11 विधायकों की फ़ौज फिर भी हार गए आनंद ?

** कांगड़ा में कहाँ चुक गई कांग्रेस
** चेहरा गलत या कारण कुछ और .... ?
अपनी गलती माने कौन? दर्द पराया जाने कौन? इक दूजे को गुनहगार बताए सब, खुद को कसूरवार माने कौन? 11 विधायकों में से एक विधानसभा अध्यक्ष, दो कैबिनेट मंत्री, दो कैबिनेट रैंक, दो सीपीएस और एक मुख्य उप सचेतक, यानी कांगड़ा के लगभग आठ विधायक सरकार में एडजस्ट हैं बावजूद इसके कांग्रेस प्रत्याशी आनंद शर्मा को चारों लोकसभा सीटों में से सबसे बड़ी हार का मुंह देखना पड़ा। कांगड़ा संसदीय क्षेत्र की एक भी विधानसभा सीट से कांग्रेस को लीड नहीं मिली है। अब हार का ठीकरा किसके सर फूटेगा ? गलती किसकी मानी जाएगी, अब सवाल तो उठेंगे ही कि आखिरकार कांग्रेस की हार के क्या कारण रहे होंगे ?
15 महीने पहले 2022 में हुए विधानसभा चुनाव में कांगड़ा-चंबा संसदीय सीट से ही कांग्रेस ने सत्ता का रास्ता प्रशस्त किया था। बेहतरीन प्रदर्शन के दम पर पार्टी ने यहां से 12 सीटों में जीत हासिल की थी। फिर राज्यसभा चुनाव में सियासी उठापटक के बाद धर्मशाला विधानसभा सीट कांग्रेस से छिटक गई और अब कांगड़ा संसदीय क्षेत्र में कांग्रेस विधायकों का संख्यां बल 11 हो गया। यहां भाजपा के सिर्फ 5 ही विधायक है और इस बार ये 5 विधायक 11 पर भारी पड़े है। यहां कांग्रेस ने पूरा दारोमदार ही अपने विधायकों पर छोड़ा हुआ था। कांग्रेस के विधायक फील्ड पर बेहद मेहनत करते भी नज़र आ रहे थे, लेकिन परिणाम शून्य रहे। नतीजे दर्शा रहे है कि कांग्रेस के सभी के सभी विधायक आनंद को लीड दिलाने में फेल साबित हुए है।
30 मार्च को ही भाजपा ने डॉ. राजीव भारद्वाज को अपना प्रत्याशी घोषित कर दिया था, जबकि कांग्रेस ने गहन चिंतन मंथन के बाद हुए आनंद शर्मा को 30 अप्रैल को टिकट देकर अपना प्रत्याशी घोषित किया था। पहले चर्चा कई नामों की थी मगर कांग्रेस ने चौंकाते हुए आनंद शर्मा को मैदान में उतारा। 71 वर्ष की आयु में पहला लोकसभा का चुनाव लड़ने वाले आनंद शर्मा ने देरी से टिकट मिलने के बावजूद महज़ 25 दिनों में 76 चुनावी बैठकें कर कांग्रेस की जीत को लेकर कदमताल तो किया, लेकिन उनकी इस मेहनत पर मोदी फैक्टर ज़्यादा असरदार दिखा। शुरुआत से ही आनंद शर्मा पर बाहरी होने का टैग लगा रहा।
दूसरा फैक्टर...आनंद शर्मा उस संसदीय सीट से चुनाव लड़ रहे थे जहाँ उनका खुद का वोट भी नहीं था हालाँकि आनंद ने बाहरी टैगलाइन की काट के लिए मोदी की वाराणसी सीट का उदहारण ज़रूर दिया मगर इसका कोई लाभ आनंद को नहीं मिला। काँगड़ा संसदीय सीट के सियासी समीकरणों को देखा जाए तो यहाँ क्षेत्रवाद और जातिवाद का असर किसी भी चुनाव में निर्णायक साबित होते हुए आए है। अब भाजपा ने यूँ ही तो नहीं ब्राह्मण फेस पर दांव खेला होगा। पिछले चुनावी नतीजे बताते है कि काँगड़ा संसदीय सीट पर अधिकाँश बार ब्राह्मण चेहरा ही जीत कर संसद भवन पहुंचा है।
तीसरा बड़ा फैक्टर .. कांग्रेस अगर किसी स्थानीय नेता को टिकट देकर मैदान में उतारती तो शायद परिणाम कुछ बेहतर होते। जीत मिलती न मिलती मगर ऐसी करारी हार का मुँह तो न देखना पड़ता। कई नेता थे जो चुनाव लड़ने के इच्छुक थे और कई नेता ऐसे भी थे जिनकी चुनाव लड़ने में कोई दिलचस्पी नहीं थी, मगर फैसला तो आलाकमान को लेना था और आलाकमान ने ऐसे चेहरे पर दांव खेला जो जी -23 में शामिल हुआ करते थे। अब परिणाम सबके सामने है। काँगड़ा में भाजपा के प्रत्याशी डॉ राजीव भारद्वाज ने 2,51,895 वोटो से जीत हासिल की है। आनद शर्मा की ये हार आनंद से ज़्यादा कांग्रेस के 11 विधायकों की हार है। अब रिपोर्ट कार्ड दिल्ली भी जाएगा और प्रदेश में भी इस पर सवालिया निशान उठेंगे।