी आभास नहीं हैं। उन्होंने चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि आज प्राकृतिक जल स्रोतों को बचाने के लिए काम करने की आवश्यकता है। नागेश कुमार गुलेरिया ने कहा कि विश्व के ऐसे 20 देश हैं जहां जलवायु परिवर्तन की वजह से अस्तित्व का संकट आ सकता है। पिछले साल की बरसात में हिमाचल और उत्तराखंड में जो आपदा आई, जो जलवायु परिवर्तन का ही उदाहरण है। नागेश कुमार गुलेरिया ने अंबुजा सीमेंट फाउंडेशन द्वारा किए जा रहे जनहित कार्यों की सराहना भी की। अंबुजा सीमेंट फाउंडेशन ने जनता को महत्वपूर्ण संदेश एवं जानकारी देने के लिए नागेश कुमार गुलेरिया का आभार व्यक्त किया।
जलवायु से न्याय होगा तो टलेगा संकट : गुलेरिया
जाइका वानिकी परियोजना के मुख्य परियोजना निदेशक नागेश कुमार गुलेरिया ने कहा कि हमें विकास कार्यों के साथ-साथ जल, जंगल और जमीन को बचाए रखने के लिए योजना तैयार करना होगा, तभी जलवायु सुरक्षित होगा और आम आदमी की जिंदगी भी सुरक्षित रहेगी। उन्होंने कहा कि आज से 40 साल पहले हम प्राकृतिक जल का प्रयोग करते थे, लेकिन आज परिस्थिति विपरीत हो चुकी है। नागेश कुमार गुलेरिया ने कहा कि यदि जलवायु के साथ न्याय होगा तभी आम लोगों की जिंदगी से संकट टल सकता है। इसलिए हमें प्रकृति को केंद्र बिंदू में रखते हुए अपनी विकासात्मक गतिविधियां प्लान करनी चाहिए।