गहरे जख्म :बेबस होकर सुष्मिता को मौत के आगोश में जाते देखता रहा वो !

पश्चिम बंगाल से रोजी रोटी की तलाश में आई सुष्मिता अब कभी अपने घर नहीं लौट पायेगी। न ही बिशन सिंह ताउम्र उस मनहूस रात को भूल पायेगा। सराज घाटी के निहरी को आपदा ने जो जख्म दिए हैं, वो शायद ही कभी भरे। इंसान लाश हो गए और घर मलबा। जो खुशकिस्मत थे बच गए , तो कई को तो शायद अंतिम संस्कार भी नसीब न हो। जो बच गए उनकी आँखों में अब खौफ है। उस मनहूस रात का भयावह चलचित्र न जाने कब तक उनके जहन में चलता रहेगा।
आपदा के दौरान मौत के मुंह से निकलकर उपचार के लिए जोनल अस्पताल मंडी पहुंचे बिशन सिंह को 30 जून की उस भयानक रात का वाक्या ज्यूँ का त्यूं याद है। चारों तरफ अंधेरा और आसमान से बरसती आफत। रात करीब साढ़े ग्यारह बजे बादल फटा था। घर के दूसरे किनारे बहने वाला नाला उफान पर था। घरों को खतरा देख बिशन सिंह , उनकी पत्नी जगदंबा देवी, पिता उत्तम शेट्टी, उनका बाचे पारस, तेजेंद्र, दामेश्वरनी और पश्चिम बंगाल से उनके पॉलीहाउस में मजदूरी करने आये दंपती 22 वर्षीय शरण और 20 वर्षीय सुष्मिताऊंचाई वाली जगह के लिए निकल पड़े।
इसी बीच भूस्खलन शुरू हो गया। बिशन सिंह और उनके पॉलीहाउस में काम करने वाली महिला मजदूर सुष्मिता पहाड़ी के मलबे के चपेट में आ गए और करीब 50 मीटर नीचे पहुंच गए। बिशन सिंह थोड़े खुशनसीब थे , उनके हाथ में एक पेड़ की टहनी आ गई। उसी टहनी को पकड़कर जैसे तैसे वो मनहूस रात गुजर गई। पर किस्मत ने सुष्मिता का साथ नहीं दिया। बिशन की आँखों के सामने वो नाले के तेज बहाव में बह गई। बेबस बिशन सिंह उसे मौत के आगोश में जाते देखता रहा, लेकिन बचा न सका।
सुबह हुई तो चारों तरफ मलबा पसरा था। बिशन की बाजू टूट चुकी थी और टांग में गहरी चोट लगी थी। किसी तरह जंगल के पथरीले और कंटीले रास्तों में रेंगता हुआ परिजनों तक पहुंचा। दो दिन भारी बारिश के चलते परिजनों के साथ रहा। फिर बुधवार को पड़ोसियों की मदद से एक कुर्सी पर बैठाकर किसी तरह उसे आयुर्वेदिक फार्मेसी निहरी पहुंचाया गया। इसके बाद वीरवार सुबह सात बजे करीब 30 किलोमीटर पैदल चलकर बगस्याड़ मुख्य सड़क तक पहुंचाया। जहाँ से निजी वाहन से वो क्षेत्रीय अस्पताल मंडी पहुंचा।