महादेव के मुख से अमरकथा कथा सुन अमर हो गया कबूतरों का जोड़ा
हिमालय की गोदी में स्थित शिव शंकर महादेव को समर्पित अमरनाथ मंदिर हिंदुओं के प्रमुख तीर्थ स्थलों में से एक है, जिससे करोड़ों भक्तों की आस्था जुड़ी हुई है। जम्मू कश्मीर स्थित अमरनाथ की गिनती दुनियाभर में भोलेनाथ के प्रमुख तीर्थस्थलों में होती है। यहां मुख्य आकर्षण का केंद्र है अमरनाथ की गुफा। अमरनाथ की गुफा श्रीनगर से 141 किमी दूर 3888 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। गुफा की लंबाई 19 मीटर और चौड़ाई 16 मीटर है। साल भर ये स्थल बर्फ की सफ़ेद चादर से ढका रहता है। गर्मियों में जब यह बर्फ पिघलने लगती है, तो इस तीर्थ स्थल को कुछ समय के लिए श्रद्धालुओं के लिए खोला जाता है। अमरनाथ को तीर्थों का तीर्थ भी कहा जाता है, क्योंकि यहीं पर भगवान शिव ने अपनी दैवीय पत्नी पार्वती को जीवन और अनंत काल का रहस्य बताया था। पौराणिक कथा के अनुसार कहा जाता है कि इसी गुफा में माता पार्वती को भगवान शिव ने अमरकथा सुनाई थी, जिसे सुनकर सद्योजात शुक-शिशु शुकदेव ऋषि के रूप में अमर हो गये थे। गुफा में आज भी श्रद्धालुओं को कबूतरों का एक जोड़ा दिखाई दे जाता है, जिन्हें श्रद्धालु अमर पक्षी बताते हैं। वे भी अमर कथा सुनकर अमर हुए हैं। ऐसी मान्यता भी है कि जिन श्रद्धालुओं को कबूतरों को जोड़ा दिखाई देता है, उन्हें शिव पार्वती अपने प्रत्यक्ष दर्शनों से निहाल करके उस प्राणी को मुक्ति प्रदान करते हैं।
ये है पौराणिक मान्यता
अमरनाथ गुफा से जुड़ी एक पौराणिक मान्यता है कि भगवान शिव ने मां पार्वती को इस गुफा में एक ऐसी कथा सुनाई थी, जिसमें अमरनाथ की यात्रा और उसके मार्ग में आने वाले अनेक स्थलों का वर्णन था। यह कथा कालांतर में अमरकथा नाम से विख्यात हुई। कहा जाता है कि एक बार माता पार्वती ने महादेव से पूछा कि ऐसा क्यों है कि आप अजर-अमर है और आपके गर्दन में पड़ी नरमुंड की माला का रहस्य क्या है? इस पर महादेव ने पार्वती के सवाल का जवाब देना उचित नहीं समझा। इसलिए उन्होंने उस बात को टालने की कोशिश की, लेकिन पार्वती की जिद के कारण इस रहस्य को बताना स्वीकार किया। कहते हैं कि इस रहस्य को बताने के लिए भगवान शिव को एक एकांत जगह की आवश्यकता थी जिसकी तलाश करते हुए वो माता पार्वती को लेकर आगे बढ़ते चले गए। गुप्त स्थान की तलाश में महादेव ने अपने वाहन नंदी को सबसे पहले छोड़ा। नंदी जिस जगह पर छूटा उसे ही पहलगाम कहा जाने लगा। जहां से अमरनाथ यात्रा शुरू होती है। यहां से कुछ आगे जाने पर शिव जी ने अपने माथे से चंद्रमा को अलग कर दिया। जिस जगह पर उन्होंने चद्र्मा को छोड़ा वह जगह चंदनवाड़ी कहलाती है। इसके बाद भगवान शिव ने गंगा जी को पंचतरणी में और गले के सांपों को शेषनाग पर छोड़ दिया। जिस कारण इस पड़ाव का नाम शेषनाग पड़ा। अमरनाथ यात्रा का अगला पड़ाव गणेश टॉप है। मान्यता है कि इस स्थान पर शिव ने अपने पुत्र गणेश को छोड़ा था। इस प्रकार इन सभी को पीछे छोड़ने के बाद भगवान शिव ने माता पार्वती के साथ उस गुफा में प्रवेश किया। कोई भी तीसरा प्राणी इसमें प्रवेश न कर पाए इसलिए शिव ने गुफा के चारों ओर अग्नि को प्रज्ज्वलित कर दिया। इसके बाद महादेव ने जीवन के उस गूढ रहस्यों की कथा शुरू कर दी। कहते है कथा सुनते-सुनते देवी पार्वती को नींद आ गई थी। उस समय वो कथा वहां दो सफेद कबूतर सुन रहे थे। जब कथा समाप्त हुई और भगवान शिव का ध्यान माता पार्वती पर गया तो उन्होंने पार्वती जी को सोया हुआ पाया। तब महादेव की नजर उन दोनों कबूतरों पर पड़ी। इसे देखते ही महादेव को उन पर क्रोध आ गया। फिर दोनों कबूतर महादेव के पास आकार बोले कि हमने आपकी अमर कथा सुनी है, यदि आप हमें मार देंगे तो आपकी कथा झूठी हो जाएगी। कहते हैं कि इस पर महादेव ने उन कबूतरों को वर दिया कि वो सदैव उस स्थान पर शिव और पार्वती के प्रतीक के रूप में रहेंगे।
मुस्लिम गड़रिये ने की थी अमरनाथ गुफा की खोज
अमरनाथ गुफा की खोज के बारे में एक कथा प्रचलित है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार कहा जाता है कि अमरनाथ गुफा की खोज एक कश्मीरी मुसलमान ने की थी। इस व्यक्ति का नाम बूटा मलिक था। मलिक भेड़ चराने का काम करता था। एक दिन यह गड़रिया भेड़ें चराते-चराते बहुत दूर निकल गया। बर्फीले वीरान इलाके में पहुंचकर उसकी एक साधु से भेंट हो गई। साधु ने बूटा मलिक को कोयले से भरी एक पोटली दे दी। घर पहुंचकर उसने जब उस कोयले की पोटली को खोला तो उस पोटली से कोयले की जगह सोना निकला। यह देखकर बूटा मलिक काफी हैरान हुआ। वह साधु का धन्यवाद करने के लिए गया परंतु वहां साधु को न पाकर एक विशाल गुफा को उसने देखा। गड़रिया जैसे ही उस गुफा के अंदर गया तो उसने वहां पर देखा कि भगवान भोले शंकर बर्फ के बने शिवलिंग के आकार में स्थापित थे। इसके बाद उसने यह बात गांव के मुखिया को बताई और यह मामला वहां के तत्कालीन राजा के दरबार में पहुंचा। इस घटना के बाद से इस स्थान के महत्व के बारे में लोगों को मालूम हुआ और यहां लोगों का आना शुरू हो गया। तभी से यह स्थान एक तीर्थ बन गया। इतिहासकार गुफा की खोज के बारे में यह कहते हैं कि जिस बूटा मलिक ने इसकी खोज की थी वह मुसलमान नहीं था। उनके अनुसार, इस गुफा को खोजने वाला बूटा मलिक गुज्जर समाज से था। ये भी कहा जाता है कि इतनी ऊंचाई पर गड़रिया भेड़ चराने क्यों जाएगा, जहां ऑक्सीजन तक की कमी होती है। कुछ स्थानीय इतिहासकार यह भी मानते हैं कि 1869 के ग्रीष्मकाल में गुफा की फिर से खोज की गई और पवित्र गुफा की पहली औपचारिक तीर्थयात्रा 3 साल बाद 1872 में आयोजित की गई थी। इस तीर्थयात्रा में बूटा मलिक भी साथ थे। लेकिन, अमरनाथ यात्रा के बारे में अन्य साहित्य और जानकारी उपलब्ध है उसमें बूटा मलिक को मुसलमान बताया गया है। आश्चर्य की बात यह है कि अमरनाथ गुफा एक नहीं है। अमरावती नदी के पथ पर आगे बढ़ते समय और भी कई छोटी-बड़ी गुफाएं दिखती हैं। वे सभी बर्फ से ढकी हैं। एक और कहानी है कि कश्मीर घाटी पूरी तरह से पानी में डूबी हुई थी और कश्यप मुनि ने वहां नदियों का निर्माण किया और पानी कम होने के बाद घाटी का निर्माण हुआ। तदोपरांत भृगु मुनि घाटी के प्रवास पर गए जहाँ उन्होंने पवित्र अमरनाथ गुफा की खोज की।
अमरनाथ गुफा में बर्फ से बना है प्राकृतिक शिवलिंग
यहाँ की प्रमुख विशेषता पवित्र गुफा में बर्फ से प्राकृतिक शिवलिंग का निर्मित होना है। प्राकृतिक बर्फ से निर्मित होने के कारण इसे स्वयंभू हिमानी शिवलिंग भी कहते हैं। अमरनाथ गुफा चारों तरफ से कच्ची बर्फ से ढकी होती है। गुफा के अंदर मौजूद शिवलिंग पक्की बर्फ का होता है, जबकि गुफा में आमतौर पर कच्ची बर्फ ही होती है जो हाथ में लेते ही भुरभुरा जाती है। यह शिवलिंग पक्की बर्फ से किस तरह बनता है ये आज भी एक रहस्य बना हुआ है। मूल अमरनाथ शिवलिंग से कई फुट दूर गणेश, भैरव और पार्वती के वैसे ही अलग अलग हिमखंड हैं। गुफा की परिधि लगभग डेढ़ सौ फुट है और इसमें ऊपर से बर्फ के पानी की बूँदें जगह-जगह टपकती रहती हैं। यहीं पर एक ऐसी जगह है, जिसमें टपकने वाली हिम बूँदों से लगभग दस फुट लंबा शिवलिंग बनता है। यह पानी कहां से टपकता है, यह भी एक रहस्य ही बना हुआ है। कहते है कि चन्द्रमा के घटने-बढ़ने के साथ-साथ इस बर्फ का आकार भी घटता-बढ़ता रहता है। श्रावण पूर्णिमा को यह अपने पूरे आकार में आ जाता है और अमावस्या तक धीरे-धीरे छोटा होता जाता है।
पहलगाम से अमरनाथ यात्रा
पहलगाम जम्मू से 324 किलोमीटर की दूरी पर है। यह विख्यात पर्यटन स्थल भी है और यहाँ का नैसर्गिक सौंदर्य देखते ही बनता है। पहलगाम तक जाने के लिए जम्मू-कश्मीर पर्यटन केंद्र से सरकारी बस उपलब्ध रहती है। पहलगाम में गैर सरकारी संस्थाओं की ओर से लंगर की व्यवस्था की जाती है। तीर्थयात्रियों की पैदल यात्रा यहीं से आरंभ होती है। पहलगाम के बाद पहला पड़ाव चंदनबाड़ी है, जो पहलगाम से आठ किलोमीटर की दूरी पर है। पहली रात तीर्थयात्री यहीं बिताते हैं। यहाँ रात्रि निवास के लिए कैंप लगाए जाते हैं। इसके ठीक दूसरे दिन पिस्सू घाटी की चढ़ाई शुरू होती है। कहा जाता है कि पिस्सू घाटी पर देवताओं और राक्षसों के बीच घमासान लड़ाई हुई जिसमें राक्षसों की हार हुई। चंदनवाड़ी से आगे इसी नदी पर बर्फ का यह पुल सलामत रहता है। चंदनवाड़ी से 14 किलोमीटर दूर शेषनाग में अगला पड़ाव है। यह मार्ग खड़ी चढ़ाई वाला और खतरनाक है। यहीं पर पिस्सू घाटी के दर्शन होते हैं। अमरनाथ यात्रा में पिस्सू घाटी काफी जोखिम भरा स्थल है। यात्री शेषनाग पहुँच कर ताजा दम होते हैं। यहाँ पर्वत मालाओं के बीच नीले पानी की खूबसूरत झील है। इस झील में झांककर यह भ्रम हो उठता है कि कहीं आसमान तो इस झील में नहीं उतर आया। यह झील करीब डेढ़ किलोमीटर लंबाई में फैली है। किंवदंतियों के मुताबिक शेषनाग झील में शेषनाग का वास है और चौबीस घंटों के अंदर शेषनाग एक बार झील के बाहर दर्शन देते हैं, लेकिन यह दर्शन खुशनसीबों को ही नसीब होते हैं। तीर्थयात्री यहाँ रात्रि विश्राम करते हैं और यहीं से तीसरे दिन की यात्रा शुरू करते हैं। शेषनाग से पंचतरणी आठ मील के फासले पर है। मार्ग में बैववैल टॉप और महागुणास दर्रे को पार करना पड़ता हैं। यहाँ पांच छोटी-छोटी सरिताएँ बहने के कारण ही इस स्थल का नाम पंचतरणी पड़ा है। यह स्थान चारों तरफ से पहाड़ों की ऊंची-ऊंची चोटियों से ढका है। ऊंचाई की वजह से ठंड भी ज्यादा होती है। ऑक्सीजन की कमी की वजह से तीर्थयात्रियों को यहाँ सुरक्षा के इंतजाम करने पड़ते हैं। अमरनाथ की गुफा यहाँ से केवल आठ किलोमीटर दूर रह जाती हैं और रास्ते में बर्फ ही बर्फ जमी रहती है। यह रास्ता काफी कठिन है, लेकिन अमरनाथ की पवित्र गुफा में पहुँचते ही सफर की सारी थकान पल भर में छू-मंतर हो जाती है और अद्भुत आत्मिक आनंद की अनुभूति होती है।