इस मंदिर में लगती है धर्मराज की अदालत !

मान्यता : सोने-चांदी-ताबे-लोहे के 4 अदृश्य दरवाजे
देवभूमि हिमाचल प्रदेश के जनजातीय क्षेत्र भरमौर को शिव नगरी कहा जाता है। इसी शिव नगरी भरमौर में स्थित है चौरासी मंदिर। मान्यता है कि इस मंदिर में साक्षात यमराज विराजमान हैं। माना जाता है कि यहां यमराज की अदालत लगती है और यहीं से यह तय होता है कि व्यक्ति मृत्यु के बाद स्वर्ग लोक जाएगा या नर्क लोक। ये मंदिर बाहर से देखने में बिलकुल आम नजर आता है, लेकिन इसकी मान्यता सबसे अनूठी है। कहा तो यह भी जाता है कि इस मंदिर में चार अलग-अलग धातु के अदृश्य दरवाजे भी हैं और यह द्वार सोना, चांदी, तांबे और लोहे से बने हुए हैं।
गरुड़ पुराण में भी यमराज के दरबार में चार दिशाओं में चार द्वार का उल्लेख किया गया है।
चौरासी मंदिर संसार के इकलौते धर्मराज महाराज या मौत के देवता का मंदिर है। इस मंदिर की स्थापना के बाबत किसी को भी सही जानकारी नहीं है। बस इतना जरूर है कि चंबा रियासत के राजा मेरू वर्मन ने छठी शताब्दी में इस मंदिर की सीढिय़ों का जीर्णोद्धार किया था। इस मंदिर में एक खाली कमरा है जिसे चित्रगुप्त का कमरा माना जाता है। चित्रगुप्त जीवात्मा के कर्मों का लेखा-जोखा रखते हैं। दरअसल हिन्दू पौराणिक कथाओं के अनुसार जब किसी प्राणी की मृत्यु होती है तब धर्मराज के दूत उस व्यक्ति की आत्मा को पकड़ कर सबसे पहले इस मंदिर में चित्रगुप्त के सामने प्रस्तुत करते हैं। चित्रगुप्त जीवात्मा को उनके कर्मों का पूरा लेखा-जोखा देते हैं। इसके बाद चित्रगुप्त के सामने के कक्ष में आत्मा को ले जाया जाता है। फिर यमराज व्यक्ति की आत्मा का भविष्य का रास्ता तय करते हैं। इस बात का जिक्र गरुड़ पुराण में भी किया गया है। मान्यता है कि इसी मंदिर में यमराज की कचहरी लगती है और कर्मों के आधार पर फैसला आता है।
मुक्ति धाम के नाम से विख्यात शिव नगरी भरमौर जिसे भगवान शंकर की चरणस्थली भी कहा जाता है। ऐसी जनश्रुति है कि भगवान शंकर के त्रिशूल पर काशी को विराजमान माना जाता है तो चरणस्थली चौरासी मानी जाती है। काशी में मात्र विश्वनाथ भगवान के दर्शन करने सभी पापों का अंत हो जाता है तो चौरासी के दर्शन करने से 84,000 योनियों के चक्कर से छुटकारा मिलता है।
- भगवान सूर्य की संतान हैं यमराज और यमुना
भाई दूज के त्योहार के दिन यहां भक्तों की भारी भीड़ लगती है। मान्यता है कि इस दिन यमराज से मिलने उनकी बहन यमुना इस मंदिर में आती हैं। पौराणिक कथाओं में यमराज और यमुना को भगवान सूर्य की संतान बताया गया है। कुछ लोग इसे सिर्फ कहानी मात्र ही मानते हैं और कुछ लोगों का समानता पर अटूट विश्वास है।
- पिंड दान के लिए दूर-दूर से आते हैं लोग
स्थानीय लोगों के मुताबिक, यदि किसी व्यक्ति की अप्राकृतिक मौत हो जाती है, तो उसके सगे-संबंधी यहां पिंड दान के लिए आते हैं। मंदिर के पास ही वैतरणी नदी भी बहती है, जहां गौ-दान किया जाता है।