करीब 28 सालों के अंतराल के बाद हुई बर्फ़बारी

दाड़लाघाट क्षेत्र में करीब 28 सालों के अंतराल के बाद बर्फ की सफेद चादर की सुंदर छटा देखने को मिली है। यहां रात के समय 2 बजे के करीब बर्फबारी होती रही। सुबह के समय लोगों को पहाड़ियों पर बिछी बर्फ की चादर के रुप में देखने को मिला। दाड़लाघाट में करीब 28 सालों बाद बर्फबारी का नजारा देखने को मिला है। हालांकि बर्फ की परत ज्यादा देर तक नहीं टिकी। दाड़लाघाट क्षेत्र के साथ लगते गांव कराडाघाट, घनागुघाट, शिवनगर, कश्लोग, कंस्वाला की ऊंची पहाड़ियों पर रात भर से बर्फ गिरने से सुबह लोगों को बाहर बर्फ की चमत्कारिक श्वेत चादर नजर आई। क्षेत्र में कोई भी ऐसी जगह नहीं दिखी जहां पर बर्फ न पड़ी हो। सुबह ही कड़ाके की ठंड में बच्चे, युवा खेतों और आंगन में बर्फ से खेलते नजर आए। वहीं कई जगह हल्की बारिश से ठंड का प्रकोप भी बढ़ गया है। लेकिन, आसपास की पहाड़ियां पूरी तरह से बर्फ से ढक गई हैं।
उधर, धार्मिक एवं पर्यटन स्थल बाड़ीधार में जमकर बर्फबारी हुई। देवभूमि बाड़ीधार में देर रात से ही बर्फबारी का दौर शुरू हो गया था और सुबह सुबह ही लोगो को यहाँ बर्फ की सफेद चादर बिछी दिखी। बाड़ीधार में देवदार, बान और चील के जंगल हैं। बर्फबारी के बाद ढकी ये वादियां काफी खूबसूरत हो गई हैं। यहां करीब 10 से 15 सेंटीमीटर तक बर्फबारी हुई है।
बाड़ीधार को पांडवों से जोड़ा जाता है। मान्यता है कि पांडवों ने इस जगह पर अज्ञात वास के दौरान भगवान शिव की तपस्या की थी।लोग बाड़ादेव को अपनी फसलों का रक्षक और इष्ट मानते हैं। इस जगह को लेकर लोगों में कई जन श्रुतियां भी विख्यात हैं।स्थानीय लोगों का कहना है कि 25 दिसम्बर के बाद बाड़ीधार पर बर्फ की चादर बिछ जाती है। बर्फबारी का लुत्फ उठाने के लिए स्थानीय लोगों के अलावा बाहरी राज्यों से भी पर्यटक यहां पहुंचते हैं। बारिश और बर्फबारी से इस जगह के कई परंपरागत जलस्रोत जल से भर गए हैं। इस बर्फबारी से किसानों के चेहरे भी खिल गए हैं क्योंकि इस हिमपात को फसलों के लिए उत्तम माना जा रहा है। हिमपात से खेतों में कई दिनों तक नमी बनी रहती है जो फसल के लिए उपयोगी मानी जाती है।