कांगड़ा : 13 साल से बिस्तर पर है विनोद, एक्सीडेंट में रीढ़ पर आई थी चोट
मनोज कुमार
ग्राम पंचायत धमेड़ का का विनोद कुमार 13 वर्ष बिस्तर पर है। इस अपंगता ने उसकी सारी खुशियों और अमन चैन पर ग्रहण लगा दिया है। वर्ष 2009 में एक सड़क दुर्घटना में रीड़ की हड्डी में चोट आने पर वह इस हालात तक पहुंच गया है। आलम यह है कि वर्तमान में वह 100 प्रतिशत अपंगता से जूझ रहा है। दिल्ली के स्पाइन सर्जन डॉ. सुदीप जैन के अनुसार रीढ़ की हड्डी यानी स्पाइनल कॉर्ड नसों (नव्र्स) का वह समूह होता है, जो दिमाग का संदेश शरीर के अन्य अंगों तक पहुंचाता है। ऐसे में यदि स्पाइनल कॉर्ड में किसी भी प्रकार की चोट लग जाए या फिर किसी भी कारण से स्पाइनल कॉर्ड के ऊपरी हिस्से में कोई समस्या हो जाए, तो यह पूरे शरीर के लिए बेहद घातक अवस्था मानी जाती है।
वहीं यदि स्पाइनल कॉर्ड के निचले हिस्से में चोट लगी है, तो ऐसे पीडि़त व्यक्ति को लकवा लग सकता है। इस स्थिति में शरीर का निचला हिस्सा काम करना बंद कर देता है। इसे मेडिकल भाषा में पैराप्लेजिया कहते हैं। इसके अलावा अधिकतर रोगियों में कुछ समस्याएं भी देखने को मिलती हैं जैसे - मांसपेशियों में कमजोरी, हाथ-पैर और सीने की मांसपेशियों में हरकत न होना सांस लेने में तकलीफ। इसके साथ साथ शरीर की निष्क्रियता से अन्य रोग भी जन्म ले लेते हैं।
विनोद को पिछले टैस्ट के अनुसार पत्थरी और ब्लड शूगर की समस्या हो गई है। कांगड़ा के स्टोन स्पेशलिस्ट मेडिकल सुविधाओं कमी और पेचीदा केस के चलते ऑपरेशन करने के लिए तैयार नहीं। इतना होने पर भी इन गंभीर शारीरिक चुनौतियों का हंसकर सामना करते विनोद कुमार बातचीत में हंसमुख व्यवहार रखते हैं। किसी प्रकार की मदद के लिए पूछे जाने पर विनोद आत्मसम्मान से मना करते हैं लेकिन सरकार की तरफ इशारा करते हुए कहते हैं कि अपंगता पैंशन से परिवार का गुजारा नहीं हो सकता। दुर्घटना के समय एक वर्ष का मेरा बेटा अब पंद्रह वर्ष का हो रहा है। पढ़ाई के खर्च, मेरी दवाइयों के खर्च, घर के खर्च एवं सामाजिक जिम्मेदारियां निभाना दिन-प्रतिदिन मुश्किल होता जा रहा है। घर के मुखिया के साथ ऐसी अनहोनी होने पर सरकार को ऐसे मामलों में आश्रित महिलाओं के लिए नौकरियों में कोई प्रावधान करना चाहिए। ऐसी परिस्थिति से गुजरते परिवार के हौसले की दाद दी जानी चाहिए और ईश्वर से प्रार्थना है कि ऐसी अनहोनी किसी के साथ न हो।