इस मंदिर में माथा टिकाए बिना आगे नहीं बढ़ सकती गाड़ी
शिमला से लगभग 190 किलोमीटर की दूरी पर नेशनल हाईवे नंबर 5 के किनारे पर स्थित ये मंदिर अपने आप मे बेहद रोमांचक इतिहास और मान्यता संजोए हुए है। यहां से गुजरने वाली हर गाड़ी यहां रुकती है। तरंडा देवी का यह मंदिर हिमाचल के किन्नौर जिले में पड़ता है। 1962 में जब भारत का चीन से युद्घ हुआ। तब युद्घ खत्म होने पर सेना ने यहां के रास्ते से रोड बनाने की योजना बनाई थी ताकि बॉर्डर तक सेना को गोला बारूद और अन्य सामान पहुंचाया जा सके। पहले रोड सिर्फ रामपुर तक ही था। 1963 में सेना के GREF विंग (अब इस विंग को बॉर्डर रोड ऑर्गेनाइजेशन कहा जाता है) ने यहां सड़क बनाने का काम शुरू किया। जिस जगह आज तरंडा देवी मंदिर स्थापित है जब रोड़ बनाने का कार्य यहां तक पहुंचा तो रोड आगे बनाना बहुत मुश्किल हो गया। रोज चट्टानें गिरने से आए दिन किसी न किसी मजदूर की मौत हो जाती थी। सेना के लोग भी काफी परेशान हो गए।
इस बीच तरंडा गांव के लोग गांव में बने मंदिर मां चंद्रलेखा के पास पहुंचे। देवी ने बताया कि यहां पर किसी शक्ति का प्रकोप है। मैं इस जगह स्थापित होना चाहती हूं। यहां मेरे नाम से मंदिर बनाओ सब कुछ ठीक हो जाएगा। बस फिर क्या था सेना के लोगों ने यहां मंदिर का निर्माण करवाया और फिर सब कुछ ठीक हो गया। 1965 में मां तरंडा देवी का मंदिर यहां स्थापित कर दिया गया। मंदिर की देखरेख अब सेना ही करती है। सेना के जवान ही यहां पूजा पाठ का काम संभालते हैं। हैरान करने वाली बात ये है कि इस जगह से आगे जाने वाले लोग गाड़ी रोककर तरंडा माता के दर्शन जरूर करते हैं ताकि रास्ते में कोई बाधा ना आए। माना जाता है कि माता को बिन बताए या बिन हाजिरी लगाए सफर करने वाला या तो चट्टाने गिरने के खतरे से घिर जाता है या उसकी गाड़ी किसी तरीके से खराब हो जाती है।