हिमालय क्षेत्र का आर्थिक उत्थान वाणिज्यिक फसलों से संभव : डॉ विक्रम

उत्तरी भारत जम्मू कश्मीर से शुरू होता हुआ हिमाचल, उत्तराखंड, बिहार से उत्तरी पूर्वी क्षेत्र के हिमालयी क्षेत्रों की अर्थव्यवस्था बदलने के लिए मात्र अन्तराष्ट्रीय वाणिज्यिक फसलों पर शोध व प्रसार के द्वारा कृषक स्वावलम्बन पूर्णतः सम्भव है। यह बात डॉ विक्रम शर्मा जो पिछले 20 वर्षों से हिमाचल व हिमालयी क्षेत्रों की भौगोलिक परिस्थितियों व पर्यावरण अनुकूलता को समझते हुए वाणिज्यिक कृषि बागवानी पर शोध व प्रसार में जुटे हैं। उन्होंने बताया कि उनका 20 वर्ष का अनुभव बताता है कि शिवालिक हिमालयी क्षेत्र व ऊपरी ठंडे मरुस्थल की आर्थिक स्थिति को सुदृढ़ करने के लिए हमें किसानों के साथ शोधकर्ताओं व शोध संस्थानों को मिलकर सरचंनात्मक तरीके से हिमालयी भूगोल को समझना व उस पर हुए शोध करना चाहिए जो आजतक नहीं हो पाया। डॉ शर्मा ने बताया कि उत्तरी भारत की जलवायु इतनी उपयुक्त व अनुकूल है कि दुनिया की कोई भी फसल इसमें पैदा की जा सकती है। डॉ विक्रम पिछले कई वर्षों से हिमाचल प्रदेश के निचले क्षेत्रों जिनमें बिलासपुर,हमीरपुर, कांगड़ा, चंबा,ऊना,सोलन व सिरमौर क्षेत्र में कॉफ़ी उगाने में सफल परीक्षण किए हैं जो कामयाब साबित हुए। उन्होंने बताया कि हिमाचल व हिमालयी क्षेत्र में पैदा होने वाली कॉफ़ी अपने आप में एक अलग सी खुशबू व स्वाद लिए हुए है जिसका मुख्य कारण यहां की जलवायु में ठंड व गर्मी का उतार चढ़ाव है।
डॉ शर्मा पिछले कई वर्षों से मुफ्त कॉफ़ी ,अंजीर, दालचीनी पौधों व कॉफ़ी के बीजों का वितरण भी करते आए हैं जिसका मकसद मात्र किसानों को अन्तराष्ट्रीय वाणिज्यिक फसलों से अवगत करवा कर उसे अपनाने के लिए प्रेरित करना है। डॉ विक्रम ने बताया कि शिवालिक हिमालयी क्षेत्र में उनके मुताविक कॉफ़ी,अवोकेडो,अंजीर, पिस्ता व अंगूर की वैश्विक मांग की वैरायटी को प्रमुखता से उगाया जा सकता है,जिससे इस क्षेत्र में पड़ने वाली भूमि का सही उपयोग व स्थानीय लोगों को आर्थिक उत्थान व स्वरोजगार मिल सकता है। उन्होंने कहा कि दालचीनी, कॉफ़ी, पिस्ता जैसे बहुमूल्य वैश्विक बाजार के उत्त्पाद जंगली जानवरों व आवारा पशुओं से भी पूर्णतः सुरक्षित हैं।
डॉ विक्रम ने कहा कि उत्तरी भारत का बहुत बड़ा हिस्सा बंजर होने के कगार पर है जिसका मुख्य कारण कृषि बागवानी में आ रही कमी व कई कारणों से बंजर होती जमीनें हैं। आवारा पशुओं व बंदरों के आतंक के कारण स्थानीय लोग पलायन को मजबूर हो चुके हैं जो एक बहुत बड़ी सामाजिक समस्या बनती जा रही है। डॉ विक्रम ने बताया कि निचले हिमालयी शिवालिक क्षेत्र में पिस्ता जैसी बहुमूल्य फसल का उत्त्पादन किया जा सकता है क्योंकि यह क्षेत्र इसके लिए काफी उचित है, साथ ही पिस्ता के पौधों के लिए ज्यादा देख रेख की भी जरूरत नहीं पड़ती। अधिकतर पिस्ता ईरान, तुर्की, अफगानिस्तान, अमेरिका व यूरोपीय देशों से हमारे देश में आयात किया जाता है। डॉ शर्मा ने उत्तरी भारत के किसानों व युवाओं से आह्वान किया कि आइए मिलकर देश व स्वरोजगार को बढ़ावा देने के लिए अन्तराष्ट्रीय वाणिज्यिक फसलें अपनाएं जिससे युवाओं को रोज़गार मिले।