हिमाचल की आवो हवा में खुशबू की तरह घुले है प्रताप शर्मा के लोक गीत

जीणा कांगड़े दा : भीड़ की गारंटी थी प्रताप शर्मा की आवाज के साथ धंतारू
अलबत्ता, 'जीणा कांगड़े दा...', सहित दर्जनों लोकगीतों को अपनी मधुर आवाज देकर जन-जन तक पहुंचाने वाले प्रसिद्ध लोकगायक प्रताप चंद शर्मा का देहावसान हुए कई बरस बीत गए हो, पर उनके लोक गीत आज भी कांगड़ा सहित हिमाचल के कोने कोने में अपना जादू बिखेर रहे है। तो क्या हुआ उनका एक इकतारा या धंतारू अब खामोश है और अकेला भी , किन्तु उनकी संगीतमय विरासत तो हिमाचल की सांस्कृतिक आवो हवा में खुशबू की तरह घुली है। इस खुशबू को तो हुकुमरानों की उपेक्षा भी विरल न कर सकी।
एक दौर में प्रताप चंद शर्मा की आवाज के साथ धंतारू, भीड़ की गारंटी थी। विशेषकर 60 के दशक में उनका लिखा गया 'गीत ठंड़ी-ठंडी हवा झुलदी, झुलदे चीलां दे डालू, जीणा कांगड़े दा' जब उनकी ही आवाज में आया था, तो सारे रिकॉर्ड टूट गए। ये गीत न सिर्फ उनका ट्रेडमार्क बन गया बल्कि आज भी कांगड़ा के संगीत की पहचान है। इस कदर प्यार शायद ही किसी और पहाड़ी गीत को मिला हो। प्रताप चंद शर्मा ने करीब 200 गीत लिखे थे, और सब बेमिसाल। इनके लिखे कई पहाड़ी गीत आज लोकगीत बन गए हैं। स्वर्गीय लोक गायक प्रताप चंद शर्मा ने 'मेरी धरती, मेरे गीत' किताब भी लिखी है, जिसमें 120 गाने हैं।
- उनके गीत गाकर कई कलाकारों ने लूटी शौहरत
अब जो कांगड़ी गीत संगीत सर्वाधिक चर्चित होकर चलन में है, उसका बड़ा हिस्सा प्रताप चंद शर्मा का रचा-गाया हुआ है। कांगड़ा क्षेत्र में गांव गांव घूम कर उन्होंने अपने अनूठे गीतों का प्रसार किया ही, प्रदेश और देश के दूसरे अंचलों में भी कांगड़ा की ठंडी-ठंडी हवा का संगीत यहां की प्रकृति और जीवन के रंगों के साथ पहुंचा दिया है। प्रताप चंद शर्मा ने ठंडी-ठंडी हवा झुलदी, झुलदे चीलां दे डालू, दो नारां वे लोको लश्कदियां तलवारां, जे तू चला नेफा नौकरी, मेरे गले दे हारे लैंदा ओयां, नाले पार गीतां जो जाणां विच विहाए नचणा गाणा चा नाचे दा, असां क्या गलाया तां तिजो गुस्सा आया व कमला विमला जुड़वां भैणां दोहे इकयी नुहारी जी सहित कई गीत लिखे और गाए जो लोगों की जुबां पर आ गए। उनके लिखे गीत गाकर कई गायकों ने शौहरत लूटी, किसी ने वाइस करेक्शन का सहारा लिया है तो किसी के अन्य आधुनिक तकनीकों का। पर कोई उनके स्तर को छू न सका।
- खुद तैयार किया इकतारा, पिता से सीखी बारीकियां
लोकगायन के प्रति प्रताप चंद शर्मा की साधना का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि उन्होंने खुद लोकवाद्य इकतारा जिसे स्थानीय भाषा में धंतारू कहते हैं, बना कर उस पर कई कालजयी धुनों की रचना की। प्रताप शर्मा ने गांवों में गाई जाने वाली राग- रागणियों का अध्ययन किया और कई नायाब गीत लिखे।
प्रताप चंद शर्मा के पंडित झाणुराम खेती करने के साथ कथा- कीर्तण भी करते थे और लोक संगीत के अच्छे जानकार थे। पिता की संगत में ही उन्हें संगीत का चस्का लग गया। पिता को भी उनमें प्रतिभा दिखी, तो लोकगायकी के गुर सिखाए।
- जब महिंद्र कपूर ने गाना छोड़ माइक थमा दिया
चर्चित किस्सा है कि एक बार हमीर उत्सव में मुंबई से शैलेंद्र सिंह और महिंद्र कपूर सरीखे नामी बॉलीवुड गायक भाग लेने आए थे। इस उत्सव में प्रताप शर्मा भी मौजूद थे। प्रताप चंद शर्मा को चाहने वालो ने उनके नाम की हूटिंग शुरू कर दी, जिसके बाद महिन्द्र कपूर ने माइक प्रताप शर्मा को थमा आइये और खुद एक श्रोता बन कर कार्यक्रम का आनंद लिया।
- उपेक्षा झेलता रहा लोक संस्कृति का ध्वजवाहक
23 जनवरी 1927 को नलेटी, देहरा में जन्मे प्रताप चंद शर्मा का निधन 92 साल की आयु में साल 2018 में हुआ था। पहाड़ी गीतों को हर जुबां तक लाने वाले स्व. प्रताप चंद शर्मा को जीते जी तो सरकारी स्तर पर वह सम्मान नहीं मिल पाया जिसके वह हकदार थे। उनकी नौकरी लगातार अनुबंध पर रही जो उन्हें पेंशन का हकदार नहीं बना सकी। प्रताप चंद शर्मा सम्मान बहुत मिले लेकिन सिर्फ सम्मान से घर गृहस्थी कहाँ चलती है ? 1962-1986 तक लोक संपर्क विभाग कांगड़ा के अनुबंध कर्मचारी रहे। उन्हें कार्यक्रम के हिसाब से भुगतान किया जाता था। शुरू में हर कार्यक्रम के लिए पाँच रुपये मिलते थे, जो दशकों बाद 400 रुपये प्रति कार्यक्रम तक पहुंचे थे।
एक इंटरव्यू में प्रताप चंद शर्मा ने कहा था, " मैंने लोक संपर्क विभाग, आकाशवाणी और दूरदर्शन के लिए कई गीत रचे और गाए पर विभाग की तरफ से पैंशन नहीं मिली। इस बात का मलाल है। पर हिमाचल की जनता से मुझे बहुत प्यार मिला। "
इससे भी अधिक शर्मिंदगी इस बात ये है कि उनके इस दुनिया से जाने के बाद भी उपेक्षा खत्म नहीं हुई। हिमाचल संस्कृति के ध्वजवाहक रहे प्रताप चंद शर्मा की अंत्येष्टि में प्रशासन की तरफ से कोई भी अधिकारी नहीं पहुंचा था।
इस बीच प्रताप चंद शर्मा की पत्नी सत्या देवी की उम्र अब 92 बरस हो गई है। पति को गुजरे सात साल बीत चुके है लेकिन सत्या देवी इसी आस में है कि सरकार से प्रताप चंद शर्मा को जो मान -सम्मान जीत जी हासिल न हुआ, वो अब मिल जाए। देहरा में उनकी एक मूर्ति ही लग जाए ताकि उनसे जुड़ी स्मृतियां ही बची रहें, और आने वाली पीढ़ी भी इस कर्मयोगी को याद रखे।