श्रम कानूनों में परिवर्तन श्रमिकों के हितों पर कुठाराघात : ओमप्रकाश शर्मा
अखिल भारतीय सीमेंट मज़दूर महासंघ (भारतीय मजदूर संघ) के राष्ट्रीय उपमहासचिव ओमप्रकाश शर्मा ने कहा है कि श्रम कानून में संशोधन करने से श्रमिकों को भारी नुकसान है। 1862 कलकत्ता फेक्ट्री श्रमिकों ने 12 से 8 घण्टे कराने के लिए आंदोलन किया था। इसके बाद सभी राज्यों में आंदोलन हुए फिर 1948 में फेक्ट्री एक्ट बना। इसमें आठ घण्टे काम का प्रावधान किया गया और नियम लागू किए गए।आज कुछ प्रदेशों ने श्रम समय 8 से 12 घण्टे करने की योजना तैयार की है। सरकार द्वारा ट्रेड यूनियन एक्ट 1926 के अधिकार को समाप्त करने की तैयारी है जो पूर्णतया मज़दूर विरोधी हैं क्योंकि इससे 33 प्रतिशत श्रमिक बेरोजगार हो जाएगा।
ओमप्रकाश शर्मा ने कहा है कि सरकार का नैतिक दायित्व बनता है कि बड़े शहरों से आए हुए प्रवासी श्रमिकों के लिए एक्ट-79 की पालना हो लेकिन नही की जा रही है। आपदा के समय श्रमिकों को सरकार किराया देकर उचित स्थान पर पहुंचाए लेकिन यह भी नहीं हो रहा है जो सरकार के ऊपर बहुत बड़ा प्रश्नचिन्ह है क्योंकि वैश्विक महामारी कोरोना के दौरान सबसे अधिक परेशानी पीड़ा प्रवासी मज़दूरों ओर उनके परिवार जनों को हुईं हैं। इस संकट के समय सरकार का दायित्व बनता है कि श्रमिकों के जीवन यापन के लिए उचित योजना बनाई जाएं जिससे उनका पालन पोषण और राष्ट्र निर्माण का कार्य चल सकें।
ओमप्रकाश शर्मा ने कहा कि कॉरपोरेट घराने के पक्ष में श्रम कानून को कमजोर किया जा रहा है इससे आने वाला समय श्रमिकों कठिन होगा। श्रम कानूनों में परिवर्तन श्रमिकों के हितों पर कुठाराघात है। लॉक डाउन के पूर्व भारत मे 44 श्रम कानून थे। केंद्र सरकार ने इसको चार कोड में लाने की प्रक्रिया पहले ही चालू कर दी थी दो कोड लॉक डाउन के पूर्व आ गए थे। इस समय वेतन कटौती ओर छंटनी रिकॉर्ड स्तर पर है इस समय इन कानूनों की श्रमिकों को सबसे ज्यादा जरूरत थी भाजपा शासित प्रदेशों में तेजी से श्रमिक विरोधी नीतियां लागू की जा रही है जिसका सीधा प्रभाव आने वाले चुनाव में अवश्य पड़ेगा क्योंकि श्रमिकों की पीड़ा, परेशानी और दर्द जो नहीं समझेगा उसे भारत की जनता जनार्धन कभी माफ नहीं करेगी।
