भाषा विभाग ने करवाई काव्य संगोष्ठी,क्रांतिकारी यशपाल को किया याद

भाषा एवं संस्कृति विभाग कार्यालय बिलासपुर द्वारा क्रान्तिकारी साहित्यकार यशपाल की समृति पर कवि सम्मेलन का आयोजन किया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता ज़िला भाषा अधिकारी नीलम चन्देल ने की जबकि मंच का संचालन कविता सिसोदिया ने किया। कार्यक्रम का शुभारम्भ साहित्यकारों द्वारा मां सरस्वती का दीप प्रज्जवलित करके किया गया। प्रकाश चन्द शर्मा ने सबसे पहले सरस्वती की वन्दना प्रस्तुत की। उसके उपरान्त रविन्द्र भटटा तथा जसबन्त सिंह चंदेल ने यशपाल के बारे में पत्र वाचन किए। प्रदीप गुप्ता की पंक्तियां थी- बदली गया जमाना बदली गए माहणू। ‘‘ अमर नाथ धीमान ने ‘‘ कछ नी सौग्गी आया जोको, कुछ नी सौग्गी अस्सारे जाणा‘‘। जीत राम सुमन ने, अपणी गल्ल तू अप्पू ही सोच, हुण रिश्तेयां बिच बी पईगा खोट‘‘। रविन्द्र ठाकुर की कविता की पंक्तियां थी, कहलूर के सैनिक वीर महान, दुनिया में निराली तेरी शान‘‘ । रविन्द्र शर्मा ने ‘‘ ऊकल बुटिए दिती रा धुआं, खुरक लगी जान्दी जे इर्ससा जो छुवां ‘‘। दिनेश संवत् ने कुछ यूं कहा- जो मर्जी लिवास, तय कद दो मेरा, रंग वो रहे, जिसपे दाग न लगे ‘‘। कविता सिसोदिया ने ‘‘ यशपाल स्वतँन्त्रता सेनानी, वीर क्रान्तिकारी और साहित्यकार, आप जैसी महान विभूति को हम सभी का शत्-शत् नमस्कार‘‘। सुरेन्द्र मिन्हास ने ‘‘ चिट्टा होया मेरा शहर‘ शीर्षक से रचना प्रस्तुत कीं, पंक्तियां थीं- कम्बदे हत्थ कनें कम्बदा बदन, आाग सेकणे ते नही हटदा मन्न‘‘ । शिवपाल गर्ग ने ‘‘ न हम जाणी न जाणी सखियां। एस.आर.आजाद ने -कियां हो किसी पर बी हो, द्वाड़ा बाह्णा ठीक नीं हंुदा, घरे किसी रे दूर, पार - बी प्वाड़ा पाणा ठीक नीं हुन्दा‘‘। रामपाल डोगरा ने- ‘‘ मोदी जी के नाम पाती‘‘। बुद्धि सिंह चन्देल की पंक्तियां थीं- लाख टके की बात कहॅू मैं, सुन लो मेरे यार‘‘ । जसबन्त सिंह चन्देल ने ‘‘ बृद्धाश्रम से मां की पुकार‘‘ शीर्षक से रचना प्रस्तुत कीं, पंक्तियां थीं - बृद्धाश्रम से बूढ़ी मां, बेटे को पुकार रही है, सीढ़ियों पर बैठी-2 राह देख रही है‘‘। तृप्ता देवी ने ‘‘ हार ‘‘ शीर्षक से रचना प्रस्तुुत , पंक्तियां थी- हम इसलिए हारे कि उन्हे हमारी हार पसंन्द थी‘‘। सत्या शर्मा ने - नन्ही सी कली जब आंगन में खिली, शैवाल सने आंगन में मानो सुनहरी धूप खिली‘‘। लश्करी राम ने - व्यास ऋ़षिए सोनू देवी ने ‘‘ जवानी पर ही चोट होआ दी, भटका दे ए सोच होआं दी ‘‘। सुशील पुण्डीर ने परींदा शीर्षक से रचना प्रस्तुत कीं, पंक्तियां थीं- परिंदा हूं मैं, परिंदा ही रहने दो मुझे, कहते तो इंसां मुझे तुम इन्सानियत का खुश्बू अब नहीं इंसां से मुझे‘‘ । प्रोमिला भारद्वाज ने ‘‘ बिन नैसर्गिक हरियाली, पहाड़ ,पहाड़ नहीं लगते, बिन मानवीय गुणों, मनुष्य, मनुष्य नहीं लगते‘‘। कौशल्या देवी की पंक्तियां थीं- नारियों पर अत्याचारी , अब नहीं सहेगा सभ्य समाज‘‘। अरूण डोगरा रितू ने- छली जाती सैकडों अबलाएं,, नहीं रहा उनका सम्मान, गाजर मूली से कटते लोग, सस्ती हो गई इन्सानी जान‘‘। प्रकाश चन्द शर्मा ने पहाड़ी गीत सुनाया। डाॅ0 अनेक राम सांख्यान ने -बंगला प्रस्तुति- विद्रोही-नजरूल इस्लाम ‘‘ बोलो वीर चिरोन्नत ममशीर‘‘। डाॅ0 सुरेन्द्र सुमन ने गालिब के उपर कविता पाठ किया। इन्द्र सिंह चन्देल ने पहाड़ी लोकगीत प्रस्तुत किया। इस अवसर पर लोकनाट्क समिति झण्डूता द्वारा धार्मिक गीत तथा लोकगीत प्रस्तुत किए। अन्त में ज़िला भाषा अधिकारी नीलम चंदेल ने सभी साहित्य कारों का इस कार्यक्रम में रचनाएं प्रस्तुत करने के लिए आभार व्यक्त किया और साहित्यकार यशपाल के जीवन पर प्रकाश डाला तथा विभाग के कार्यक्रमों का विवरण प्रस्तुत किया । इस अवसर पर इन्द्र सिंहं चन्देल, अमर सिंह, इत्यादि काफी संख्या में दर्शक शामिल रहे।