शारदीय नवरात्र के पहले दिन क्यों बोए जाते हैं जौ? जानिए इसके क्या है महत्व
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हर वर्ष आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से शारदीय नवरात्रि की शुरुआत हो जाती है। इस साल शारदीय नवरात्रि की शुरुआत सोमवार 22 सितंबर से होने वाली है और 2 अक्टूबर को विजयदशमी के दिन समाप्त होगी। नवरात्रि के दिनों में देवी दुर्गा की 9 रूपों की पूजा की जाती है। साथ ही अष्टमी और नवमी के दिन कन्या पूजन की भी परंपरा है। साथ ही शारदीय नवरात्र के प्रथम दिन घटस्थापना भी की जाती है। घटस्थापना के समय जौ की सबसे पहले पूजा होती है और जौ को कलश में भी स्थापित किया जाता है। इस दौरान लोग मां दुर्गा का आशीर्वाद पाने के लिए व्रत रखते हैं। अंत में दशमी के दिन रावण दहन होता है। ऐसी मान्यता है कि नवरात्रि में जौ बोने से घर-परिवार में सुख-समृद्धि तो आती ही है और साथ ही घर का भंडार भी हमेशा भरा रहता है।
कलश स्थापना की शुभ मुहूर्त
नवरात्रि के पहले दिन ही कलश स्थापना की जाती है, जिसे घटस्थापना भी कहते हैं।
कलश स्थापना का शुभ मुहूर्त- 22 सितंबर 2025 को सुबह 6:09 बजे से 8:06 बजे तक है।
नवरात्रि का महत्व
नवरात्रि का जो पर्व है वह बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है। मां दुर्गा ने महिषासुर राक्षस का वध करने के लिए 9 दिनों तक युद्ध किया था। महिषासुर का वध करके देवी ने धर्म की रक्षा की थी। इसीलिए नौ दिनों तक देवी दुर्गा की पूजा की जाती है। नवरात्रि में व्रत और पूजा करने से जीवन के कष्ट दूर होते हैं। शास्त्रों के अनुसार, यदि नवरात्र की प्रतिपदा सोमवार या रविवार को हो तो देवी दुर्गा हाथी पर सवार होकर आती हैं। देवी दुर्गा का हाथी पर सवार होकर आना बहुत ही शुभ माना जाता है।
जौ बोने का महत्व
ऐसी मान्यता है कि जब पृथ्वी पर असुरों और दैत्यों का अत्याचार बढ़ने पर मां दुर्गा ने असुरों का संहार किया। इस दौरान पृथ्वी पर अकाल की जैसी स्थिति हो गई थी। तब उस दौरान सबसे पहले पृथ्वी पर जौ उगे थे। इसी वजह से सनातन में नवरात्र के समय जौ बोने को शुभ और समृद्धि का प्रतीक माना जाता है। इसे लेकर एक दूसरी मान्यता भी है। ऐसा कहा जाता है कि जब ब्रह्मा जी ने इस सृष्टि की रचना की थी, तब सबसे पहले जौ उगी थी।
ऐसा कहा जाता है कि यदि जौ का रंग सफेद या हरा हो जाए, इससे जीवन के सभी कष्ट समाप्त हो जाते हैं। वहीं यदि जौ अंकुरित हो जाए, तो इससे घर में खुशियों आती है।