केन्द्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय में तीन दिवसीय अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी का हुआ समापन

केन्द्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय के बलाहर स्थित वेदव्यास परिसर में तीन दिवसीय अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी 'सप्तसिंधु संवाद: भारत के भू-सांस्कृतिक प्रत्यभिज्ञान' का शुक्रवार को समापन हुआ। यह संगोष्ठी सेंट्रल यूनिवर्सिटी के इतिहास विभाग के सहयोग से आयोजित की गई थी। संगोष्ठी का उद्घाटन बुधवार को हुआ था और इस दौरान कई प्रमुख विद्वानों ने भारतीय इतिहास, पुरातत्व, साहित्य, लोककला, तीर्थ-परंपरा आदि विषयों पर अपने विचार प्रस्तुत किए। इस संगोष्ठी में बतौर मुख्य अतिथि अखिल भारतीय सह संगठन मंत्री, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, मुकुल कानिटकर ने ऑनलाइन माध्यम से सप्तसिंधु क्षेत्र की सांस्कृतिक और ऐतिहासिक महत्ता पर प्रकाश डाला। कुलपति श्रीनिवास वरखेड़ी और राधावल्लभ त्रिपाठी ने भी संगोष्ठी को भारतीय सांस्कृतिक पुनर्जागरण की दिशा में एक महत्वपूर्ण पहल बताया। संगोष्ठी में कुल आठ सत्रों का आयोजन किया गया, जिसमें प्रमुख विद्वानों ने भारतीय संस्कृति, इतिहास, साहित्य और अन्य विषयों पर गहन विचार प्रस्तुत किए। प्रमुख वक्ताओं में प्रो. संतोष कुमार शुक्ल, प्रो. कंवर चंद्रदीप सिंह, डॉ. नरेंद्र परमार, डॉ. सुदर्शन चक्रधारी, डॉ. प्रमोद कुमार बुटोलिया समेत अन्य विद्वान शामिल थे। संगोष्ठी के दूसरे दिन 'युथिका' नाट्य मंचन कार्यक्रम ने विशेष आकर्षण का केंद्र बना। इस सांस्कृतिक कार्यक्रम ने श्रोताओं का दिल जीता और सांस्कृतिक धरोहरों के संरक्षण और पुनर्जागरण की महत्ता को उजागर किया। शुक्रवार को संगोष्ठी के समापन अवसर पर मुख्य अतिथि कंवर चंद्रदीप सिंह ने कहा कि 'सप्तसिंधु संवाद' भारतीय सांस्कृतिक पुनरुत्थान की आधारशिला है और यह संगोष्ठी भारतीय सांस्कृतिक धरोहरों को पुनः जागृत करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगी। परिसर निदेशक प्रो. सत्यम् कुमारी ने इस संगोष्ठी को शोध और अनुसंधान के लिए प्रेरणादायक बताया और इसके आयोजन की सराहना की। इस मौके पर विश्वविद्यालय के छात्र-छात्राओं, शिक्षकों और गैर-शिक्षक कर्मचारियों ने बड़ी संख्या में भाग लिया और संगोष्ठी को सफल बनाने में सहयोग दिया।