रिपीट का रिवाज या गहलोत का जादू; रोचक है राजस्थान का रण

भैरों सिंह शेखावत के बाद किसी ने नहीं किया रिपीट
राजस्थान में आखिरी बार 1993 में बाबोसा यानी भैरों सिंह शेखावत ने रिपीट किया था। तब से सत्ता परिवर्तन का सियासी रिवाज जारी है। अब विधानसभा चुनाव का एलान हो चूका है और क्या 30 साल से चले आ रहे सियासी रिवाज पर गहलोत का जादू भारी पड़ेगा, ये देखना रोचक होगा। बहरहाल जादू चेलगा या नहीं इस पर से तो 3 दिसंबर को पर्दा उठेगा पर ये तय है की इस बार राजस्थान के सियासी घमासान जबरदस्त है।
चुनाव से ठीक पहले प्रत्यक्ष तौर पर अशोक गहलोत और सचिन पायलट की अदावत पर भी अब लगाम लगती दिख रही है। सचिन पायलट CWC सदस्य है, अशोक गहलोत के शब्दों में कहें तो पायलट अब खुद आलाकमान है। ऐसे में गहलोत ही राजस्थान में कांग्रेस के प्राइम फेस है। हालाँकि टिकट बंटवारे के बाद ही असल तस्वीर साफ़ होगी, फिर भी काफी हद तक आलकमान स्थिति मैनेज करने में अब तक सफल दिखा है।
अशोक गहलोत द्वारा OPS बहाल करने का सियासी फायदा नुकसान भी चुनाव के नतीजे तय करेंगे। OPS बहाली का ये पहला लिटमस टेस्ट है। राजस्थान में कर्मचारी वोट निर्णायक है। इसी कर्मचारी ने 2003 और 2013 में गहलोत को सत्ता से बाहर किया था। अब ये ही कर्मचारी चुप है। बहरहाल चुप्पी का मतलब तो नतीजे आने पर ही पता लगेगा।
इसी तरह 22 नए ज़िले बनाकर भी गेहलोत ने बड़ा दांव चला है। इसका लाभ भी कांग्रेस को हो सकता है। गेहलोत सरकार की कई योजनाएं भी जनता के बीच लोकप्रिय जरूर है।
बावजूद इसके राजस्थान का सियासी मिजाज कुछ ऐसा है कि लोग हर पांच साल में बदलाव के लिए मतदान करते आ रहे है।
2020 के सियासी घटनाक्रम के बीच अपनी सरकार बचाकर गहलोत पहले ही अपनी राजनीतिक कुशलता साबित कर चुके है। अगर गहलोत रिपीट कर पाएं तो संभवतः वर्तमान दौर में कांग्रेस का सबसे बड़ा सियासी चेहरा हो जायेंगे।
