ऊना : प्रदेश में दालचीनी की खेती का शुभारंभ, आत्मनिर्भर भारत की दिशा में एक कदम

सिनामोन जिलरूप से दालचीनी के नाम से जाना जाता है, एक सदाबहार झाड़ीदार पेड़ है। जिसकी छाल और पत्तियों में एक मीठी - मसालेदार सुगंध होती है। पेड़ का मुख्य भाग इसकी छाल होती है, जिसका प्रयोग मुख्यतः मसाले के रूप में किया जाता है। एशियाई और यूरोपीय व्यंजनों में इसके उपयोग के अलावा दवा और प्रतिरक्षा बढ़ाने में इसके महत्वपूर्ण उपयोग हैं। सिनामोमम कैशिया एक अन्य प्रजाति है, जिसकी छाल का उपयोग असली दालचीनी के स्थान पर किया जाता है। हालांकि, नागोमम कैसिया में उच्च कुमेरिन की मात्रा है जो सहारपुर के लिए अच्छा नहीं है और इसी वजह से इस प्रजाति को संयुक्त राज्य अमेरिका, आयरलैंड और यूरोपीय संघ में प्रतिबंधित कर दिया गया है। सिनामोरग मुख्य रूप से श्रीलंका में उगाया जाता है, जबकि छोटे उत्गदक देशों में रोशैला मेडागार और भारत शामिल हैं। भारत चीन, श्रीलंका, वियतनाम, इंडोनेशिया और नेपाल से प्रति वर्ष 45,318 टन (909 करोड़ रुपये मूल्य की दालचीनी का आयात करता है। आश्चर्यजनक रूप से भारत फुल 45,318 टन आपात में से 37,166 टन सिनामोगम कैशिया (हानिकारक कैसिया) का वियतनाम, चीन और इंडोनेशिया से आयात करता है। इसकी खेती के लिए संभावित क्षेत्रों की पहचान की गई तथा देश में उत्पादन क्षेत्र का विस्तार करने की योजना बनाई गई। सीएसआईआर - आईएचबीटी के अनुसार हिमाचल प्रदेश के ऊना, बिलासपुर, कागड़ा, हमीरपुर और सिरमौर जिलों में इसकी खेती के लिए संभावित क्षेत्र है। यह ध्यान देने योग्य है कि देश में दालचीनी की कोई सुसंगठित खेती अथवा प्रसंस्करण नहीं है। आईसीएआर भारतीय मसाला अनुसंधान संस्थान, कालीकट केरल और कृषि विभाग, हिमाचल प्रदेश के सहयोग से कार्यान्वित किया जा रहा है। सीएसआईआर-आईटी इन दोनों संगठनों के मूल्यवान सहयोग से भारी निर्भर बनाने की दिशा में कार्य कर रहा है। वीरेंद्र कवर, मंत्री ग्रामीण विकास, पंचायतीराज, कृषि, पशुपालन एवं मतस्य पालन, हिमाचल प्रदेश सरकार ने 29 सितंबर 2021 को गांव खोली, ऊना में प्रगतिशील किसान योगराज के खेतों में इसके पौधे लगाकर हिमाचल प्रदेश में दालचीनी की खेती पर पायलट परियोजना का शुभारंभ किया। पौधरोपण के समय डॉ. संजय कुमार, निदेशक, सीएसआईआर - आईएचबीटी क्षेत्र के प्रगतिशील किसान एवं सीएसआईआर आईएचबीटी के वैज्ञानिक और कृषि विभाग के कर्मचारी भी उपस्थित थे। इसके अलावा सीएसआईआर आईएचबीटी के डॉ रमेश, डॉ सतबीर सिंह, डॉ अशोक कुमार और डॉ सुजात सिंह ने किसानों को दालचीनी की खेती के लिए प्रशिक्षित किया तथा दालचीनी प्रदर्शन क्षेत्र की स्थापना की।