पहली बार हिमाचल विधानसभा में नहीं बचा एक भी स्वतंत्र विधायक

हिमाचल प्रदेश की राजनीति में निर्दलीय विधायकों का एक स्वर्णिम इतिहास रहा है। निर्दलीयों को उन नेताओं के तौर पर देखा जाता रहा है जो न किसी पार्टी की छतरी में पले, न झंडे के सहारे जीते, सिर्फ जनसमर्थन के बल पर विधानसभा तक पहुंचे।
साल 1967 के चुनाव में रिकॉर्ड 16 निर्दलीय विधायक जीतकर विधानसभा पहुंचे थे। इसके बाद भी कई चुनाव ऐसे रहे जब निर्दलीयों ने बड़ी संख्या में जीत दर्ज की। 1957 में 12, 1952 में 8, 1972 और 1993 में 7-7, 1977, 1982 और 2003 में 6-6, 2012 में 5, 1962, 2007 और 2022 में 3-3, 1985 और 2017 में 2-2 तथा 1990 और 1998 में 1-1 निर्दलीय विधायक चुने गए।
1998 में रमेश धवाला जैसे नेता तो किंगमेकर बन गए थे, जिन्होंने सत्ता का पूरा समीकरण पलट दिया था।
लेकिन वक्त के साथ तस्वीर बदल गई है।
वर्ष 2022 में तीन निर्दलीय विधायक, होशियार सिंह, आशीष शर्मा और के एल ठाकुर जनता के समर्थन से जीते थे। लेकिन 2024 में इन नेताओं ने अपने एक फैसले से इस जनादेश को दरकिनार कर दिया। दरअसल 2024 में राज्यसभा चुनावों के दौरान इन नेताओं ने भारतीय जनता पार्टी को समर्थन देने के बाद न जाने किन कारणों से इस्तीफा देने का अप्रत्याशित निर्णय लिया।
तीन जून को उनके इस्तीफे स्वीकार हुए और दस जुलाई को उपचुनाव हुए। भाजपा ने तीनों को फिर से टिकट दिया और वे भाजपा उम्मीदवार बनकर चुनाव लड़े। इन चुनावों में निर्दलीय उम्मीदवार भी मैदान में थे, लेकिन कोई भी निर्दलीय चुनाव नहीं जीत सका।
नतीजन इन उपचुनावों के बाद विधानसभा से निर्दलीयों का पूरी तरह सफाया हो गया। हिमाचल के राजनीतिक इतिहास में पहली बार ऐसा हुआ कि सदन में एक भी स्वतंत्र विधायक मौजूद नहीं है।
आज से पहले ऐसा कभी नहीं हुआ कि सदन में निर्दलीय विधायक न बैठे हों। मगर अब यही हिमाचल की राजनीति की नई तस्वीर है।