गुस्सा न करें, यह व्यवस्था परिवर्तन है...और छाए रहे सीएम सुक्खू !

'गुस्सा न करें, यह व्यवस्था परिवर्तन है' मीठे से शब्दों में तीखी बातें कहने वाले मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू के वक्तव्य सरकार के पहले बजट सत्र में खूब छाए रहे। सियासत की पिच पर विपक्ष के हर वार को मुख्यमंत्री इतनी कुशलता से बेअसर करते रहे मानो हर बॉल पर चौके और छक्के लगा रहे हो। अकेले मुख्यमंत्री ही नहीं पूरा सत्ता पक्ष इस बार विपक्ष पर हावी रहा, ये कहना गलत नहीं होगा। निसंदेह भाजपा बतौर विपक्ष खूब आक्रामक रहती है और रही भी, मगर सुक्खू सरकार को हल्के में निपटाना बिलकुल भी आसान नहीं होगा और ये बात हिमाचल प्रदेश की 14वीं विधानसभा के इस पहले बजट सत्र में स्पष्ट हो गई है।
दरअसल बजट सत्र के शुरू होने से पहले कयासों का बाजार गर्म था कि नई सरकार के नए मुखिया जो पहले कभी मंत्री भी नहीं रहे, उनके थोड़े कम अनुभवी होने का फायदा भाजपा उठाएगी, मगर हुआ एक दम उलट। विपक्ष के हर सवाल का जवाब सरकार के पास मौजूद था और जवाबी हमला भी तैयार था। कहीं भी अनुभव की कोई कमी महसूस नहीं होने दी गई। जब मांग हुई तो कई बार विपक्ष को बोलने का मौका भी दिया गया। ख़ास बात ये है कि सिर्फ सीएम या एकाध विधायक ही नहीं बल्कि सत्ता पक्ष के कई विधायकों ने सदन में विपक्ष पर पलटवार भी किये और छाप भी छोड़ी।
बजट सत्र में विपक्ष द्वारा सदन में कई मसले उठाए गए। डिनोटिफाइड संस्थानों को दोबारा खोलने की मांग की गई। विपक्ष बजट सेशन में ज़ंजीरों और तालों में लिपट कर भी पहुंचा और मुख्यमंत्री को 'लॉक प्रिय मुख्यमंत्री' की उपाधि भी दी गई। मगर इस पूरे प्रकरण को सिक्योरिटी ब्रीच बता सरकार ने किनारे किया। जब विपक्ष ने इस मुद्दे पर चर्चा मांगी तो चर्चा की अनुमति दी गई और जस्टिफाई भी किया गया कि संस्थानों को किन परिस्थितियों में बंद किया गया। जरूरत पड़ने पर इन्हें खोलने से भी सरकार गुरेज़ नहीं करेगी, ये भी स्पष्ट किया गया। फिर सत्र में विपक्ष द्वारा आउटसोर्स कर्मचारियों का मसीहा बनने की कोशिश भी की गई, मगर बात यहां आकर अटक गई कि आउटसोर्स कर्मचारी पिछले पांच साल जयराम सरकार के आगे रोते गिड़गिड़ाते रहे, मगर सरकार इन कर्मचारियों का डाटा ही एकत्रित नहीं कर पाई और न इनके लिए कोई पॉलिसी पूर्व सरकार ला पाई।
इसी तरह सरकार का पहला बजट पेश हुआ तो उसे विपक्ष ने दिशाहीन करार दिया और दावा किया कि ये केंद्र सरकार का कॉपी पेस्ट बजट है मगर उसमें भी एक्सपर्ट्स को कोई ख़ास कमिया नज़र नहीं आई। विश्लेषण के बाद बजट फिजूल खर्चों को कम कर आय के साधन बढ़ाने की दृष्टि में कार्य करने वाला साबित हुआ और सरकार ने कहा कि अगर केंद्र जैसा बजट हिमाचल सरकार लेकर आए तो इसमें भाजपा को एतराज कैसा। लोकतंत्र प्रहरी योजना को बंद करने का मसला उठा तो कांग्रेस ने स्पष्ट किया कि आरएसएस के लोगों को समर्थन देने की जिम्मेदारी हिमाचल सरकार के कर्ज तले दबे कंधो पर होना जायज नहीं है। जब बात विधायक निधि की हुई तो फाइनैंशल मैनेजमेंट का हवाला दिया गया। यानी ओवरऑल देखा जाए तो विपक्ष के पास ऐसा कुछ नहीं था, जो सरकार को पूरी तरह बैकफुट पर लाने में कारगर साबित हो पाता।
यहाँ सत्ता पक्ष के कुछ नेताओं का खास जिक्र भी जरूरी है जो सेशन में स्टार बनकर उभरे। सत्र के दौरान उप मुख्यमंत्री मुकेश अग्निहोत्री, पहली बार मंत्री बने हर्षवर्धन चौहान, जगत सिंह नेगी और लोकनिर्माण मंत्री विक्रमादित्य सिंह सरकार की ढाल बने दिखाई दिए। खासकर मुकेश अग्निहोत्री ने मुख्यमंत्री की गैर-मौजूदगी और उनकी सदन में उपस्थिति पर भी विपक्ष पर तीखे हमले बोले। जिस तरह अग्निहोत्री 5 साल तक नेता प्रतिपक्ष के तौर पर पूर्व सरकार को घेरते रहे ठीक वैसे ही उन्होंने बजट सेशन में भी विपक्ष को आईना दिखाने में कमी नहीं छोड़ी । इंडस्ट्री मिनिस्टर एवं संसदीय कार्य मंत्री हर्षवर्धन चौहान भी सदन में सरकार की ढाल बने रहे और हर मसले पर विपक्ष के हमले पर तीखा पलटवार करते रहे। जगत सिंह नेगी और विक्रमादित्य सिंह भी अपने अंदाज़ में विपक्ष को आड़े हाथ लेते रहे। वहीँ फतेहपुर विधायक भवानी सिंह पठानिया के प्रदेश की आर्थिक स्थिति बेहतर करने को लेकर आए सुझाव सेंटर ऑफ़ अट्रैक्शन रहे।