शिव नगरी बैजनाथ में नहीं जलाया जाता रावण

शिव नगरी बैजनाथ में रावण का पुतला नहीं जलाया जाता। यहां ऐसी धारणा भी है कि किसी ने रावण जलाया या दशहरा मनाया तो उसे भगवान शिव के क्रोध का सामना करना पड़ सकता है। माना जाता है कि बैजनाथ मंदिर में वही शिवलिंग है, जिसे लंकापति रावण हिमालय में भगवान शिव की तपस्या करने के बाद लंका ले जा रहा था, लेकिन एक शर्त पूरी न कर पाने के कारण यह यही स्थापित हो गया था। यहां सालों से दशहरा पर रावण का पुतला नहीं जलाया जाता था।
दरअसल 1965 में बैजनाथ भजन मंडली का गठन हुआ। इसमें शामिल कुछ बुजुर्ग व युवाओं ने उस समय मंदिर के ठीक सामने मैदान मे दशहरा मनाने की प्रथा शुरू की लेकिन भजन मंडली के अध्यक्ष की उसके कुछ समय बाद मौत हो गई। साथ ही इस आयोजन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले कुछ लोगों को मौत व भारी हानि का सामना करना पड़ा। इसका बाद 1969 में यहां दशहरा मनाना ही बंद कर दिया गया। इसके पीछे कुछ लोगों का तर्क था कि लंकापति रावण भगवान शिव का परम भक्त था और कोई भी देव अपने भक्त को इस तरह से जलता नहीं देख सकता। न यहां दशहरा उससे पहले मनाया जाता था और न ही उक्त चार सालों के बाद कभी मनाया गया है।