इकलौते घर वाला गाँव !!

स्पीति की बर्फ से ढकी चोटियों और घाटियों के बीच बसा हुआ काकती एक ऐसा गांव है, जो न सिर्फ अपनी असाधारण भौगोलिक स्थिति के लिए प्रसिद्ध है, बल्कि इसके अस्तित्व का एक दिलचस्प और अनूठा पहलू है। यह गांव सिर्फ एक घर का है, और यह तथ्य इस गांव की पहचान बन चुका है। काजा पंचायत के अंतर्गत आने वाला यह गांव काजा से लगभग 10 किलोमीटर दूर और 22 घुमावदार मोड़ों के पार स्थित है। एक अद्भुत और आकर्षक जगह है, जो पूरी तरह से एक परिवार की संरचना में समाहित है। हालाँकि कागज़ों में यह गांव 15 बीघा में फैला है। काकती गांव का दिल उस एक घर में बसा हुआ है, जो लगभग 300 साल पुराना है। आज भी, इस घर में छेरिंग नामग्याल का परिवार निवास करता है, जो इस परिवार के पांचवी पीढ़ी है और इस गांव की देखभाल कर रहे हैं।
काकती के इस घर की बनावट हिमालय की पारंपरिक वास्तुकला का बेहतरीन उदाहरण है। यह घर मिट्टी और पत्थर से बना पारंपरिक मड हाउस है, जो लगभग 300 साल पुराना है। मड हाउस की सबसे बड़ी खूबी यह है कि यह गर्मी और सर्दी दोनों मौसमों में काफी आरामदायक रहता है। सर्दियों में यह घर अंदर से गरम रहता है और गर्मियों में ठंडा। हिमालय की कठोर सर्दी में घर को गर्म रखने के लिए छेरिंग और उनके परिवार सदस्य लकड़ी का इस्तेमाल करते हैं। वे पहले से ही सर्दियों के लिए लकड़ी जमा कर लेते हैं और घर को गर्म रखने के लिए उसे जलाते हैं। इसके अलावा, घर के भीतर राशन का पर्याप्त भंडारण किया जाता है, ताकि सर्दी में किसी प्रकार की खाद्य सामग्री की कमी न हो।
मिट्टी के घर की संरचना इतनी मजबूत है कि यह आसानी से मरम्मत भी की जा सकती है। समय-समय पर इसे नवीनीकरण किया जाता है, ताकि घर की दीवारें और छतें सुरक्षित और टिकाऊ बनी रहें। घर का डिज़ाइन मौसम की परिस्थितियों के अनुरूप है और इसे सर्दी और गर्मी दोनों में आरामदायक बनाए रखने के लिए बहुत अच्छे से तैयार किया गया है।
छेरिंग नामग्याल कहते हैं, “उनके पूर्वजों ने इस घर को इस तरह से डिज़ाइन किया था कि यह ठंडे और गर्म मौसम में दोनों में आरामदायक रहे। हमारे लिए यह घर केवल एक आश्रय नहीं है, बल्कि हमारी पहचान है।"
पूर्वज रहते थे चट्टान के नीचे
काकती गांव में नामग्याल के घर से कुछ दूरी पर एक सुरंग है , जो लगभग 300 साल पुरानी है। सुरंग उस समय की जीवनशैली की गवाह है, जब इस परिवार का कोई अन्य आवासीय स्थान नहीं था। यह सुरंग न केवल एक शरण स्थल थी, बल्कि परिवार के लिए यह एक जीवन रक्षक स्थान भी साबित हुई थी। हिमालय की कठोर सर्दियों में, जब तापमान -25 डिग्री तक गिर जाता था, तो परिवार के सदस्य यहां आकर शरण लेते थे। सुरंग के अंदर आग जलाकर ठंड से बचाव किया जाता था, और अनाज का भंडारण भी यहीं किया जाता था, ताकि विपरीत मौसम में खाने-पीने की कोई कमी न हो। आज भी अनाज स्टोर करने के साक्ष्य यहाँ मौजूद है। आज भी इस सुरंग में पूजा करने के निशान और धार्मिक उपकरण मौजूद हैं, जो यह दर्शाते हैं कि यह स्थान सिर्फ एक शरण नहीं, बल्कि एक पवित्र स्थल भी था। समय के साथ, घर बनने के बाद भी इस सुरंग को संरक्षित किया गया है, और यह परिवार के इतिहास, परंपरा और संस्कृति का अहम हिस्सा बनी हुई है।
स्नो लैपर्ड से डरना क्या
काकती के आसपास हिमालयी बाघ या स्नो लेपर्ड (Snow Leopard) का आना-जाना रहता है। इन जंगली जानवरों की आवाजाही इस क्षेत्र में सामान्य बात है, लेकिन छेरिंग नामग्याल और उनका परिवार इन खतरों से बिलकुल नहीं डरते। छेरिंग कहते हैं, "यह हमारा घर है, हम यहाँ जन्मे हैं और यहीं अपनी ज़िंदगी बिताना चाहते हैं। जानवरों से क्या डरना। यह साहस और धैर्य इस परिवार की हिमालय की कठिन परिस्थितियों में टिके रहने की अद्भुत क्षमता को दिखाता है। इस घर और परिवार का साहस हिमालय की कठिनाइयों के खिलाफ उनके संघर्ष की कहानी बयां करता है।
आधुनिकता से लैस एक घर
काकती में सिर्फ एक ही घर है, बावजूद इसके यह आधुनिकता से भी लैस है। भारत सरकार ने इस दूर-दराज़ और कठिन इलाके में सभी आवश्यक आधुनिक सुविधाओं की व्यवस्था की है। BSNL द्वारा 4G मोबाइल नेटवर्क टावर भी यहाँ लगाया गया है, जिससे परिवार और आसपास के लोग इंटरनेट और मोबाइल नेटवर्क से जुड़ सकते हैं। छेरिंग कहते हैं, "पहले खबरें हमारे पास हफ्तों बाद आती थीं, अब इंटरनेट और मोबाइल से हम डिजिटल दुनिया से जुड़े हैं। दुनिया में हो क्या रहा है हमको पता चल जाता है। "
काश कोई और परिवार होता !
काकती में सिर्फ एक ही घर है, लेकिन छेरिंग नामग्याल और उनका परिवार चाहते हैं कि यहां एक और घर हो, ताकि उनका परिवार एक साथ रह सके। वे कहते हैं, "हमारा परिवार छोटा है। अगर एक और घर होता तो हम साथ रहते, खुश रहते और एक-दूसरे का सहारा होते। पहाड़ों की इस कठिन ज़िंदगी में साथ होना बहुत जरूरी है। बचपन में कोई आसपास नहीं होता था तो दिन नहीं कटते थे धीरे धीरे आदत बन गयी और अब तो हम बूढ़े भी हो गए। "