जल व मृदा संरक्षण सामूहिक भागीदारी - हर्षवर्धन कथूरिया

अरण्यपाल सोलन वृत्त हर्ष वर्धन कथूरिया ने कहा कि जल संरक्षण व मृदा संरक्षण में सामूहिक भागीदारी आवश्यक है। उन्होंने कहा कि सामूहिक भागीदारी के साथ ही पर्यावरण संरक्षण संभव है और पर्यावरण के संरक्षण के माध्यम से ही जल का संरक्षण किया जा सकता है। हर्ष वर्धन कथूरिया मगलवार को हिमालयन वन अनुसंधान संस्थान शिमला के सौजन्य से केंद्र सरकार की महत्वाकांक्षी परियोजना ‘अविरल धारा, निर्मल धारा’ को सफल बनाने के लिए परामर्शक समूह की बैठक की अध्यक्ष्यता कर रहे थे।
हर्ष वर्धन कथूरिया ने कहा कि भारतीय वानिकी अनुसंधान एवं शिक्षा परिषद ने हिमालय वन अनुसंधान संस्थान को सिंधु नदी बेसिन की पांच नदियों ब्यास, चिनाब, रावि, सतलुज और झेलम की विस्तृत परियोजना रिपोर्ट तैयार करने का कार्य प्रदान किया है। इसका उद्देश्य जल संरक्षण एवं नदियों का वानिकी गतिविधियों द्वारा पुनरूद्धार सुनिश्चित बनाना है। विस्तृत परियोजना रिपोर्ट को 18 माह में तैयार किया जाना है। उन्होंने कहा कि इसके अंतर्गत राज्यों द्वारा अपने क्षेत्रों में नदी प्रबंधन के अंतर्गत चल रही वानिकी गतिविधियों का आकलन करना तथा वन अधिग्रहण क्षेत्र में पुनर्जनन तथा पारिस्थितिकीय तंत्र सुधार की क्षमताओं व संभावनाओं का आकलन करना है। इस कार्य में ग्राम स्तर तक लोगों से उनकी वास्तविक अपेक्षाओं के अनुरूप जानकारी प्राप्त की जाएगी ताकि ऐसी विस्तृत परियोजना रिपोर्ट तैयार की जा सके जो सही अर्थों में नदी का आवश्यकतानुसार पुनरूद्धार करने में सक्षम हो। उन्होंने कहा कि इस कार्य में सभी हितधारकों से विचार-विमर्श किया जाएगा। पुनरूद्धार कार्य के लिए नदियों व सहायक नदियों का पूर्ण जल अधिग्रहण क्षेत्र, मुख्य नदी तट के दोनों ओर के पांच किलोमीटर और सहायक नदी के दो किलोमीटर वाले बफर जोन का ध्यान रखा जाएगा। विस्तृत परियोजना रिपोर्ट तैयार करने में आधुनिक दूर संवेदी एवं सूचना प्रणाली प्रयोग में लाई जाएगी। अरण्यपाल ने कहा कि सभी सुझावों एवं संस्तुतियों के आधार पर वानिकी कार्यों के लिए उपयुक्त स्थल चिन्हित किए जाएंगे। मृदा व जल संरक्षण, वन्य जीव आवासीय प्रबंधन, खरपतवार उन्मूलन, पारिस्थितिकीय पुनः स्थापन, जैविक फिल्टर निर्माण, जैविक उपचार जैसे कार्य के लिए प्राकृतिक भूभाग, कृषि भू-क्षेत्र और शहरी क्षेत्रों में स्थल चयनित किए जाएंगे। क्षेत्र विशेष की जलवायु परिस्थितियों के अनुरूप संभावित वृक्षारोपण मॉडल भी विकसित किए जाएंगे।
हर्षवर्धन कथूरिया ने कहा कि नदियां पृथ्वी पर सतही जल का मुख्य स्त्रोत हैं। निचले इलाकों के लिए जल और पोषक तत्वों को ले जाने के अतिरिक्त जल विद्युत उत्पादन, कृषि गतिविधियों, पौधों व जीव-जन्तुओं को भोजन तथा आवास प्रदान करने एवं जल चक्र में नदियां महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। इसलिए नदियों का संरक्षण करना अत्यंत आवश्यक है। परामर्शक बैठक में हिमालय वन अनुसंधान संस्थान के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. संदीप शर्मा ने कहा कि सतलुज नदी बेसिन केंद्र सरकार की एक महत्वाकांक्षी परियोजना है। परियोजना के तहत सतलुज नदी के किनारे अधिक से अधिक औषधीय पौधे रोपित किए जाएंगे ताकि सिल्ट और मिट्टी को नदी में जाने से रोका जा सके। उन्होंने जानकारी दी कि परियोजना के तहत सोलन जिला के नालागढ़ उपमंडल की सरसा खड्ड को प्राथमिकता के आधार पर सतलुज नदी बेसिन की विस्तृत परियोजना रिपोर्ट में समाहित किया जाएगा। इससे पूर्व हिमालय वन अनुसंधान संस्थान के वैज्ञानिक एवं परियोजना के सिंधु नदी बेसिन के नोडल अधिकारी संजीव ठाकुर ने मुख्यातिथि व अन्य अधिकारियों का स्वागत किया तथा परियोजना के बारे में विस्तृत जानकारी प्रदान की।
परामर्शक समूह की बैठक में डॉ. यशवंत सिंह परमार बागवानी एवं वानिकी विश्वविद्यालय नौणी, सोलन के अधिष्ठाता कुलवंत राय, उपनिदेशक कृषि डॉ. पीसी साहनी तथा वन उपमंडलाधिकारी पवन कुमार ने भी अपने विचार व्यक्त किए। बैठक में वन उपमंडलाधिकारी सोलन एके वर्मा, वन उपमंडलाधिकारी नालागढ़ जेएस शर्मा, प्रदेश विद्युत बोर्ड सोलन के वरिष्ठ अधिशाषी अभियंता विकास गुप्ता सहित विभिन्न विभागों के अधिकारी उपस्थित थे।