बापू का शिमला से रहा गहरा नाता, हत्या का ट्रायल भी शिमला में चला

राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का हिमाचल की राजधानी शिमला से गहरा नाता रहा है। उनकी विचारधारा और रणनीतियों को आकार देने वाले विभिन्न क्षेत्रों में से एक शिमला भी है l हिमालय की ऊँची चोटियां भी उनके गहन राजनीतिक दर्शन और रणनीतिक चिंतन की साक्षी रही। बेशक आजादी के बाद महात्मा गांधी शिमला नहीं आ पाए, मगर आजादी से पहले शिमला बापू की कर्म स्थली रही। इतिहास के गर्भ में छिपे कई महत्वपूर्ण फैसले राजधानी शिमला में ही हुए, यहाँ उनकी अनेक स्मृतियां भी मौजूद हैं। राष्ट्रपिता की अधिकांश शिमला यात्राएं ब्रिटिश सत्ता के साथ चर्चा से जुड़ी हुआ करती थी।
महात्मा गांधी की पहली शिमला यात्रा 11 मई 1921 में हुई। तब बापू मौलाना मुहम्मद अली, शौकत अली, मदन मोहन मालवीय और लाला लाजपतराय के साथ तत्कालीन लॉर्ड रीडिंग से मिलने शिमला आए थे। उस यात्रा में वे शिमला के चक्कर में शांति कुटीर में ठहरे थे। तब ये मकान होशियारपुर के साधु आश्रम की संपत्ति थी। 13 मई को गांधी जी वायसराय लॉर्ड रीडिंग से मिले l दूसरे दिन महात्मा गांधी ने आर्य समाज लोअर बाजार शिमला के हॉल में महिलाओं को संबोधित किया, 15 मई को उन्होंने 15000 से अधिक के जन समूह को ईद के मौके पर संबोधित किया l शिमला के आसपास के पहाड़ी क्षेत्र से भी लोग गांधी के दर्शन के लिए आए थे l गांधी जी के शिमला आगमन से ही इस पर्वतीय क्षेत्र के लोगों का ध्यान राष्ट्रीय विचारधारा की ओर आकर्षित हुआ था l इसके बाद वे 1931 में वायसराय लार्ड वेलिंग्टन से मिलने भी आए थे। सितंबर 1939 में वे दो बार और 1940 में एक बार शिमला आए। महात्मा गांधी अपनी अंतिम शिमला यात्रा के दौरान 1946 में आए। ये यात्रा दो हफ्ते की थी। इस दौरान वे समरहिल में चैडविक इमारत में ठहरे।
- शिमला से पहले डगशाई आए थे बापू
शिमला से पहले महात्मा गांधी सोलन की डगशाई जेल 1920 में आए थे। दरअसल, प्रथम विश्वयुद्ध के दौरान ब्रिटिश सेना ने बड़ी संख्या में आयरिश सैनिकों को बंदी बनाया था। इनमें से कइयों को हिमाचल लाकर डगशाई जेल में बंद करके कठोर यातनाएं दी गई। आयरिश सैनिकों ने जेल की प्रताड़ना सहते हुए यहां अनशन भी किया था। यह बात जब जेल से बाहर निकली तो 1 अगस्त 1920 को महात्मा गांधी उन्हीं सैनिकों से मिलने डगशाई आए। इस दौरान वह 2 दिन तक इसी जेल में रुके। बताते हैं कि गांधी जी, आयरिश नेता इयामन डे वेलेरा के दोस्त और प्रशंसक भी थे। यही कारण था कि हिंदुस्तान की जेल में बंद होकर भी अपनी आजादी की जंग लड़ रहे आयरिश सैनिकों से मिलने बापू डगशाई पहुंचे। उस समय बापू को जिस कोठरी में ठहराया गया था, उसके बाहर महात्मा गांधी की तस्वीर लगी है। इसी जेल का आखिरी कैदी महात्मा गांधी का हत्यारा नाथू राम गोडसे था।
- शिमला में हुआ महात्मा गांधी की हत्या का ट्रायल
महात्मा गांधी की हत्या का ट्रायल शिमला के मिंटो कोर्ट में चला। तत्कालीन समय में मिंटो कोर्ट पीटरहॉफ के अधीन था, जहां अब हिमाचल सरकार का राज्य अतिथि गृह पीटरहॉफ चल रहा है। इसी मिंटो कोर्ट में नाथू राम गोडसे को बतौर आरोपी पेश किया गया। 21 जून 1949 को गोडसे को फांसी की सजा सुनाई गई। इसके बाद अंबाला जेल में गोडसे को फांसी दी गई। तब पंजाब हाईकोर्ट भी इसी भवन में था, हालांकि अब यह मिंटो कोर्ट भवन जलकर राख हो गया है। इसी के साथ नाथू राम गोडसे से जुड़ा इतिहास भी खत्म हो गया। साल 1968 में मिंटो कोर्ट को दीपक प्रोजेक्ट के सुपुर्द किया गया, तब से यहां इनका कार्यालय चल रहा है।
- शिमला में चलने वाले मानव रिक्शा से निराश थे महात्मा गांधी
आजादी से पहले शिमला में सिर्फ तीन ही गाड़ियां होती थी l ज्यादातर लोग मानव रिक्शा से ही सफर किया करते थे। महात्मा गांधी मानव रिक्शा के भी खिलाफ थे। इस रिक्शा को चलाने में पांच लोगों की जरूरत पड़ती थी। चार लोग रिक्शा को खींचते थे, जबकि एक आदमी रिक्शा के पीछे दौड़ा करता था। जब कोई एक व्यक्ति थक जाता, तो दौड़ रहा व्यक्ति उसकी जगह ले लेता था। महात्मा गांधी को जब स्वयं मानव रिक्शा से सफर करना पड़ा तो, वे बेहद निराश हुए। उन्होंने रिक्शा खींच रहे लोगों से पूछा कि क्या तुम पशु हो? तब रिक्शा खींच रहे एक व्यक्ति ने जवाब दिया कि हम पशु तो नहीं, लेकिन हमारे साथ पेट जुड़ा है। इसके लिए हमें यह काम करना पड़ता है, हालांकि धीरे-धीरे समय बदला और समय के साथ मानव रिक्शा का अस्तित्व ही खत्म हो गया।