संत निरंकारी सत्संग भवन दाड़लाघाट में सत्संग का आयोजन

संत निरंकारी सत्संग भवन दाड़लाघाट में रविवार को सत्संग का आयोजन किया गया।इसमें स्थानीय सहित दूर-दराज के क्षेत्रों से आए श्रद्धालुओं ने महात्मा के प्रवचनों का श्रवण किया। सत्संग का शुभारंभ अवतार वाणी गायन से किया गया।इसके उपरांत मंच पर विराजमान सयोजक महात्मा शंकर दास निरंकारी ने अपने विचारों में कहा कि परमात्मा चौतन्य हैं, असीम हैं,सर्वत्र व्यापक हैं। शरीर सीमित है,मन,बुद्धि सीमित है।आत्मा किसी एक शरीर से बंधी नहीं है। सारी भिन्नता शरीरगत है,मानसिक है। राजा जनक को जब सतगुरु ब्रड्डवेता अष्टावक्र से ब्रह्मज्ञान की प्राप्ति हुई तो अष्टावक्र ने कहा कि तू शरीर नहीं है,व्यापक आत्मा है। इसलिए तू सर्वदा मुक्त है।यह मुक्ति पाना तेरा स्वभाव है।इसे पाना नहीं है,यह उपलब्ध ही है। केवल जाग कर देखना मात्र है।परमेश्वर को पाने वाला भटक जाता है,खोजने पर परमात्मा नहीं मिलता। परमात्मा को पाना है तो पूर्ण गुरु को खोजना पड़ेगा।निरंकार परमात्मा की शरण में जाने से इनसान वह सब कुछ पा लेता है,जो कि उसे पाने में असंभव लगता है।उन्होंने कहा कि निरंकारी मिशन में सबसे पहले सतगुरु द्वारा ब्रह्मज्ञान की दिव्य लौ मानव के मन में जगाई जाती है। इसके उपरांत मानव को सेवाएं सुमिरन व सत्संग के साथ जोड़ा जाता है। जब मानव इन भावों को मानकर जीवन जीने की पद्धति को अपनाता है तो गुरु कृपा के कारण मानव के मन में उत्पन्न होने वाले विकार धीरे-धीरे समाप्त होते चले जाते हैं। इससे पूर्व अन्य अनुयायियों ने विचारों और भजनों के माध्यम से निरंकारी मिशन का प्रचार एवं गुणगान किया। इस मौके पर पर काफी संख्या में निरंकारी समुदाय के अनुयायियों ने उपस्थित रहे। अंत मे लंगर का भी आयोजन किया गया।