इस दुर्लभ संगमरमर को लाने के लिए एक राजा ने दी थी अपने आठ पुत्रों की बलि
हिमाचल को देवभूमि यूं ही नहीं कहा जाता। यहां के तीर्थ स्थल और देवी देवताओं के मंदिर इस बात के गवाह हैं की भगवन स्वयं यहां बसते हैं। प्रदेश का कोई ऐसा जिला नहीं है जहां ऐतिहासिक मंदिर न हों। इन्ही में से एक मंदिर है चंबा का ऐतिहासिक लक्ष्मी नारायण मंदिर, जिसकी अनूठी निर्माण कला और उसका इतिहास लोगों में बरबस ही मंदिर की प्रति जिज्ञासा पैदा करता है।
कब हुआ था निर्माण?
चंबा क्षेत्र के सबसे पुराने मंदिरों में से एक, इस मंदिर का निर्माण 10वीं सदी में राजा साहिल वर्मन द्वारा करवाया गया था। राजा साहिल वर्मन ने इस मंदिर को 920 और 940 ई. के बीच अपने शासनकाल के दौरान बनवाया। मंदिर में कुल 6 श्राइन है जिसमें हिंदू देवताओं की मूर्ति स्थापित की गई हैं।
मंदिर परिसर में अन्य मंदिरों में शामिल राधा कृष्ण मंदिर का निर्माण रानी शारदा ने 1825 में करवाया था। वहीं चंद्रगुप्त का शिव मंदिर साहिल वर्मन व गौरी शंकर मंदिर को उनके पुत्र युगकर वर्मन ने बनवाया था।
मंदिर की खासियत
यह मंदिर शिखर शैली में निर्मित है। मंदिर में एक विमान और गर्भगृह है। मंदिर का ढांचा मंडप के समान है। मंदिर की छतरियां और पत्थर की छत इसे बर्फबारी से बचाती है। मंदिर के मुख्य द्वार पर विष्णु का वाहन गरुड़ की धातु की बनी प्रतिमा सुशोभित हो रही है।
मूलतः यह मंदिर भगवान विष्णु पर केंद्रित है। मंदिर में स्थित लक्ष्मी नारायण की मूर्ति दुर्लभ संगमरमर (marble) से बनी हुई है जिसे विंध्य पर्वत से यहाँ लाया गया था। इस मूर्ति के चार मुख और चार हाथ हैं। मूर्ति की पृष्ठभूमि में तोरण है, जिस पर दस अवतारों की लीला चित्रित की गई है।
मंदिर से जुड़ी धारणा
क्षेत्र में लोकप्रिय धारणा है कि राजा साहिल वर्मन ने संगमरमर लाने के लिए अपने आठ पुत्रों की बलि दी थी। अंत में उनके सबसे बड़े पुत्र, जिनका नाम युगकारा था, संगमरमर हासिल करने में सफल रहे। राजा पर भी लूटेरों ने हमला किया था पर एक संत की मदद से वह अपने आप को बचाने में सफल रहे।
इस मंदिर के बारे में एक और धारणा यह भी है की सबसे पहले ये मंदिर चंबा के चौगान में स्थित था परन्तु बाद में इसे वर्तमान स्थल पर स्थापित किया गया।