अब सरकारी स्कूलों में पाठ्यक्रम में स्थानीय बोली भी होगी शामिल
हिमाचल प्रदेश एक बहुसांस्कृतिक और बहुभाषी राज्य है। सबसे ज्यादा बोली जाने वाली भाषाओं में से कुछ हिंदी और पहाड़ी है। हिमाचल प्रदेश के नौनिहालों को हिमाचल की स्थानीय बोलियों के बारे में जागरूक करने के लिए अब सरकारी स्कूलों में पढ़ाया जायेगा। इसका मकसद विद्यार्थियों को शुरुआत से स्थानीय बोलियों के प्रति जागरूक कर बोलियों को संरक्षित करना है। प्राथमिक स्तर पर नौनिहाल विभिन्न जिलों के प्रचलित शब्दों को जानेंगे। इसके लिए सभी जिलों के शिक्षा और प्रशिक्षण संस्थान ने मैपिंग भी शुरू कर दी है।
-बच्चों को मिलेगी हिमाचल संस्कृति कि जानकारी
विश्व भर में हिमाचल कि अपनी अलग ही पहचान है यहां कई तरह की बोलियां और लोक संस्कृति हैं। प्रदेश में अब तक नौनिहालों को स्कूलों में अन्य राज्यों का इतिहास पढ़ाया जाता है, जबकि हिमाचल के इतिहास की जानकारी न होने के कारण लोग इसे भूलते जा रहे हैं। इसलिए बच्चों को अगर हिमाचल की स्थानीय लोक संस्कृति और स्थानीय भाषा में पढ़ाया जाएगा तो उन्हें समझने में आसानी रहेगी और पढ़ने के साथ साथ अपनी संस्कृति की भी जानकारी मिलेगी।
प्रचलित वस्तुओं और शब्दों को किया जायेगा डिक्शनरी में शामिल :
प्राथमिक स्तर पर डाइट जो मैपिंग तैयार करेगा, उसमें लोक संस्कृति पर अधिक फोकस रखा जायेगा। इसमें एक डिक्शनरी तैयार कि जाएगी, जिसमें स्थानीय लोक संस्कृति अधिक रहेगी। डाइट को निर्देश दिए गए हैं कि स्थानीय प्रचलित वस्तुओं और शब्दों को डिक्शनरी में ज्यादा से ज्यादा डालें। जैसे कुल्लू शॉल, चंबा के रूमाल के बारे में बच्चों को पढ़ाने का प्रयास किया जाएगा। डिक्शनरी तैयार करने के लिए स्थानीय
लोगों की मदद भी ली जाएगी।
पक्ष :
नई शिक्षा नीति के तहत स्कूलों में शिक्षण सामग्री में बदलाव करने का प्रयास किया जा रहा है। बच्चों को प्राइमरी से ही स्थानीय लोक संस्कृति और बोली में कुछ पाठ पढ़ाए जाएंगे। इसके लिए डाइट अपने-अपने जिले में मैपिंग कर वहां की डिक्शनरी तैयार करेंगे। जिससे विद्यार्थियों को हिमाचली लोक संस्कृति के बारे में अवगत करवाया जाएगा।