धर्मशाला : राइट टू एजुकेशन फोरम ने मणिपुर हिंसा के कारण बच्चों की शिक्षा एवं स्वास्थ्य पर जताई गहरी चिंता

राइट टू एजुकेशन फोरम ने मणिपुर में हुई जातीय हिंसा के कारण राज्य भर के बच्चों की शिक्षा और उनके शारीरिक-मानसिक स्वास्थ्य को भी बुरी तरह प्रभावित होने पर गहरी चिंता जाहिर की है। राइट टू एजुकेशन फोरम ने मणिपुर में चल रही जातीय हिंसा के दौरान खराब हालात के मद्देनजर बच्चों की शिक्षा को फिर से सामान्य रूप से बहाल करने और बच्चों के अधिकारों को सुनिश्चित करने की मांग की है। गौरतलब है कि आरटीई फोरम शिक्षा का अधिकार कानून, 2009 के जमीनी क्रियान्वयन के जरिये देश भर में बच्चों के लिए समावेशी, समतामूलक एवं गुणवत्तापूर्ण शिक्षा की गारंटी एवं सार्वजनिक शिक्षा के लोक व्यापीकरण की मांग को लेकर 20 राज्यों में काम कर रहा है।
धर्मशाला में पत्रकार वार्ता के दौरान राइट टू एजुकेशन फोरम की स्टे्ट कन्वीनर आयेत्री सेन ने बताया कि इस संदर्भ में सुप्रीम कोर्ट में चल रही सुनवाई के दौरान दलील दी गई थी कि मणिपुर के आदिवासी इलाकों में 200 स्कूल शुरुआती दौर में ही बंद कर दिए गए थे। कुछ स्कूलों को जला दिया गया या क्षतिग्रस्त कर दिया गया। सुगनू में 11 स्कूलों के जलाए जाने की सूचना है। उन्होंने कहा कि शिक्षा प्रत्येक भारतीय बच्चे का संवैधानिक अधिकार है। भारत में प्रत्येक बच्चे के लिए निर्बाध शिक्षा और सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए केंद्र और मणिपुर सहित सभी राज्य सरकारों के पास आपातकालीन शिक्षा के लिए एक नीति होनी चाहिए। उन्होंन चिंता जाहिर करते हुए कहा कि इस तरह की आपात स्थितियों और अशांति एवं संघर्ष के दौरान, बच्चे अकसर बगैर किसी आवाज और प्रतिरोध के आसान और खामोश शिकार साबित होते हैं।
ऐसे हालात उनके कोमल मस्तिष्क और जीवन पर गहरा शारीरिक- मनोवैज्ञानिक असर डालते हैं। क्षति पहु इस हिंसा में कई लोग अनाथ हो गए हैं और धीरे-धीरे उन्हें ष्बाल सुरक्षा एवं देखभाल घरोंष् में रखा जा रहा है। स्कूलों के आस-पास हुई हिंसा की घटनाओं को लेकर सुरक्षा की चिंता और डर के कारण कई माता-पिता बच्चों को स्कूल नहीं भेज पा रहे हैं। हालाँकि, कई मामलों में, शिक्षकों ने बहादुरी का परिचय दिया और अपने छात्रों की सुरक्षा के लिए कदम उठाए हैं।
उन्होंने कहा कि मणिपुर में शिक्षा विभाग ने विस्थापित बच्चों की शिक्षा में तेजी से बहाली का प्रयास किया है। लेकिन मणिपुर के सामने स्थितियों को सामान्य बनाने की बड़ी चुनौती है और राज्य सरकार तात्कालिक उपायों के साथ-साथ दीर्घकालिक उपायों पर ध्यान देने और आगे की योजना बनाने की जरूरत है ताकि इस अशांति और हिंसा के कारण पड़े दीर्घकालिक प्रभावों से भी निजात पाया जा सके।