दो वाद्य यंत्रों को बजता ‘घुराई’ और कंसी बजाती ‘घुरैण'

मुसाधा : लोक गाथा गायन की भी समृद्ध परंपरा
हिमाचल लोकसाहित्य की अनेक विधाओं में लोक गाथा गायन की भी समृद्ध परंपरा है। इन विधाओं में चंबा जिला की सांस्कृतिक विरासत मुसाधा गायन का विशेष स्थान है। पूर्ण रुप से धार्मिक परंपराओं से जुड़े मुसाधा गायन में दो कलाकार होते हैं। पुरुष कलाकार को ‘घुराई’ और स्त्री कलाकार को ‘घुरैण’ कहते हैं। मुसाधा लोक कलाकार शायद विश्व में पहला लोक कलाकार है जो एक साथ दो वाद्य यंत्रों को बजाते हुए गाता है। एक हाथ में वाद्ययंत्र खंजरी से ताल बजाता है और दूसरे हाथ से गले में लटका वाद्य यंत्र रुबा (तार वाद्य) से संगीत देते हुए गाता है। घुरैण (स्त्री कलाकार) हाथों में कंसी बजाते हुए गाने में साथ देती है। मुसाधा में रामायण, महाभारत, शिव पुराण इत्यादि का गाथा गायन किया जाता है और प्रसंग गाने के उपरांत बीच-बीच में स्थानीय भाषा में उसकी व्याख्या कथा के रूप में की जाती है।
मुसाधा का आयोजन भगवान शिव के निमित्त नई फसल होने पर और मांगी गई मुराद मन्नत पूरी होने पर विशेष रूप में किया जाता है।
मुसाधा लोक गायन का आयोजन नई फसल होने पर लोक गायक घर-घर जाकर अपना गायन सुना कर भी नई फसल बधाई के रूप में प्राप्त करते हैं।
मुसाधा गायन का आयोजन रात को खान पान से निवृत होकर शुरू होता है और सवेरे लगभग चार बजे तक जारी रहता है। जिस स्थान पर मुसाधा का आयोजन किया जाता है, उस स्थान को गाय के गोबर लीपा जाता है। लोक कलाकारों को आसन बिछाकर बैठाया जाता है और उनका भरपूर आदर सत्कार होता है। आयोजक अपनी इच्छा अनुसार बरसोद (पांच माणी अन्न) या दस्यूंद (10 माणी )भगवान के निमित्त करता है। सामर्थ्य अनुसार कई लोग तो भेड़ -बकरी भी भेंट में देते हैं। मुसाधा लोक गायक सर्वप्रथम अपने साजो को धुप दिखाकर गायन की शुरुआत करता है और फिर देखते ही देखते भक्ति रस की वो धारा बहने लगती, जिसमें श्रद्धालु मग्न हो जाते है।
- मुसाधा के वजूद पर संकट !
तकनीक के इस दौरे में कई पुरातन धार्मिक परम्पराएं आज ओझल होती प्रतीत होती हैं, जिनमे से मुसाधा भी एक है। एक दौर तय जब मुसाधा लोक कलाकारों का जमकर सम्मान होता था, पर वर्तमान में लोक संस्कृति की इस अमूल्य धरोहर के वजूद पर संकट मंडराने लगा है। अब मुसाधा कलाकारों की संख्या बेहद कम रह गई है। जो इस परम्परा से जुड़े भी है उनके लिए भी जीवन यापन आसान नहीं। हालांकि समय -समय पर भाषा एवं संस्कृति विभाग विभिन्न आयोजन करता है, लेकिन ये प्रयास नाकाफी है।