राम नगरी अयोध्या ...... दशकों का अतीत भूल कर एक नया इतिहास लिखने जा रही है। राम मंदिर का निर्माण अंतिम दौर में है और सम्भवतः 24 जनवरी 2024 वो ऐतिहासिक तारीख होगी जब राम मंदिर में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा होगी, लेकिन जब भी राम मंदिर से जुड़े इतिहास की बात होती है तो एक सवाल आप सबके मन में भी ज़रूर आता होगा की राम की जन्मभूमि पर राम मंदिर बनाने को लेकर इतना विवाद क्यों ? खेर मेरा मानना है कि राम मंदिर का पूरा इतिहास शब्दों में समेटना किसी के लिए संभव नहीं है, लेकिन बाबरी ढाँचा तो आपको याद ही होगा और बाबरी विध्वंस को याद करने के लिए 6 दिसम्बर से मुनासिब तारीख और क्या होगी। बाबरी विध्वंस का जब भी होता जिक्र है तो कोठारी बंधुओं के योगदान की चर्चा अक्सर की जाती है।
राम और शरद कोठारी नियमित रूप से बुराबार की राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की शाखा में जाया करते थे। 22 और 20 साल की उम्र के इन दोनों भाइयों ने आरएसएस की तीन साल की होने वाली ट्रेनिंग के दो साल बहुत ही बेहतरीन तरीके से पूरे किए थे।अन्य कारसेवकों की तरह ही कोलकाता के रहने वाले कोठारी बंधुओं ने भी विश्व हिन्दु परिषद की कार सेवा में शामिल होने का निर्णय लिया था। 20 अक्टूबर 1990 को दोनों भाईयों ने अपने पिता को अयोध्या जाने के इरादे के बारे में बताया। उनके पिता उन्हें इस यात्रा में भेजने के इच्छुक नहीं थे क्योंकि उनकी बेटी पूर्णिमा का विवाह दिसंबर में था. वो चाहते थे कि कम से कम एक भाई तो शादी समारोह में शामिल रहे। उस समय दोनों ही भाई अपने फैसले पर कायम रहे और उन्होंने यात्रा में जाने का फैसला किया।
22 अक्टूबर को दोनों ने कोलकाता से ट्रेन के जरिये रवानगी भरी। अक्तूबर के तीसरे सप्ताह तक उत्तर प्रदेश सरकार ने अयोध्या में कार सेवकों को जुटने से रोकने के लिए ट्रेन पर रोक लगा दी थी। करीब 200 किलोमीटर पैदल चल कर 30 अक्टूबर की सुबह दोनों भाई अयोध्या पहुंचे। ये तारीख अयोध्या राम मंदिर आंदोलन के संघर्ष का महत्वपूर्ण दिन था, ये वो दिन था जब कोठारी बंधुओं ने विवादित परिसर में बने बाबरी मस्जिद पर भगवा ध्वज लहराया था। इन दोनों भाइयों ने पहली बार विवादित ढाचें पर भगवा झंडा फहराकर कारसेवकों के बीच सनसनी फैला दी थी। पुलिस प्रशासन को चुनौती देते हुए दोनों भाई बाबरी मस्जिद की गुबंद पर चढ़ गए थे और भगवा ध्वज लहराकर आराम से नीचे उतर गए थे। कोलकाता के कोठारी बंधुओं के बाबरी पर भगवा लहराने की घटना बेहद ही चर्चित है। भगवा पताका लहराकर नीचे उतरने के बाद दोनों भाइयों शरद और राजकुमार को सीआरपीएफ के जवानों ने लाठियों से पीटकर खदेड़ दिया।
30 अक्टूबर को गुंबद पर पताका लहराने के बाद शरद और रामकुमार 2 नवंबर को विनय कटियार के नेतृत्व में दिगंबर अखाड़े की तरफ से हनुमानगढ़ी की तरफ जा रहे थे। जब पुलिस ने फायरिंग शुरू की तो दोनों भाई एक घर में जा छिपे। लेकिन थोड़ी देर बाद दोनों बाहर निकले तो पुलिस की फायरिंग का शिकार हो गए। दोनों ने ही मौके पर दम तोड़ दिया।
**हिंदी बेल्ट में अकेले दम पर सिर्फ हिमाचल में बची कांग्रेस की सरकार
**2019 में हिंदी पट्टी की 251 में से सिर्फ 7 पर जीता था कांग्रेस गठबंधन
2018 में जब कांग्रेस जब तीन राज्यों में जीती थी, तब भी 2019 में पीएम मोदी के चेहरे के सामने कांग्रेस का सूपड़ा साफ़ हो गया था। इस बार तो हिंदी पट्टी के इन तीन राज्यों में कांग्रेस का सूपड़ा साफ़ हुआ है। ये 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले पार्टी के लिए बड़ा झटका है। कांग्रेस के तमाम दावे हवा हवाई हो गए और हिंदी पट्टी के तीन बड़े राज्यों, राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में कांग्रेस को करारी शिकस्त मिली है। यहाँ कांग्रेस का हर दांव उल्टा पड़ा। ऐसे में 2024 में केंद्र की सत्ता तक पहुंचने का कांग्रेस का ख्वाब फिलहाल पूरा होना मुश्किल होगा। इन तीन राज्यों में ही 65 लोकसभा सीटें है। आपको याद दिला दें कि 2018 में तीनों राज्यों में कांग्रेस की सरकार बनी थी, बावजूद इसके 2019 में कांग्रेस के हिस्से आई थी महज 3 सीटें। वहीँ इस बार भाजपा ने मोदी के चेहरे पर विधानसभा चुनाव लड़ा तो तीनों राज्यों में कांग्रेस साफ़ हो गई और ऐसे में 2024 में कांग्रेस का टिकना बेहद मुश्किल होगा। इन तीन राज्यों में कांग्रेस को बड़ा झटका लगा है, उसका ओपीएस कार्ड भी फेल हो गया और गारंटी मॉडल भी। वहीँ राहुल गाँधी की जिस बढ़ती लोकप्रियता का दावा कांग्रेस कर रही थी वो दक्षिण में तो दिखी लेकिन हिंदी पट्टी में वैसा नहीं दिखा। नतीजे तो ये ही बताते है।
बगैर हिंन्दी पट्टी में खुद को मजबूत किये कांग्रेस किस आधार पर 2024 में जीत का स्वपन देख रही है, ये पार्टी के रणनीतिकार ही जानते है। इन तीन राज्यों को छोड़े भी दे तो उत्तरप्रदेश, बिहार, गुजरात और दिल्ली में भी पार्टी वेंटिलेटर पर दिखती है। इन राज्यों में 153 लोकसभा सीटें है और राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ को जोड़कर ये आंकड़ा 218 हो जाता है। इसके अलावा 10 सीटों वाले हरियाणा और 5 सीटों वाले उत्तराखंड में भी न कांग्रेस सत्ता में है और न कोई बड़ा तिलिस्म करने की स्थिति में दिखती है। वहीँ 14 सीटों वाले झारखण्ड में कांग्रेस गठबंधन सरकार का हिस्सा है लेकिन अकेले दम पार्टी की हैसियत किसी से छिपी नहीं है। हिंदी पट्टी में हिमाचल प्रदेश इकलौता राज्य है जहाँ कांग्रेस की सरकार है, लेकिन चार सीटों वाले इस छोटे प्रदेश में भी पार्टी बहुत सहज नहीं दिखती।
कुल मिलाकर हिन्द्दी पट्टी में 251 लोकसभा सीटें है। 2019 के लोकसभा चुनाव में यूपीए को इनमें से सिर्फ 7 पर जीत मिली थी। हालांकि तब बिहार में जेडीयू एनडीए का हिस्सा था और यूपी में सपा और बसपा मिलकर लड़े थे और
यूपीए गठबंधन का हिस्सा नहीं थे। अब यूपीए गठबंधन खत्म हो चूका है और विपक्ष ने इंडिया गठबंधन बनाया है लेकिन ये नए पैकेट में पुराने सामान की तरह ही दिख रहा है। सपा और कांग्रेस के बीच मध्य प्रदेश में तल्खियों का ट्रेलर दिख चूका है और नतीजा भी अब सबके सामने है। वहीँ जेडीयू भी कांग्रेस के रवैये से नाखुश है।
कांग्रेस और आप भी आमने -सामने है। ऐसे में हिंदी पट्टी में विपक्ष कैसे भाजपा से लड़ पायेगा, ये तो माहिरों की भी समझ से परे है। कांग्रेस विपक्ष की धुरी है और हिंदी पट्टी में जीत दिल्ली का रास्ता प्रशस्त करती है। ऐसे में हिंदी पट्टी में कमजोर होकर कांग्रेस न तो विपक्ष की अगुवाई कर सकती है और न ही भाजपा से मुकाबला।
मोदी की टक्कर में चेहरा नहीं !
इस हार ने कांग्रेस की पुरानी कमी को फिर उजागर कर दिया। हिंदी पट्टी में प्रधानमंत्री मोदी सबसे लोकप्रिय नेता है और कांग्रेस के पास कोई ऐसा चेहरा नहीं जो टक्कर दे सके। भारत जोड़ो यात्रा के बाद राहुल गाँधी को दक्षिण में तो लोकप्रियता मिली है लेकिन हिंदी पट्टी में अब भी राहुल की लोकप्रियता में कोई ख़ास बदलाव नहीं दिखता। जो दीवानगी पीएम मोदी के लिए इन तीन राज्यों में दिखी वो भाजपा की जीत का बड़ा कारण है। तीन राज्यों के चुनावों की बात करें तो सिर्फ राजस्थान में अशोक गहलोत ऐसा चेहरा दिखे जो भाजपा को मुद्दों पर घेरते दिखे और टक्कर में भी लगे, ये ही कारण है भाजपा को राजस्थान में पूरी ताकत झोंकनी पड़ी। इसके अलावा पूरी कांग्रेस में हिन्द्दी पट्टी का एक भी ऐसा चेहरा नहीं दिखता जो मुकाबले में खड़ा भी दिखे। हालांकि प्रियंका गाँधी भी भीड़ जुटाने में कामयाब दिखी लेकिन भीड़ वोटों मे नहीं बदल पाई। राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे दक्षिण से आते है और उसका लाभ पार्टी को कर्णाटक और तेलंगाना में मिला भी है, लेकिन वे हिंदी पट्टी से वैसे कनेक्ट नहीं कर पाते जिस तरह पीएम मोदी करते है। ऐसे में कांग्रेस को नीति रणनीति में बदलाव की सख्त जरुरत है।
**कांग्रेस ने 1500 का वादा किया, शिवराज ने 1250 प्रतिमाह दिया
**हिमाचल के अधूरे वादे को भाजपा ने जमकर भुनाया
लाडली बहना योजना ...ये शिवराज सिंह चौहान की वो योजना है जो मध्य प्रदेश चुनाव में गेम चैंजेर सिद्ध हुई। इस योजना के तहत सरकार प्रदेश में हर महिला के खाते में 1,250 रुपए हर महीने ट्रांसफर करती है, यानी सालाना महिलाओं को 15,000 रुपये की आर्थिक सहायता दी जाती है। इसके जवाब में मध्य प्रदेश में कांग्रेस ने नारी सम्मान योजना के तहत महिलाओं को 1500 रुपये महीना देने की गारण्टी दी थी, यानी ढाई सौ रुपये ज्यादा। ये कांग्रेस की 11 गारंटियों में से एक थी। पर मध्य प्रदेश में शिवराज सिंह चौहान की लाड़ली बहना योजना कांग्रेस की हर गारंटी पर भारी पड़ी। दरअसल कांग्रेस तो सिर्फ वादा कर रही थी और भाजपा इस योजना का लाभ दे रही थी। ऐसे में महिलाओं ने वादे पर ऐतिबार नहीं किया बल्कि लाडली बहन योजना को जहन में रखा।
ठीक ऐसी ही योजना का वादा कांग्रेस ने हिमाचल प्रदेश में किया था जहाँ महिलाओं को 1500 रुपये प्रतिमाह देने की गारंटी दी थी। पर अब तक महिलाओं को इसका इंतजार है। भाजपा ने इसे मध्य प्रदेश में जमकर भुनाया। हिमाचल प्रदेश के भी सैकड़ों भाजपा नेता-कार्यकर्ता मध्य प्रदेश में प्रचार के लिए पहुंचे और सभी ने खुले मंचों से कहा की हिमाचल में कांग्रेस ने अब तक महिलाओं को दी गारंटी पूरी नहीं की है। अब तक महिलाएं इन्तजार में है। ये सच भी है। ऐसे में जाहिर है मध्य प्रदेश में महिलाओं ने कांग्रेस के वादे पर नहीं शिवराज सरकार के काम पर भरोसा जताया।
बहरहाल मध्य प्रदेश में भाजपा की जीत हिमाचल की कांग्रेस सरकार के लिए भी एक सीख जरूर हैं। आधी आबादी को साधकर सत्ता की राह आसानी से प्रशस्त की जा सकती हैं, यदि वादे पुरे किये हो। निसंदेह प्रदेश की ख़राब आर्थिक स्थिति कांग्रेस के सामने सबसे बड़ी बाधा हैं, लेकिन जब कर्मचारियों को ओपीएस मिल सकती हैं तो आधी आबादी 1500 रुपये प्रतिमाह क्यों नहीं ? बहरहाल ये कांग्रेस को तय करना हैं कि किस तरह वो गारंटियों को पूरा करती हैं, यदि पार्टी खानापूर्ति करती हैं तो वोटर भी खानापूर्ति ही करेगा
The BJP secured victories in Madhya Pradesh, Rajasthan, and Chhattisgarh without projecting a chief ministerial face, relying primarily on the appeal of Prime Minister Narendra Modi. Despite the absence of local leaders, the party emerged triumphant, reclaiming control after setbacks in Karnataka. The central leadership now has the flexibility to choose new chief ministers and foster regional leadership. While potential leaders like Shivraj Singh Chouhan and Vasundhara Raje remain popular in their states, their distance from the central leadership poses a challenge. Party insiders acknowledge their influence but stress the need for stability in the long term. Lessons from Karnataka and other states highlight the importance of aligning leadership choices with sustained electoral success. In the aftermath of the victories, BJP leaders credited Prime Minister Modi for the triumph. The party's shift towards central leadership echoes a similar trend a decade ago when Modi emerged as the prime leader, sidelining other prominent figures. The fate of several familiar BJP faces in Madhya Pradesh, Chhattisgarh, and Rajasthan now hangs in uncertainty amid this evolving political landscape.
MAHILA sashaktikaran ki aawaaz hoon; main Shivraj hoon, main Shivraj hoon
Shivraj Singh Chouhan, the four-time Chief Minister of Madhya Pradesh, secured victory in the recent elections with a campaign focused on women's empowerment. Despite initial doubts within the BJP leadership about naming him as the face of the campaign, Chouhan strategically highlighted his schemes for women, including a 35% job quota announcement. He actively engaged in 'The Ladli Show,' showcasing his personal journey and commitment to women's issues. The show premiered on Chouhan's YouTube channel coinciding with the passage of the women's reservation bill in Parliament. Chouhan's emotional appeal, such as shedding tears during speeches and washing the feet of women at events, aimed to connect with voters. He presented himself as a family man, emphasizing his love for his late mother and his commitment to spending time with his wife and sons. Chouhan believed that women, constituting over 48% of the total voters in the state, would play a crucial role in his victory. The win marked a significant achievement for Chouhan, considering his uneasy relationship with the central leadership in the past.
अयोध्या में आज ही के दिन बाबरी मस्जिद का ढांचा गिराया गया था। इसके बाद हिंसक घटनाएं हुईं और विवादित मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा, जिसके बाद साल 2019 में सुप्रीम कोर्ट ने केस की सुनवाई कर फैसला दिया और विवाद को हमेशा के लिए खत्म कर दिया। हालांकि, इसके बाद भी तमाम संगठनों और नेताओं द्वारा इस मुद्दे को उठाया जाता रहा है।
5 दिसंबर 1992 की सुबह से ही अयोध्या में विवादित ढांचे के पास कारसेवक पहुंचने शुरू हो गए थे। उस समय सुप्रीम कोर्ट ने विवादित ढांचे के सामने सिर्फ भजन-कीर्तन करने की इजाजत दी थी, लेकिन अगली सुबह यानी 6 दिसंबर को भीड़ उग्र हो गई और बाबरी मस्जिद का विवादित ढांचा गिरा दिया। कहते हैं कि उस समय 1.5 लाख से ज्यादा कारसेवक वहां मौजूद थे। इसके बाद देशभर में सांप्रदायिक दंगे भड़क उठे। इन दंगों में 2 हजार से ज्यादा लोग मारे गए थे। मामले की FIR दर्ज हुई और 49 लोग आरोपी बनाए गए। आरोपियों में लालकृष्ण आडवाणी, उमा भारती, मुरली मनोहर जोशी, कल्याण सिंह, चंपत राय, कमलेश त्रिपाठी जैसे भाजपा और विहिप के नेता शामिल थे। मामला 28 साल तक कोर्ट में चलता रहा और 30 सितंबर 2021 को लखनऊ की CBI कोर्ट ने सभी आरोपियों को सबूतों के अभाव में बरी कर दिया। फैसले के वक्त तक 49 में से 32 आरोपी ही बचे थे, बाकी 17 आरोपियों का निधन हो चुका था।
इसके अलावा 9 नवंबर 2020 को सुप्रीम कोर्ट ने जमीन के मालिकाना हक को लेकर फैसला दिया था। इस फैसले के तहत जमीन का मालिकाना राम जन्मभूमि मंदिर के पक्ष में सुनाया। मस्जिद के लिए 5 एकड़ जमीन अलग से देने का आदेश दिया।
493 करोड़ रुपये की महत्वकांक्षी योजना से सीमावर्ती क्षेत्रों में सुदृढ़ होगी विद्युत अधोसंरचना: मुख्यमंत्री
मुख्यमंत्री ठाकुर सुखविंदर सिंह सुक्खू ने कहा कि प्रदेश सरकार राज्य के सीमावर्ती क्षेत्रों में विद्युत अधोसंरचना को बड़े पैमाने पर मजबूती प्रदान करने के उद्देश्य से 493 करोड़ रुपये की महत्वकांक्षी योजना पर कार्य कर रही है। प्रदेश सरकार के इस निर्णय से रणनीतिक रूप से महत्त्वपूर्ण सैन्य और अर्द्धसैनिक प्रतिष्ठानों को निर्बाध विद्युत आपूर्ति की एक सुदृढ़ व्यवस्था सुनिश्चित होगी। साथ ही इससे किन्नौर और लाहौल-स्पीति जिलों के सीमावर्ती क्षेत्रों के लोग भी लाभान्वित होंगे।
उन्होंने कहा कि सीमावर्ती क्षेत्रों में विद्युत अधोसंरचना को सुदृढ़ करने के लिए राज्य सरकार द्वारा दो विस्तृत परियोजना रिपोर्ट (डीपीआर) तैयार की गई हैं। इनमें से 486.47 करोड़ रुपये की पहली डीपीआर को अंतिम रूप दिया जा चुका है। इसमें सुमदो और काजा में दो 66/22 केवी क्षमता और 2x6.3 एमवीए सब स्टेशनों का निर्माण किया जाएगा। इसके अतिरिक्त, पूह से काजा तक 130 किलोमीटर लम्बी 66 केवी लाइन स्थापित की जाएगी। उन्होंने कहा कि इन कार्यों के पूरा होने के बाद पूह से काजा तक सीमावर्ती क्षेत्रों में रहने वाले आम लोगों के साथ-साथ सीमा क्षेत्रों में सेना, सीमा सड़क संगठन और भारत-तिब्बत सीमा पुलिस चौकियों को भी गुणवत्तापूर्ण और विश्वसनीय विद्युत आपूर्ति सुनिश्चित होगी। इसके अतिरिक्त, 13 सीमा चौकियों पर संबंधित 22 केवी लाइन के साथ 13 वितरण ट्रांसफार्मर (डीटीआर) स्थापित किए जाएंगे।
उन्होंने कहा कि 6.49 करोड़ रुपये की एक अन्य डीपीआर के तहत 32 गांवों में निर्बाध विद्युत आपूर्ति के लिए आवश्यक बुनियादी ढांचे का विकास किया जाएगा। इससे किन्नौर जिले के 12 गांव और लाहौल-स्पीति जिले के स्पीति ब्लॉक के 20 गांव लाभान्वित होंगे। इस योजना में 25 नए वितरण ट्रांसफार्मर की स्थापना के साथ-साथ 3 मौजूदा वितरण ट्रांसफार्मर तथा 22 केवी लाइन और एलटी लाइन का संवर्द्धन शामिल है।
इस योजना से लाभान्वित होने वाले गांवों में किन्नौर जिले के थंकारामा, सुन्नी (लियो), थंकरमा (कुंगधा), चांगो, बटसेरी (चिस्पान), छितकुल, चुलिंग (ताशजोंग), चारंग (रंगरिक), चांगो उपेरला, लाब्रांग, हंगमत और रकछम शामिल हैं। इसके अतिरिक्त लाहौल-स्पीति जिले में धारछोछोड़ुन, धारसुमदो, गिपू, हिक्किम, हुल, हर्लिंग, कौरिक, कजाखास, काजा सोमा, की, किब्बर खास, कोमिक, क्यामो, लालुंग खास, लारा खास, लिदांग, लिरिट, रामा खास, समदो और शेगो गांव शामिल हैं।
मुख्यमंत्री ने कहा कि सरकार की इस योजना से सीमावर्ती क्षेत्रों के लोगों को गुणवत्तापूर्ण, विश्वसनीय और सस्ती विद्युत आपूर्ति की सुविधा मिलेगी।
**कांग्रेस ने 1500 का वादा किया, शिवराज ने 1250 प्रतिमाह दिया
**हिमाचल के अधूरे वादे को भाजपा ने जमकर भुनाया
लाडली बहना योजना ...ये शिवराज सिंह चौहान की वो योजना है जो मध्य प्रदेश चुनाव में गेम चैंजेर सिद्ध हुई। इस योजना के तहत सरकार प्रदेश में हर महिला के खाते में 1,250 रुपए हर महीने ट्रांसफर करती है, यानी सालाना महिलाओं को 15,000 रुपये की आर्थिक सहायता दी जाती है। इसके जवाब में मध्य प्रदेश में कांग्रेस ने नारी सम्मान योजना के तहत महिलाओं को 1500 रुपये महीना देने की गारण्टी दी थी, यानी ढाई सौ रुपये ज्यादा। ये कांग्रेस की 11 गारंटियों में से एक थी। पर मध्य प्रदेश में शिवराज सिंह चौहान की लाड़ली बहना योजना कांग्रेस की हर गारंटी पर भारी पड़ी। दरअसल कांग्रेस तो सिर्फ वादा कर रही थी और भाजपा इस योजना का लाभ दे रही थी। ऐसे में महिलाओं ने वादे पर ऐतिबार नहीं किया बल्कि लाडली बहन योजना को जहन में रखा।
ठीक ऐसी ही योजना का वादा कांग्रेस ने हिमाचल प्रदेश में किया था जहाँ महिलाओं को 1500 रुपये प्रतिमाह देने की गारंटी दी थी। पर अब तक महिलाओं को इसका इंतजार है। भाजपा ने इसे मध्य प्रदेश में जमकर भुनाया। हिमाचल प्रदेश के भी सैकड़ों भाजपा नेता-कार्यकर्ता मध्य प्रदेश में प्रचार के लिए पहुंचे और सभी ने खुले मंचों से कहा की हिमाचल में कांग्रेस ने अब तक महिलाओं को दी गारंटी पूरी नहीं की है। अब तक महिलाएं इन्तजार में है। ये सच भी है। ऐसे में जाहिर है मध्य प्रदेश में महिलाओं ने कांग्रेस के वादे पर नहीं शिवराज सरकार के काम पर भरोसा जताया।
बहरहाल मध्य प्रदेश में भाजपा की जीत हिमाचल की कांग्रेस सरकार के लिए भी एक सीख जरूर हैं। आधी आबादी को साधकर सत्ता की राह आसानी से प्रशस्त की जा सकती हैं, यदि वादे पुरे किये हो। निसंदेह प्रदेश की ख़राब आर्थिक स्थिति कांग्रेस के सामने सबसे बड़ी बाधा हैं, लेकिन जब कर्मचारियों को ओपीएस मिल सकती हैं तो आधी आबादी 1500 रुपये प्रतिमाह क्यों नहीं ? बहरहाल ये कांग्रेस को तय करना हैं कि किस तरह वो गारंटियों को पूरा करती हैं, यदि पार्टी खानापूर्ति करती हैं तो वोटर भी खानापूर्ति ही करेगा
मुख्यमंत्री नई दिल्ली एम्स में भर्ती, स्वास्थ्य स्थिति बेहतर
मुख्यमंत्री ठाकुर सुखविंदर सिंह सुक्खू को गैस्ट्रोएंटरोलॉजी विभाग में कुछ परीक्षणों के लिए शुक्रवार सुबह नई दिल्ली के अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान में भर्ती करवाया गया है। विभाग के डॉक्टरों की टीम ने उनके परीक्षण शुरू कर दिए हैं। इस प्रक्रिया में लगभग दो से तीन दिन लग सकते हैं। मुख्यमंत्री की सेहत पहले से बेहतर है, चिंता की कोई बात नहीं है।
वह डॉक्टरों की टीम की निगरानी में हैं। मेडिकल बुलेटिन के अनुसार ठाकुर सुखविंदर सिंह सुक्खू की रिपोर्ट सामान्य हैं। मुख्यमंत्री का स्वास्थ्य स्थिर है। उन्हें उचित आराम की जरूरत है, जिससे वह और तेजी से ठीक होंगे। आईजीएमसी शिमला के डॉक्टरों की सलाह पर मुख्यमंत्री को एम्स में भर्ती करवाया गया है।
-मंत्री ने कसौली इंटरनेशनल स्कूल सनवारा के 17वें वार्षिक समारोह को किया संबोधित
ग्रामीण विकास एवं पंचायती राज मंत्री अनिरुद्ध सिंह ने कहा कि कठिन परिश्रम से ही जीवन में उच्च लक्ष्य प्राप्त किया जा सकता है। अनिरुद्ध सिंह सोलन के कसौली इंटरनेशनल पब्लिक स्कूल सनवारा के 17वें वार्षिक समारोह को सम्बोधित कर रहे थे। अनिरुद्ध ने कहा कि समय प्रबंधन और परिश्रम के माध्यम से जीवन में असम्भव को भी संभव बनाया जा सकता है। उन्होंने छात्रों से आग्रह किया कि सदैव समय का सदुपयोग और परिश्रम से न घबराएं।
उन्होंने छात्रों से आग्रह किया कि देश की स्थापित गुरु-शिष्य परम्परा को सदैव बनाए रखें और अपने गुरुजनों तथा अभिभावकों का सम्मान करें। उन्होंने कहा कि अभिभावकों और अध्यापकों को भी यह सुनिश्चित बनाना होगा कि युवा पीढ़ी का सही मार्गदर्शन हो ताकि आज के युवा कल के बेहतर नागरिक बन सकें।
ग्रामीण विकास मंत्री ने आशा जताई कि आने वाले समय में कसौली इंटरनेशनल पब्लिक स्कूल के छात्र देश-प्रदेश का नाम रोशन करेंगे। उन्होंने छात्रों से आग्रह किया कि वे संघर्ष, परिश्रम एवं लगन को अपना साथी बनाएं। उन्होंने कहा कि युवावस्था में संघर्ष एवं परिश्रम के माध्यम से ही जीवन के उच्च लक्ष्य को प्राप्त किया जा सकता है।
उन्होंने पुरस्कार पाने वाले सभी विद्यार्थियों को बधाई देते हुए कहा कि जो विद्यार्थी इस वर्ष पुरस्कार प्राप्त नहीं कर पाए, वे अपनी कमियों को दूर कर अगले वर्ष कड़ी मेहनत कर आगे बढ़ने की कोशिश करें। कसौली के विधायक विनोद सुल्तानपुरी ने कहा कि छात्र जीवन में किए गए प्रयास बेहतर भविष्य की नींव बनते हैं। इस अवसर पर छात्रों द्वारा रंगारंग सांस्कृतिक कार्यक्रम भी प्रस्तुत किए गए।
हिमाचल प्रदेश कांग्रेस के उपाध्यक्ष राहुल ठाकुर, हिमाचल प्रदेश कबड्डी ऐसोसिएशन के निदेशक राजकुमार नीटू, कसौली इंटरनेशनल पब्लिक स्कूल सनवारा के प्रबंध निदेशक हीरा ठाकुर, प्रधानाचार्य राजेंद्र प्रसाद, उप प्रधानाचार्य पूनम ठाकुर, उपमण्डलाधिकारी कसौली गौरव महाजन, ज़िला पंचायत अधिकारी जोगिन्र्द्र राणा, ज़िला परिषद सदस्य राजेंद्र ठाकुर, नगर परिषद परवाणू के पूर्व अध्यक्ष निशा शर्मा सहित अन्य गणमान्य व्यक्ति इस अवसर पर उपस्थित थे।
इंडियन प्रीमियर लीग की टीम गुजरात टाइटंस के कप्तान शुभमन गिल होंगे। फ्रेंचाइजी ने सोमवार को इसका ऐलान किया। ऑलराउंडर हार्दिक पंड्या के टीम छोड़ने की वजह से यह बदलाव हुआ है। हार्दिक अगले सीजन में मुंबई इंडियंस की ओर से खेलते नजर आएंगे। मुंबई इंडियंस ने भी इसकी आधिकारिक घोषणा आज सोशल मीडिया पर की। वहीं, मुंबई इंडियंस ने कैमरून ग्रीन को रॉयल चैलेंजर्स बेंगलुरु से ट्रेड कर दिया है।
गिल आईपीएल 2023 में सबसे ज्यादा रन बनाने वाले बैटर थे। गिल ने 7 मैचों में 59.33 की औसत से 890 रन बनाए थे। 24 साल के गिल ने साल 2018 में आईपीएल डेब्यू किया था। उन्होंने अब तक कुल 91 मैचों में 2790 रन बनाए हैं।
गुजरात टाइटंस की टीम आईपीएल में पहली बार 2022 सीजन में उतरी। टीम ने हार्दिक की कप्तानी में पहले सीजन में ही चैंपियन बनने का गौरव हासिल किया। 2023 के सीजन में भी गुजरात टीम फाइनल में पहुंची, जहां उसे चेन्नई सुपर किंग्स से हार का सामना करना पड़ा था। इतनी कामयाबी के बावजूद गुजरात की टीम और पंड्या का साथ छूटना फैंस और क्रिकेट एक्सपर्ट्स को हैरान कर रहा है।
गुजरात के पोरबंदर में भगवान श्री कृष्ण के मित्र सुदामा को समर्पित दुनिया का एक मात्र मंदिर है। सुदामा ने आजीवन दरिद्रता में सात्विक जीवन जीया और ईश्वर से अखंड मित्रता भी निभाई। पोरबंदर सुदामा का जन्म स्थान है। वहां सोमाशर्मा नामक भृगुवंशी के घर सुदामा का जन्म हुआ था। कहते है सुदामा के पिता ने उन्हें बचपन में मध्य प्रदेश के उज्जैन में सांदीपनि ऋषि के आश्रम में पढ़ने के लिए भेज दिया था। भगवान कृष्ण और अपने बड़े भाई बलराम भी गोकुल से मध्य प्रदेश के उज्जैन में सांदीपनि आश्रम में पढ़ने के लिए आए थे। आश्रम में ही कृष्ण और सुदामा एक दूसरे से पहली बार मिले और दोनों में जल्द ही गहरी मित्रता हो गई। हालांकि, आश्रम की शिक्षा पूरी होने के बाद श्रीकृष्ण और सुदामा दोनों अपने-अपने घर चले गए।
शिक्षा पूरी होने के बाद सुदामा ने कई सालों के बाद शादी कर ली और अपना जीवनयापन करने लगे। उनका जीवन दरिद्रता में कट रहा था, जबकि श्रीकृष्ण द्वारका के राजा बन गए थे। तब सुदामा की पत्नी ने आग्रह किया कि आप अपने मित्र श्रीकृष्ण के पास जाएं और मदद मांगें, लेकिन सुदामा ने कहा कि, मैं कृष्ण के पास खाली हाथ नहीं जाना चाहता। तब उनकी पत्नी ने श्रीकृष्ण को भेंट देने के लिए चावल दिया। जब सुदामा द्वारका पहुंचे, तो उनका नाम सुनते ही श्रीकृष्ण उनका स्वागत करने के लिए महल के बाहर तक दौड़े चले आए और उन्हें गले से लगा लिया।
सुदामा को शर्म आ रही थी कि एक राजा को चावल कैसे भेंट दूं। वह चावल को श्रीकृष्ण से छिपाने की कोशिश कर रहे थे, लेकिन कृष्ण ने सुदामा से चावल छीनकर उसे खाने लगे. इसके साथ ही श्रीकृष्ण ने अपनी मित्रता निभाते हुए सुदामा की गरीबी को दूर किया और झोपड़ी को महल में बदल दिया।
सुदामा मंदिर पोरबंदर शहर के केंद्र में 1902 से 1907 के बीच बनाया गया। कहा जाता है कि 13वीं शताब्दी में यहां सुदामा का एक छोटा मंदिर था। फिर वर्ष 1903 में पोरबंदर के महाराजा भावसिंहजी ने मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया और छोटे मंदिर के स्थान पर एक भव्य मंदिर का निर्माण करवाया। इस मंदिर के जीर्णोद्धार के दौरान सौराष्ट्र ड्रामा कंपनी ने भी महत्वपूर्ण योगदान दिया था। यहां आने वाले तीर्थयात्री सुदामा मंदिर जाने पर अपने कपड़ों पर ठप्पा लगाते है, क्योंकि यह कहा जाता है कि कोई भी तीर्थयात्रा सुदामापुरी जाने पर ही यात्रा पूरी होती है।
सुदामा मंदिर के बीच में सुदामा की एक मनमोहक मूर्ति है, जिसके दाहिनी ओर उनकी धर्मपत्नी सुशीलाजी की मूर्ति है और बाईं ओर राधा-कृष्ण की मूर्ति है। परंपरा के अनुसार, हर वर्ष सुदामा अन्नकूट उत्सव को नए साल के त्यौहार के रूप में मनाया जाता है। साथ ही अखातीज के दिन सुदामा मंदिर में एक भव्य उत्सव मनाया जाता है जिसमें हजारों भक्त शामिल होते हैं।
पोरबंदर का दूसरा नाम सुदामापुरी है
सुदामा का द्वारका में आगमन और अस्मावती तट पर बसे इस छोटे से शहर में एक समृद्ध ‘सुदामापुरी’ बनी रही। हालांकि, इस जगह का पहला लिखित प्रमाण पोरबंदर के पास घुमली के एक दान पत्र में है, जो एक हजार साल पुराना है। पोरबंदर के मानसरोवर कुंड के शिलालेख में भी इसके बारे में साक्ष्य मिला है।
एसएस राजामौली की चर्चित मूवी ररर के नाटू-नाटू गाने को ऑस्कर अवॉर्ड मिला है। भारत के लिए ये ऐतिहासिक पल है। फिल्ममेकर नाटू नाटू ने ओरिजनल सॉन्ग कैटेगिरी में अवॉर्ड जीता है। एमएम कीरावणी अवॉर्ड लेते हुए बेहद एक्साइटेड नजर आए। उनकी स्पीच भी चर्चा में बनी हुई है। इस जीत के बाद पूरे देश में खुशी का माहौल है। मेकर्स ने RRR मूवी के ट्विटर हैंडल से ट्वीट कर जीत की खुशी जताई है। उन्होंने लिखा- 'हम धन्य हैं कि आरआरआर सॉन्ग नाटू-नाटू के साथ बेस्ट सॉन्ग कैटेगरी में भारत का पहला ऑस्कर लाने वाली पहली फीचर फिल्म है। कोई भी शब्द इस अलौकिक पल को बयां नहीं कर सकते। धन्यवाद। जय हिंद। 'वहीं 'नाटू नाटू' के ऑस्कर जीतने पर फिल्म के लीड एक्टर जूनियर एनटीआर ने भी रिएक्ट किया है। उन्होंने कहा- 'मेरे पास अपनी खुशी व्यक्त करने के लिए शब्द नहीं हैं। ये सिर्फ आरआरआर की जीत नहीं है बल्कि एक देश के तौर पर भारत की जीत है। ये तो अभी शुरुआत है कि भारतीय सिनेमा कितनी दूर जा सकता है। एमएम कीरावनी और चंद्रबोस को बधाई।'
**हिंदी बेल्ट में अकेले दम पर सिर्फ हिमाचल में बची कांग्रेस की सरकार
**2019 में हिंदी पट्टी की 251 में से सिर्फ 7 पर जीता था कांग्रेस गठबंधन
2018 में जब कांग्रेस जब तीन राज्यों में जीती थी, तब भी 2019 में पीएम मोदी के चेहरे के सामने कांग्रेस का सूपड़ा साफ़ हो गया था। इस बार तो हिंदी पट्टी के इन तीन राज्यों में कांग्रेस का सूपड़ा साफ़ हुआ है। ये 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले पार्टी के लिए बड़ा झटका है। कांग्रेस के तमाम दावे हवा हवाई हो गए और हिंदी पट्टी के तीन बड़े राज्यों, राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में कांग्रेस को करारी शिकस्त मिली है। यहाँ कांग्रेस का हर दांव उल्टा पड़ा। ऐसे में 2024 में केंद्र की सत्ता तक पहुंचने का कांग्रेस का ख्वाब फिलहाल पूरा होना मुश्किल होगा। इन तीन राज्यों में ही 65 लोकसभा सीटें है। आपको याद दिला दें कि 2018 में तीनों राज्यों में कांग्रेस की सरकार बनी थी, बावजूद इसके 2019 में कांग्रेस के हिस्से आई थी महज 3 सीटें। वहीँ इस बार भाजपा ने मोदी के चेहरे पर विधानसभा चुनाव लड़ा तो तीनों राज्यों में कांग्रेस साफ़ हो गई और ऐसे में 2024 में कांग्रेस का टिकना बेहद मुश्किल होगा। इन तीन राज्यों में कांग्रेस को बड़ा झटका लगा है, उसका ओपीएस कार्ड भी फेल हो गया और गारंटी मॉडल भी। वहीँ राहुल गाँधी की जिस बढ़ती लोकप्रियता का दावा कांग्रेस कर रही थी वो दक्षिण में तो दिखी लेकिन हिंदी पट्टी में वैसा नहीं दिखा। नतीजे तो ये ही बताते है।
बगैर हिंन्दी पट्टी में खुद को मजबूत किये कांग्रेस किस आधार पर 2024 में जीत का स्वपन देख रही है, ये पार्टी के रणनीतिकार ही जानते है। इन तीन राज्यों को छोड़े भी दे तो उत्तरप्रदेश, बिहार, गुजरात और दिल्ली में भी पार्टी वेंटिलेटर पर दिखती है। इन राज्यों में 153 लोकसभा सीटें है और राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ को जोड़कर ये आंकड़ा 218 हो जाता है। इसके अलावा 10 सीटों वाले हरियाणा और 5 सीटों वाले उत्तराखंड में भी न कांग्रेस सत्ता में है और न कोई बड़ा तिलिस्म करने की स्थिति में दिखती है। वहीँ 14 सीटों वाले झारखण्ड में कांग्रेस गठबंधन सरकार का हिस्सा है लेकिन अकेले दम पार्टी की हैसियत किसी से छिपी नहीं है। हिंदी पट्टी में हिमाचल प्रदेश इकलौता राज्य है जहाँ कांग्रेस की सरकार है, लेकिन चार सीटों वाले इस छोटे प्रदेश में भी पार्टी बहुत सहज नहीं दिखती।
कुल मिलाकर हिन्द्दी पट्टी में 251 लोकसभा सीटें है। 2019 के लोकसभा चुनाव में यूपीए को इनमें से सिर्फ 7 पर जीत मिली थी। हालांकि तब बिहार में जेडीयू एनडीए का हिस्सा था और यूपी में सपा और बसपा मिलकर लड़े थे और
यूपीए गठबंधन का हिस्सा नहीं थे। अब यूपीए गठबंधन खत्म हो चूका है और विपक्ष ने इंडिया गठबंधन बनाया है लेकिन ये नए पैकेट में पुराने सामान की तरह ही दिख रहा है। सपा और कांग्रेस के बीच मध्य प्रदेश में तल्खियों का ट्रेलर दिख चूका है और नतीजा भी अब सबके सामने है। वहीँ जेडीयू भी कांग्रेस के रवैये से नाखुश है।
कांग्रेस और आप भी आमने -सामने है। ऐसे में हिंदी पट्टी में विपक्ष कैसे भाजपा से लड़ पायेगा, ये तो माहिरों की भी समझ से परे है। कांग्रेस विपक्ष की धुरी है और हिंदी पट्टी में जीत दिल्ली का रास्ता प्रशस्त करती है। ऐसे में हिंदी पट्टी में कमजोर होकर कांग्रेस न तो विपक्ष की अगुवाई कर सकती है और न ही भाजपा से मुकाबला।
मोदी की टक्कर में चेहरा नहीं !
इस हार ने कांग्रेस की पुरानी कमी को फिर उजागर कर दिया। हिंदी पट्टी में प्रधानमंत्री मोदी सबसे लोकप्रिय नेता है और कांग्रेस के पास कोई ऐसा चेहरा नहीं जो टक्कर दे सके। भारत जोड़ो यात्रा के बाद राहुल गाँधी को दक्षिण में तो लोकप्रियता मिली है लेकिन हिंदी पट्टी में अब भी राहुल की लोकप्रियता में कोई ख़ास बदलाव नहीं दिखता। जो दीवानगी पीएम मोदी के लिए इन तीन राज्यों में दिखी वो भाजपा की जीत का बड़ा कारण है। तीन राज्यों के चुनावों की बात करें तो सिर्फ राजस्थान में अशोक गहलोत ऐसा चेहरा दिखे जो भाजपा को मुद्दों पर घेरते दिखे और टक्कर में भी लगे, ये ही कारण है भाजपा को राजस्थान में पूरी ताकत झोंकनी पड़ी। इसके अलावा पूरी कांग्रेस में हिन्द्दी पट्टी का एक भी ऐसा चेहरा नहीं दिखता जो मुकाबले में खड़ा भी दिखे। हालांकि प्रियंका गाँधी भी भीड़ जुटाने में कामयाब दिखी लेकिन भीड़ वोटों मे नहीं बदल पाई। राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे दक्षिण से आते है और उसका लाभ पार्टी को कर्णाटक और तेलंगाना में मिला भी है, लेकिन वे हिंदी पट्टी से वैसे कनेक्ट नहीं कर पाते जिस तरह पीएम मोदी करते है। ऐसे में कांग्रेस को नीति रणनीति में बदलाव की सख्त जरुरत है।
राम नगरी अयोध्या ...... दशकों का अतीत भूल कर एक नया इतिहास लिखने जा रही है। राम मंदिर का निर्माण अंतिम दौर में है और सम्भवतः 24 जनवरी 2024 वो ऐतिहासिक तारीख होगी जब राम मंदिर में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा होगी, लेकिन जब भी राम मंदिर से जुड़े इतिहास की बात होती है तो एक सवाल आप सबके मन में भी ज़रूर आता होगा की राम की जन्मभूमि पर राम मंदिर बनाने को लेकर इतना विवाद क्यों ? खेर मेरा मानना है कि राम मंदिर का पूरा इतिहास शब्दों में समेटना किसी के लिए संभव नहीं है, लेकिन बाबरी ढाँचा तो आपको याद ही होगा और बाबरी विध्वंस को याद करने के लिए 6 दिसम्बर से मुनासिब तारीख और क्या होगी। बाबरी विध्वंस का जब भी होता जिक्र है तो कोठारी बंधुओं के योगदान की चर्चा अक्सर की जाती है।
राम और शरद कोठारी नियमित रूप से बुराबार की राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की शाखा में जाया करते थे। 22 और 20 साल की उम्र के इन दोनों भाइयों ने आरएसएस की तीन साल की होने वाली ट्रेनिंग के दो साल बहुत ही बेहतरीन तरीके से पूरे किए थे।अन्य कारसेवकों की तरह ही कोलकाता के रहने वाले कोठारी बंधुओं ने भी विश्व हिन्दु परिषद की कार सेवा में शामिल होने का निर्णय लिया था। 20 अक्टूबर 1990 को दोनों भाईयों ने अपने पिता को अयोध्या जाने के इरादे के बारे में बताया। उनके पिता उन्हें इस यात्रा में भेजने के इच्छुक नहीं थे क्योंकि उनकी बेटी पूर्णिमा का विवाह दिसंबर में था. वो चाहते थे कि कम से कम एक भाई तो शादी समारोह में शामिल रहे। उस समय दोनों ही भाई अपने फैसले पर कायम रहे और उन्होंने यात्रा में जाने का फैसला किया।
22 अक्टूबर को दोनों ने कोलकाता से ट्रेन के जरिये रवानगी भरी। अक्तूबर के तीसरे सप्ताह तक उत्तर प्रदेश सरकार ने अयोध्या में कार सेवकों को जुटने से रोकने के लिए ट्रेन पर रोक लगा दी थी। करीब 200 किलोमीटर पैदल चल कर 30 अक्टूबर की सुबह दोनों भाई अयोध्या पहुंचे। ये तारीख अयोध्या राम मंदिर आंदोलन के संघर्ष का महत्वपूर्ण दिन था, ये वो दिन था जब कोठारी बंधुओं ने विवादित परिसर में बने बाबरी मस्जिद पर भगवा ध्वज लहराया था। इन दोनों भाइयों ने पहली बार विवादित ढाचें पर भगवा झंडा फहराकर कारसेवकों के बीच सनसनी फैला दी थी। पुलिस प्रशासन को चुनौती देते हुए दोनों भाई बाबरी मस्जिद की गुबंद पर चढ़ गए थे और भगवा ध्वज लहराकर आराम से नीचे उतर गए थे। कोलकाता के कोठारी बंधुओं के बाबरी पर भगवा लहराने की घटना बेहद ही चर्चित है। भगवा पताका लहराकर नीचे उतरने के बाद दोनों भाइयों शरद और राजकुमार को सीआरपीएफ के जवानों ने लाठियों से पीटकर खदेड़ दिया।
30 अक्टूबर को गुंबद पर पताका लहराने के बाद शरद और रामकुमार 2 नवंबर को विनय कटियार के नेतृत्व में दिगंबर अखाड़े की तरफ से हनुमानगढ़ी की तरफ जा रहे थे। जब पुलिस ने फायरिंग शुरू की तो दोनों भाई एक घर में जा छिपे। लेकिन थोड़ी देर बाद दोनों बाहर निकले तो पुलिस की फायरिंग का शिकार हो गए। दोनों ने ही मौके पर दम तोड़ दिया।
हिमाचल प्रदेश विधानसभा अध्यक्ष कुलदीप सिंह पठानिया स्पेन की राजधानी मैड्रिड तथा बर्सिलोना शहर में 6 दिनों के अध्ययन प्रवास के बाद आज स्विटजरलैंड के खूबसूरत शहर ल्यूसर्न पहुंचे। कुलदीप सिंह पठानिया 11 से 16 अक्तूबर तक स्विटजरलैंड के अध्ययन प्रवास पर रहेंगे।
गौरतलब है कि कुलदीप सिंह पठानियां राष्ट्रमंडल संसदीय सम्मेलन में भाग लेने 1 अक्तूबर को घाना की राजधानी अक्रा गए थे। सम्मेलन उपरांत पठानियां 6 अक्तूबर से स्पेन तथा स्विटजरलैंड देशों के अध्ययन प्रवास पर हैं। पठानिया स्विटजरलैंड के शहर ल्यूसर्न तथा ज्यूरिख के अध्ययन प्रवास पर रहेंगे, जबकि वे 16 अक्तूबर को इस्तांबुल होते हुए नई दिल्ली स्वदेश लौटेंगे। पठानिया के साथ विधानसभा सचिव यशपॉल शर्मा भी अध्ययन प्रवास पर हैं।
*अमृता प्रीतम ने बटालवी को कहा था 'बिरह का सुल्तान'
' बिरहा बिरहा आखीए, बिरहा तू सुल्तान। जिस तन बिरहा ना उपजे, सो तन जाण मसान ...' प्रसिद्ध कवयित्री अमृता प्रीतम के शब्दों में वो ‘बिरह का सुल्तान’ था। पंजाब का एक ऐसा शायर जिसके जैसा न कोई था, न है और न कोई और होगा। वो हिंदुस्तान में भी खूब छाया और पाकिस्तान ने भी उसे जमकर चाहा. वो था पंजाब का पहला सुपरस्टार शायर शिव कुमार बटालवी। वो शायर जिसने शराब में डूबकर वो रच दिया जिसे होश वाले शायद कभी न उकेर पाते। वो शायर जो मरने की बहुत जल्दी में था।
'असां तां जोबन रुत्ते मरनां, जोबन रूत्ते जो भी मरदा फूल बने या तारा, जोबन रुत्ते आशिक़ मरदे या कोई करमा वाला'.. बटालवी का कहना था कि जवानी में जो मरता है वो या तो फूल बनता है या तारा। जवानी में या तो आशिक मरते हैं या वो जो बहुत करमों वाले होते हैं। जैसा वो कहते थे वैसा हुआ भी, महज 35 की उम्र में बटालवी दुनिया को अलविदा कह गए। पर जाने से पहले इतना खूबसूरत लिख गए कि शायरी का हर ज़िक्र उनके बगैर अधूरा है।
शिव कुमार बटालवी 23 जुलाई 1936 को पंजाब के सियालकोट में पैदा हुए, जो बंटवारे के बाद से पाकिस्तान में है। उनके पिता एक तहसीलदार थे पर न जाने कैसे शिव शायर हो गए। आजादी के बाद जब देश का बंटवारा हुआ तो बटालवी का परिवार पाकिस्तान से विस्थापित होकर भारत में पंजाब के गुरदासपुर जिले के बटाला में आ गया। उस वक़्त शिव कुमार बटालवी की उम्र महज़ दस साल थी। नका कुछ बचपन और किशोरावस्था यहीं गुजरी। बटालवी ने इन दिनों में गांव की मिट्टी, खेतों की फसलों, त्योहारों और मेलों को भरपूर जिया, जो बाद में उनकी कविताओं में खुशबू बनकर महका। उन्होंने अपने नाम में भी बटालवी जोड़ा, जो बटाला गांव के प्रति उनका उन्मुक्त लगाव दर्शाता है। बटालवी जिंदगी के सफर में बटाला, कादियां, बैजनाथ होते हुए नाभा पहुंचे लेकिन अपने नाम में बटालवी जोड़ खुद को ताउम्र के लिए बटाला से जोड़े रखा। कुछ बड़े होने के बाद उन्हें गांव से बाहर पढ़ने भेजा गया। वो खुद तो गांव से आ गए मगर उनका दिल गांव की मिटटी पर ही अटका रहा। कहते है उनका गांव छूट जाना उन पर पहला प्रहार था, जिसका गहरा जख्म उन्हें सदैव पीड़ा देता रहा।
गांव से निकलकर आगे की पढ़ाई के लिए शिव कादियां के एस. एन. कॉलेज के कला विभाग गए। पर दूसरे साल ही उन्होंने उसे बीच में छोड़ दिया। उसके बाद उन्हें हिमाचल प्रदेश के बैजनाथ के एक स्कूल में इंजीनियरिंग की पढ़ाई हेतु भेजा गया। पर पिछली बार की तरह ही उन्होंने उसे भी बीच में छोड़ दिया। इसके बाद उन्होंने नाभा के सरकारी कॉलेज में अध्ययन किया। उनका बार-बार बीच में ही अभ्यास छोड़ देना, उनके भीतर पल रही अराजकता और अनिश्चितता का बीजारोपण था। पिता शिव को कुछ बनता हुआ देखना चाहते थे। जो पिता शिव के लिए चाहते थे वो शिव ने अपने लिए कभी नहीं चाहा, इसीलिए पिता - पुत्र में कभी नहीं बनी।
बटालवी की छोटी सी जीवन यात्रा तमाम उतार चढ़ाव समेटे हुए है, किसी खूबसूरत चलचित्र की तरह जिसमें स्टारडम है, विरह का तड़का है और जिसका अंत तमाम वेदना समेटे हुए है। शिव कुमार बटालवी के गीतों में ‘बिरह की पीड़ा’ इस कदर थी कि उस दौर की प्रसिद्ध कवयित्री अमृता प्रीतम ने उन्हें ‘बिरह का सुल्तान’ नाम दे दिया। शिव कुमार बटालवी यानी पंजाब का वह शायर जिसके गीत हिंदी में न आकर भी वह बहुत लोकप्रिय हो गया। कहते है उन्हें मेले में एक लड़की से मोहब्बत हो गयी थी। मेले के बाद जब लड़की नज़रों से ओझल हुई तो उसे ढूंढने के लिए एक गीत लिख डाला। गीत क्या मानो इश्तहार लिखा हो;
‘इक कुड़ी जिहदा नाम मुहब्बत ग़ुम है’
ओ साद मुरादी, सोहनी फब्बत
गुम है, गुम है, गुम है
ओ सूरत ओस दी, परियां वर्गी
सीरत दी ओ मरियम लगदी
हस्ती है तां फूल झडदे ने
तुरदी है तां ग़ज़ल है लगदी...
ये वहीँ गीत है जो फिल्म उड़ता पंजाब में इस्तेमाल हुआ और इस नए दौर में भी युवाओं की जुबा पर इस कदर चढ़ा कि मानो हर कोई बटालवी की महबूबा को ढूंढ़ते के लिए गा रहा हो। कहते है बटालवी का ये लड़कपन का प्यार अधूरा रहा क्यों कि एक बीमारी के चलते उस लड़की की मौत हो गयी। खैर ज़िंदगी बढ़ने का नाम है सो बटालवी भी अवसाद से निकलकर आगे बढ़ने लगे। फिर एक लड़की मिली और फिर शिव को उनसे मोहब्बत हो गई। पर इस मर्तबा भी अंजाम विरह ही था। दरअसल, जिसे शिव दिल ओ जान से मोहब्बत करते थे उसने किसी और का घर बसाया और शादी करके विदेश चली गयी। एक बार फिर शिव तनहा हुए और विरह के समुन्दर में गोते खाने लगे। तब शराब और अवसाद में डूबे शिव ने जो लिखा वो कालजयी हो गया ...........
माए नी माए मैं इक शिकरा यार बनाया
चूरी कुट्टाँ ताँ ओह खाओंदा नाहीं
वे असाँ दिल दा मास खवाया
इक उड़ारी ऐसी मारी
इक उड़ारी ऐसी मारी
ओह मुड़ वतनीं ना आया, ओ माये नी!
मैं इक शिकरा यार बना
शिकरा पक्षी दूर से अपने शिकार को देखकर सीधे उसका मांस नोंच कर फिर उड़ जाता है। शिव ने अपनी उस बेवफा प्रेमिका को शिकरा कहा। हालांकि वो लड़की कौन थी इसे लेकर तरह तरह की बातें प्रचलित है । पर इसके बारे में आधिकारिक रुप से आज तक कोई जानकारी नहीं है और ना वो ख़ुद ही कभी लोगों के सामने आई। शिव की उस बेवफा प्रेमिका के बारे में एक किस्सा अमृता प्रीतम ने भी बयां किया है।
शिव एक दिन अमृता प्रीतम के घर पहुंचे और उन्हें बताया कि जो लड़की उनसे इतनी प्यार भरी बातें किया करती थी वो उन्हें छोड़कर चली गयी है। उसने विदेश जाकर शादी कर ली है। अमृता प्रीतम ने उन्हें जिंदगी की हकीकत और फ़साने का अंतर समझाने का प्रत्यन किया पर शिव का मासूम दिल टूट चूका था। कहते है शिव उसके बाद ताउम्र उसी लड़की के ग़म में लिखते रहे। सिर्फ 24 साल की उम्र में शिव कुमार बटालवी की कविताओं का पहला संकलन "पीड़ां दा परागा" प्रकाशित हुआ, जो उन दिनों काफी चर्चित रहा। उसी दौर में शिव ने लिखा ........
अज्ज दिन चढ़ेया तेरे रंग वरगा
तेरे चुम्मण पिछली संग वरगा
है किरणा दे विच नशा जिहा
किसे चिम्मे सप्प दे दंग वरगा
आखिरकार, 1967 में बटालवी ने अरुणा से शादी कर ली और उनके साथ दो बेटियां हुई। शिव शादी के बाद चंडीगढ़ चले गये। वहां वे स्टेट बैंक ऑफ इंडिया में कार्यरत रहे। पर कहते है बटालवी उस लड़की को नहीं भूल नहीं सके और उसकी याद में लिखते गए।
की पुछ दे ओ हाल फ़कीरां दा
साडा नदियों बिछड़े नीरां दा
साडा हंज दी जूने आयां दा
साडा दिल जलया दिलगीरां दा
धीरे-धीरे, बटालवी शराब की दुसाध्य लत के चलते 7 मई 1973 को लीवर सिरोसिस के परिणामस्वरूप जग को अलविदा कह गए। कहते है कि जीवन के अंतिम दौर में उनकी माली हालत भी ठीक नहीं थी और अपने ससुर के घर उन्होंने अंतिम सांस ली। पर बटालवी जैसे शायर तो पुरानी शराब की तरह होते है, दौर भले बदले पर नशा वक्त के साथ गाढ़ा होता जाता है।
‘लूणा’ के लिए मिला साहित्य अकादमी पुरस्कार :
ऐसा नहीं है कि शिव कुमार बटालवी सिर्फ विरह के शायर थे। बटालवी का नाम साहित्य के गलियारों में बड़े अदब के साथ लिया जाता है। ऐसा हो भी क्यों ना इस दुनिया को अलविदा कहने से पहले वे ‘लूणा’ जैसा महाकाव्य लिख गए। इसी के लिए उन्हें सबसे कम उम्र में यानी महज 31 वर्ष की उम्र में साहित्य अकादमी पुरूस्कार भी मिला। ये सम्मान प्राप्त करने वाले वे सबसे कम उम्र के साहित्यकार है। ‘लूणा’ को पंजाबी साहित्य में ‘मास्टरपीस’ का दर्ज़ा प्राप्त है और साहित्य जगत में इसकी आभा बरक़रार है। कहा जाता था कि कविता हिंदी में है और शायरी उर्दू में। पर शिव ने जब पंजाबी में अपनी जादूगरी दिखाई तो उस दौर के तमाम हिंदी और उर्दू के बड़े बड़े शायर कवि हैरान रह गए।
नायाब गायकों ने गाये बटालवी के गीत :
बटालवी की नज्मों को सबसे पहले नुसरत फतेह अली खान ने अपनी आवाज दी थी। उस्ताद नुसरत फ़तेह अली खान ने उनकी कविता 'मायें नी मायें मेरे गीतां दे नैणां विच' को गाया था । जगजीत सिंह ने उनका एक गीत 'मैंनू तेरा शबाब ले बैठा' गाया तो दुनिया को पता चला की शब्दों की जादूगरी क्या होती है। नुसरत साहब और जगजीत सिंह - चित्रा सिंह के अलावा रबी शेरगिल, हंस राज हंस, दीदार सिंह परदेसी सहित एक से बढ़कर एक नायाब गायकों ने बटालवी की कविताएं गाई। उनकी लिखी रचनाओं को गाकर न जाने कितने गायक शौहरत पा गए। बटालवी आज भी हर दिल अजीज है। बटालवी और विरह जुदा नहीं । बटालवी तो आखिर बटालवी है।
क्षेत्रीय रोजगार अधिकारी आकाश राणा ने बताया कि इवान सिक्योरिटी फंक्शंस प्राइवेट लिमिटेड द्वारा महिला व पुरुष श्रेणी के 330 पद सिक्योरिटी गार्ड व सिक्योरिटी सुपरवाइजर के भरे जाने हैं। उन्होंने बताया कि इच्छुक अभ्यर्थी अपने सभी मूल प्रमाण पत्रों के साथ 28 नवम्बर को उप रोजगार कार्यालय लम्बागांव, 29 नवम्बर को उप रोजगार कार्यालय नगरोटा बगवां तथा 30 नवम्बर को उप रोजगार कार्यालय कस्बा कोटला में सुबह 11 बजे साक्षात्कार के लिए आ सकते हैं। इसके लिए किसी भी प्रकार का यात्रा भत्ता व अन्य देय नहीं दिया जाएगा।
ऑनलाइन होगा आवेदन
रोजगार अधिकारी ने बताया कि इच्छुक आवेदकों को साक्षात्कार में भाग लेने से पूर्व ईईएमआईएस डॉट एचपी डॉट एनआईसी डॉट आईएन पर जाकर आवेदन करना होगा। आवेदन के लिए उक्त वेबसाइट पर अपनी ई-मेल से लॉगइन करने के बाद अपने डैशबोर्ड में दिख रही इवान सिक्योरिटी फंक्शंस प्राइवेट लिमिटेड की रिक्तियों के लिए आवेदन करना होगा। ऑनलाइन आवेदन के बाद ही साक्षात्कार में भाग लिया जा सकता है।
यह रहेगी योग्यता
क्षेत्रीय रोजगार अधिकारी ने बताया कि उक्त पदों के लिए शैक्षणिक योग्यता दसवीं पास या उससे अधिक और आयु सीमा 20 से 36 वर्ष रखी गई है। उक्त पदो ंके लिए पुरुषों के लिए लंबाई 173 सेंटीमीटर और वजन 60 किलोग्राम से अधिक व महिला आवेदकों के लिए लंबाई 163 सेंटीमीटर और न्यूनतम वजन 48 किलोग्राम रखा गया है। उन्होंने बताया कि चयनित उम्मीदवारों को कंपनी द्वारा 12000 से 22000 रूपये प्रतिमाह दिए जाएंगे। उन्होंने बताया कि कार्यस्थल हिमाचल, पंजाब व हरियाणा रहेगा। अधिक जानकारी के लिए मोबाइल नंबर 9418217918 तथा 8221862918 पर भी संपर्क कर सकते हैं।
हिमाचल प्रदेश यूथ कांग्रेस के महासचिव एवं सिस्को संस्था के अध्यक्ष महेश सिंह ठाकुर को जवाहर बाल मंच का राज्य मुख्य संयोजक नियुक्त किया गया है।
चीफ स्टेट कॉडिनेटर बनाए जाने पर महेश सिंह ठाकुर ने कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे कांग्रेस की वरिष्ठ नेता सोनिया गांधी, राहुल गांधी, प्रियंका गांधी,प्रदेश के सीएम सुखविन्दर सिंह सूक्खु , राष्ट्रीय प्रभारी केसी वेणुगोपाल,जवाहर बाल मंच के राष्टीय अध्यक्ष जी.वी. हरि. सहित अन्य नेताओं के प्रति आभार जताया है।
महेश ठाकुर ने कहा कि जवाहर बाल मंच का मुख्य उद्देश्य 7 वर्षों से लेकर 17 वर्ष के आयु के लड़के लड़कियां तक भारत के पूर्व प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू के विचार को पहुंचना। उन्होंने कहा कि जिस तरीके से मौजूदा सरकार के द्वारा देश के इतिहास के साथ छेड़छाड़ हो रहा है देश के युवाओं को भटकाया जा रहा है जो की देश के लिए एक बहुत बड़ा चिन्ता का विषय है कांग्रेस पार्टी ने इस विषय को गंभीरता से लिया और राहुल गांधी के निर्देश पर डॉ जीवी हरी के अध्यक्षता में देशभर में जवाहर बाल मंच के द्वारा युवाओं के बीच में नेहरू जी के विचारों को पहुंचाया जाएगा।
उन्होंने कहा वर्ष 2024 के चुनाव में कांग्रेस भारी बहुमत हासिल कर केंद्र से भाजपा को हटाने का काम करेगी। इसमें हिमाचल प्रदेश राज्य की भी प्रमुख भुमिका रहेगी।
उन्होंने कहा कि पूरे देश में महंगाई के कारण आमलोगों का जीना मुश्किल हो गया है। गरीब व मध्यम वर्गीय परिवार पर इस महंगाई का व्यापक असर पड़ रहा है। ऐसे में केंद्र सरकार के कानों में जूं तक नहीं रेंग रही है।
**हिंदी बेल्ट में अकेले दम पर सिर्फ हिमाचल में बची कांग्रेस की सरकार
**2019 में हिंदी पट्टी की 251 में से सिर्फ 7 पर जीता था कांग्रेस गठबंधन
2018 में जब कांग्रेस जब तीन राज्यों में जीती थी, तब भी 2019 में पीएम मोदी के चेहरे के सामने कांग्रेस का सूपड़ा साफ़ हो गया था। इस बार तो हिंदी पट्टी के इन तीन राज्यों में कांग्रेस का सूपड़ा साफ़ हुआ है। ये 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले पार्टी के लिए बड़ा झटका है। कांग्रेस के तमाम दावे हवा हवाई हो गए और हिंदी पट्टी के तीन बड़े राज्यों, राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में कांग्रेस को करारी शिकस्त मिली है। यहाँ कांग्रेस का हर दांव उल्टा पड़ा। ऐसे में 2024 में केंद्र की सत्ता तक पहुंचने का कांग्रेस का ख्वाब फिलहाल पूरा होना मुश्किल होगा। इन तीन राज्यों में ही 65 लोकसभा सीटें है। आपको याद दिला दें कि 2018 में तीनों राज्यों में कांग्रेस की सरकार बनी थी, बावजूद इसके 2019 में कांग्रेस के हिस्से आई थी महज 3 सीटें। वहीँ इस बार भाजपा ने मोदी के चेहरे पर विधानसभा चुनाव लड़ा तो तीनों राज्यों में कांग्रेस साफ़ हो गई और ऐसे में 2024 में कांग्रेस का टिकना बेहद मुश्किल होगा। इन तीन राज्यों में कांग्रेस को बड़ा झटका लगा है, उसका ओपीएस कार्ड भी फेल हो गया और गारंटी मॉडल भी। वहीँ राहुल गाँधी की जिस बढ़ती लोकप्रियता का दावा कांग्रेस कर रही थी वो दक्षिण में तो दिखी लेकिन हिंदी पट्टी में वैसा नहीं दिखा। नतीजे तो ये ही बताते है।
बगैर हिंन्दी पट्टी में खुद को मजबूत किये कांग्रेस किस आधार पर 2024 में जीत का स्वपन देख रही है, ये पार्टी के रणनीतिकार ही जानते है। इन तीन राज्यों को छोड़े भी दे तो उत्तरप्रदेश, बिहार, गुजरात और दिल्ली में भी पार्टी वेंटिलेटर पर दिखती है। इन राज्यों में 153 लोकसभा सीटें है और राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ को जोड़कर ये आंकड़ा 218 हो जाता है। इसके अलावा 10 सीटों वाले हरियाणा और 5 सीटों वाले उत्तराखंड में भी न कांग्रेस सत्ता में है और न कोई बड़ा तिलिस्म करने की स्थिति में दिखती है। वहीँ 14 सीटों वाले झारखण्ड में कांग्रेस गठबंधन सरकार का हिस्सा है लेकिन अकेले दम पार्टी की हैसियत किसी से छिपी नहीं है। हिंदी पट्टी में हिमाचल प्रदेश इकलौता राज्य है जहाँ कांग्रेस की सरकार है, लेकिन चार सीटों वाले इस छोटे प्रदेश में भी पार्टी बहुत सहज नहीं दिखती।
कुल मिलाकर हिन्द्दी पट्टी में 251 लोकसभा सीटें है। 2019 के लोकसभा चुनाव में यूपीए को इनमें से सिर्फ 7 पर जीत मिली थी। हालांकि तब बिहार में जेडीयू एनडीए का हिस्सा था और यूपी में सपा और बसपा मिलकर लड़े थे और
यूपीए गठबंधन का हिस्सा नहीं थे। अब यूपीए गठबंधन खत्म हो चूका है और विपक्ष ने इंडिया गठबंधन बनाया है लेकिन ये नए पैकेट में पुराने सामान की तरह ही दिख रहा है। सपा और कांग्रेस के बीच मध्य प्रदेश में तल्खियों का ट्रेलर दिख चूका है और नतीजा भी अब सबके सामने है। वहीँ जेडीयू भी कांग्रेस के रवैये से नाखुश है।
कांग्रेस और आप भी आमने -सामने है। ऐसे में हिंदी पट्टी में विपक्ष कैसे भाजपा से लड़ पायेगा, ये तो माहिरों की भी समझ से परे है। कांग्रेस विपक्ष की धुरी है और हिंदी पट्टी में जीत दिल्ली का रास्ता प्रशस्त करती है। ऐसे में हिंदी पट्टी में कमजोर होकर कांग्रेस न तो विपक्ष की अगुवाई कर सकती है और न ही भाजपा से मुकाबला।
मोदी की टक्कर में चेहरा नहीं !
इस हार ने कांग्रेस की पुरानी कमी को फिर उजागर कर दिया। हिंदी पट्टी में प्रधानमंत्री मोदी सबसे लोकप्रिय नेता है और कांग्रेस के पास कोई ऐसा चेहरा नहीं जो टक्कर दे सके। भारत जोड़ो यात्रा के बाद राहुल गाँधी को दक्षिण में तो लोकप्रियता मिली है लेकिन हिंदी पट्टी में अब भी राहुल की लोकप्रियता में कोई ख़ास बदलाव नहीं दिखता। जो दीवानगी पीएम मोदी के लिए इन तीन राज्यों में दिखी वो भाजपा की जीत का बड़ा कारण है। तीन राज्यों के चुनावों की बात करें तो सिर्फ राजस्थान में अशोक गहलोत ऐसा चेहरा दिखे जो भाजपा को मुद्दों पर घेरते दिखे और टक्कर में भी लगे, ये ही कारण है भाजपा को राजस्थान में पूरी ताकत झोंकनी पड़ी। इसके अलावा पूरी कांग्रेस में हिन्द्दी पट्टी का एक भी ऐसा चेहरा नहीं दिखता जो मुकाबले में खड़ा भी दिखे। हालांकि प्रियंका गाँधी भी भीड़ जुटाने में कामयाब दिखी लेकिन भीड़ वोटों मे नहीं बदल पाई। राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे दक्षिण से आते है और उसका लाभ पार्टी को कर्णाटक और तेलंगाना में मिला भी है, लेकिन वे हिंदी पट्टी से वैसे कनेक्ट नहीं कर पाते जिस तरह पीएम मोदी करते है। ऐसे में कांग्रेस को नीति रणनीति में बदलाव की सख्त जरुरत है।
** आखिर किसके सर सजेगा मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री का ताज
मध्यप्रदेश में लाडली लहर ऐसी चली की भाजपा ने प्रचंड बहुमत के साथ जोरदार जीत हासिल की। भाजपा को भारी बहुमत मिलने के बाद अब सबकी निगाहें मुख्यमंत्री कि कुर्सी पर टिकी हुई है। मध्यप्रदेश में इस वक़्त सबसे अहम् सवाल ये बना हुआ है कि इस बार मुख्यमंत्री कौन बनेगा ? क्या शिवराज सिंह चौहान को फिर मौका मिलेगा या कोई अन्य चेहरा सीएम की कुर्सी पर विराजमान होगा। सीएम पद के दावेदार अनेक है, लेकिन शिवराज के सामने कोई टिक पाएगा ऐसा मुश्किल लगता है।
ये सच है कि इस बार चुनाव में शिवराज की योजनाओं ने मध्यप्रदेश के मतदाताओं पर खूब असर डाला, 'लाड़ली लहर' भी चली शिवराज को जनता का प्यार भी मिला, लेकिन एक सच ये भी है कि पार्टी ने इस बार शिवराज को सीएम प्रोजेक्ट नहीं किया। इस दफा पूरा चुनाव पीएम मोदी के फेस पर ही लड़ा गया है। 'मोदी के मन में एमपी, एमपी के मन में मोदी' ये नारा देकर ही भाजपा ने इस बार चुनाव लड़ा है। इससे ये जाहिर होता है कि अब सीएम फेस के लिए किसके नाम पर मोहर लगेगी ये भी मोदी ही तय करंगे, लेकिन इस बात को खारिज नहीं किया जा सकता कि शिवराज सिंह के चुनाव प्रचार और उन्हीं की लाड़ली बहना योजना के कारण आज मध्यप्रदेश में भाजपा को जीत मिली है। लाडली बहाना योजना भाजपा के लिए गेमचेंजर साबित हुई है और इसका पूरा क्रेडिट शिव राज सिंह को जाता है। इस जीत से यह बात भी स्पष्ट हो गई है कि मध्य प्रदेश में अभी भी सबसे लोकप्रिय नेताओं में शिवराज सिंह ही शामिल है।
शिवराज के अलावा सीएम पद के दावेदारों में कई नाम चर्चा में बने हुए है इनमे ज्योतिरादित्य सिंधिया, कैलाश विजयवर्गीय,नरेंद्र सिंह तोमर और प्रह्लाद पटेल का नाम शामिल माना जा रहा है, लेकिन चुनाव के नतीजे देखने के बाद शिवराज कि लोकप्रियता को देखते हुए ऐसा लगता नहीं है कि पार्टी उन्हें सीएम पद से महरूम रखेगी। 15 सालों से प्रदेश में सत्ता पर काबिज शिवराज को एक बार फिर सीएम बनाया जाए, तो कोई आश्चर्य नहीं होगा।