बेहद खास है पहाड़ों की ये नमकीन चाय

सेहत, संस्कृति और जनजातीय संस्कृति की परिचायक है 'बटर टी'
जब हम चाय का ज़िक्र करते हैं, तो ज़हन में सबसे पहले मीठी, दूध वाली चाय की तस्वीर उभरती है। लेकिन हिमाचल प्रदेश के ऊंचे पहाड़ी इलाकों खासकर स्पीति और किन्नौर में चाय का एक अनोखा और दिलचस्प रूप है, नमकीन चाय, जिसे स्थानीय भाषा में छा चा या बटर टी भी कहा जाता है। यह चाय जितनी साधारण दिखती है, उतनी ही गहराई से संस्कृति, भूगोल और जीवनशैली से जुड़ी हुई है।
भारत में जहाँ चाय का मतलब आमतौर पर दूध और चीनी से बनी मीठी चाय होता है, वहीं किन्नौर और स्पीति में चाय का मतलब होता है मक्खन, नमक, चायपत्ती और कभी-कभी याक के दूध का मेल। यह चाय शरीर को ऊर्जा देती है, ठंड में गर्मी बनाए रखती है और ऊँचाई पर ऑक्सीजन की कमी से लड़ने में मदद करती है। यकीन मानिये यह सिर्फ स्वाद की बात नहीं, बल्कि स्थानीय ज्ञान का परिणाम है या ऐसा कहें एक ऐसा समाधान जो सदियों पहले वहां के लोगों ने कठिन मौसम से जूझने के लिए खोजा था।
- लकड़ी के थर्मस में बनाई जारी है यह विशेष चाय
नमकीन चाय को बनाने का तरीका भी उतना ही खास है जितना उसका स्वाद। इसे तैयार करने के लिए स्थानीय लोग एक विशेष लकड़ी के पात्र का इस्तेमाल करते हैं, जिसे चांगमो कहा जाता है। यानि यह लकड़ी से बनाया गया बटर टी चर्नर है। यह एक तरह का परंपरागत थर्मस है जिसमें चाय को डालकर लंबे समय तक फेंटा जाता है। इस प्रक्रिया से चाय में झाग बनती है और उसकी बनावट गाढ़ी व मुलायम हो जाती है। चांगमो सिर्फ एक बर्तन नहीं, एक पीढ़ियों से चली आ रही परंपरा का प्रतीक है, जिसे हर घर में सहेज कर रखा जाता है, जिसकी कीमत नक्काशी के आधार पर 5000 से लेकर 5 लाख तक होती है। नमकीन चाय बनाने के लिए बाजार में मिलने वाली चायपत्ती का इस्तेमाल नहीं होता है, बल्कि चाय पट्टी के तौर पर लकड़ी के टुकड़े को उबला जाता है। इस चाय के लिए पहाड़ो से निकली गयी प्राकृतिक शिंग चा यानी पहाड़ो में पाई जाने वाली लकड़ी चाय को एक स्पेशल कपड़े में बांधकर पानी के बर्तन में चाय के रंग आते तक रखा जाता है और पानी को करीब आधा घण्टा उबाला जाता है। बाज़ार में आसानी से अवेलेबल नहीं होने के चलते इसकी डिमांड और अधिक बढ़ जाती है।
- चाय नहीं, मेहमान-नवाज़ी की पहली सीढ़ी
किन्नौर और स्पीति में अगर आप किसी घर जाएँ, तो सबसे पहले जो चीज़ आपके हाथ में दी जाएगी, वह है नमकीन चाय की प्याली। यह शाही मेहमाननवाजी का हिस्सा है। यहाँ यह नहीं पूछा जाता कि चाय लेंगे, बल्कि सीधे परम्परागत तरीके से बनाई गयी "लो हाइट टेबल" जिसे "चोकचे" कहा जाता है पर परोसा जाता है।
- होटलों की ट्रे तक पहुँची यह परंपरा
आज यह चाय सिर्फ गांवों तक सीमित नहीं रही। जैसे-जैसे पर्यटन ने रफ्तार पकड़ी है, वैसे-वैसे नमकीन चाय पर्यटकों के बीच एक विशेष आकर्षण बन गई है। स्पीति और किन्नौर के होटलों, होमस्टे और लोकल कैफे में अब इसे खास तौर पर पेश किया जा रहा है, वो भी अच्छे खासे रेट पर। विदेशी सैलानी इसे ‘Himalayan Butter Tea’ के नाम से पहचानते हैं और भारतीय पर्यटक इसे एक नई संस्कृति से जुड़ने का अनुभव मानते हैं।
होटल संचालक सुमित नेगी बताते है कि यह चाय अब एक लोकल डिलाइट नहीं, बल्कि एक संस्कृति से संवाद का माध्यम बन चुकी है। नेगी बताते है कि आज के दौर में जब बहुत सी पारंपरिक चीजें गुम हो रही हैं, नमकीन चाय ने खुद को समय के साथ जोड़ लिया है लेकिन अपनी जड़ों से कटे बिना। यह अब सिर्फ एक पेय नहीं, बल्कि हिमाचल की सांस्कृतिक पहचान का हिस्सा है।