रसायनयुक्त खेती करती है घातक प्रभाव, अपनाएं प्राकृतिक उपाय
रसायनयुक्त खेती तथा जैविक खेती के दुष्प्रभाव मानव शरीर पर विपरीत प्रभाव डाल रहे हैं। यह जानकारी आतमा के परियोजना निदेशक रविंद्र सिंह जसरोटिया ने दी। उन्होंने जिला के समस्त किसानों से गेहूं की फसल पर लगने वाले विभिन्न रोगों का उपचार प्राकृतिक विधि से करने का आह्वान किया। गेहूं की फसल पर पीला रतुआ आदि का प्रभाव करने तथा पौधें को नाइट्रोजन उपलब्ध करवाने के लिए किसान गेहूं की फसल पर लगातार प्रति सप्ताह खट्टी लस्सी (4-5 दिन पुरानी) का 1.8 से 2.0 लीटर 60 लीटर पानी में घोल बनाकर प्रति बीघा में छिड़कावं करें। इसके उपरांत किसान 20 से 21 दिन के अंतराल पर 6 लीटर जीवामृत को 60 लीटर पानी में घोल बनाकर प्रति बीघा में छिड़काव करें। किसान 15 दिन के अंतराल पर सौंठास्त्र का छिड़काव करें। उन्होंने जिला के किसानों को परामर्श दिया कि सब्जियों की पनीरी लगाते समय बीज को तथा पौधे की रोपाई के समय बीजामृत से अवश्य संस्कारित करें। इससे बीज को अंकुरण क्षमता भी बढ़ेगी तथा पौधे स्वस्थ एवं निरोग रहेंगे। परियोजना निदेशक ने कहा कि टमाटर व शिमला मिर्च की खेती में कम से कम 40 किलोग्राम घनजीवामृत प्रति बीघा खेत की जुताई के समय अच्छे से मिला दें। किसान मटर की फसल पर जीवामृत का छिड़कावं 21 दिन के अंतराल पर कर सकते हैं। उन्होंने कहा कि फसल को रोगों से बचाने के लिए खट्टी लस्सी, सौंठास्त्र व जंगल की कण्डी का छिड़काव समय-समय पर करते रहे। किसान फसल की अच्छी पैदावार एवं गुणवत्ता के लिए सप्तधान्याकुर का छिड़काव अवश्य करें। किसान इस संबंध में अधिक जानकारी के लिए अपने नजदीक के कृषि कार्यालय एवं तकनीकी प्रबंधक तथा सहायक तकनीकी प्रबंधक से संपर्क कर सकते हैं।
