परमात्मा को जानना ही नहीं, बल्कि मानना भी जरूरी
संत निरंकारी सत्संग भवन दाड़लाघाट में साप्ताहिक सत्संग में रविवार को सयोंजक महात्मा शंकर दास निरंकारी ने मिशन का संदेश दिया।प्रवचनों की अमृतवर्षा करते हुए उन्होंने कहा कि न केवल परमात्मा को जानना बल्कि परमात्मा की मानना भी जरूरी है।परमात्मा की मानने में तभी आनंद है जब हम परमात्मा को जान लेते हैं।इसीलिए कहा गया है कि पहले जानो फिर मानो।महात्मा शंकर दास निरंकारी ने कहा कि परमात्मा कण-कण में व्याप्त है।इसका बोध पूर्ण गुरु द्वारा ही संभव है।उन्होंने कहा कि सद्गुरु का यहीं संदेश है कि गृहस्थ जीवन में रह कर ही इनसानियत की सेवा करें।दूसरों के दुख बांटे,वहीं दूसरों की खुशी में भी सहभागी बने।ईश्वर को वह लोग प्रिय हैं जो इनसानियत से प्यार करते हैं।परोपकारी जीवन जीते हैं और जहां भी मौके मिले दूसरों के हमदर्द बनने के प्रयास में रहते हैं।
महात्मा शंकर दास निरंकारी ने कहा कि सद्गुरु से परमात्मा को बोध करके हम ब्रह्मज्ञानी अर्थात निरंकारी तो कहलाते हैं मगर वास्तविक निरंकारी हम तभी कहलाते हैं जब सद्गुरु के उपदेशों का अनुसरण करते हैं।इससे पहले मिशन के अन्य अनुयाइयों ने भजन,प्रवचन और कविता के माध्यम से कण-कण में व्याप्त निराकार सत्ता का गुणगान किया।इस मौके पर काफी संख्या में निरंकारी समुदाय के अनुयायियों उपस्थित रहे।अंत में लंगर का भी आयोजन किया गया।
