100 साल में तीन बार प्रतिबंध, सिर्फ 6 प्रमुख...जाने RSS का इतिहास
राष्ट्रिय स्वयंसेवक संघ अपने 100 साल पुरे कर चूका हैं। 2014 में केंद्र में भारती जनता पार्टी की सरकार बने के बाद से संघ का राजनैतिक प्रभाव कई गुना बढ़ गया हैं। संघ के इतिहास, हिन्दू राष्ट्र बनाने पर जोर और अल्पसंख़्यको के प्रति अपने रवैये को लेकर RSS पर सवाल उठते रहे हैं। 27 सितंबर 1925 में दशहरे के दिन नागपुर में डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार ने RSS की नींव रखी थी। RSS एक हिन्दू राष्ट्रवादी संगठन हैं, इसकी पहली शाखा संघ के पांच स्वयंसेवकों के साथ शुरू की गई थी। अपने गठन के बाद राष्ट्र की अवधारणा पर संघ ने खूब ध्यान खींचा। सावरकर की हिंदुत्व की अवधारणा का भी संघ की विचारधारा पर भरपूर असर रहा। पांच स्वयंसेवकों के साथ शुरू हुआ संघ अपने 100 साल के सफर में बेहद मजबूत हो चूका है। संघ का खूब विस्तार हुआ है, संघ ने कई अनुषांगिक संगठन खड़े किए हैं और आज देश में 83 हज़ार शाखाएं चलती है। इससे भी अहम् बात ये है कि संघ का पोलिटिकल विंग यानी भारतीय जनता पार्टी आज देश की सबसे मजबूत पार्टी है। बेशक संघ खुद को गैर राजनैतिक करार दें, लेकिन उसे राजनीति से अलग नहीं रखा जा सकता।
RSS की स्थापना के बाद हेडगेवार खुद तो कांग्रेस के नेतृत्व में चल रहे कई आंदोलनों में शामिल हुए लेकिन उन्होंने संघ को इससे दूर रखा। गांधी जी के नेतृत्व में शुरू हुए दांडी मार्च, यानी सविनय अवज्ञा आंदोलन में उन्होंने हिस्सा लिया, मगर संघ को इससे दूर रखा। 21 जून 1940 को डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार की मृत्यु हो गई और उनके बाद संघ की कमान आई माधवराव सदाशिवराव गोलवलकर के हाथ। दरअसल हेडगेवार चिट्ठी के जरिये गोलवलकर को उत्तराधिकारी नामित कर गए थे। इस तरह गोलवलकर यानी 'गुरुजी' सरसंघचालक बने। 1940 से लेकर 1973 तक, यानी अपनी देह छोड़ने तक उन्होंने संघ का नेतृत्व किया। दिलचस्प बात ये है कि उनकी मृत्यु के बाद भी एक चिट्ठी के आधार पर अगला उत्तराधिकारी चुना गया। स्वयंसेवकों के नाम तीन चिट्ठियां खोली गई थी और इनमें से एक में अगले सरसंघचालक के रूप में बाला साहब देवरस का नाम था। देवरस 1993 तक सरसंघचालक रहे और उनके दौर में ही राम मंदिर आंदोलन पर सवार हो संघ के राजनैतिक विंग भाजपा मजबूत हुई। इसके बाद प्रोफेसर राजेंद्र सिंह उर्फ़ रज्जु भैया 1993 से 2000 तक, के एस सुदर्शन 2000 से 2009 तक और वर्ष 2009 से अब तक मोहन भागवत ने संघ की कमान संभाली। 100 साल के इतिहास में संघ का नेतृत्व सिर्फ 6 लोगों ने किया है।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पर तीन बार लगा प्रतिबंध
RSS पर पहली बार महात्मा गांधी की हत्या के बाद प्रतिबन्ध लगाया गया था। 30 जनवरी 1948 को दिल्ली के बिड़ला हाउस में महात्मा गाँधी की हत्या कर दी गई और उनकी हत्या करने वाला था नाथूराम गोडसे। अहिंसा के पुजारी गाँधी की इस हत्या ने पूरी दुनिया को झकझोर कर रख दिया। इसकी साज़िश रचने का शक RSS पर था और नतीजन बापू की हत्या के 5 दिन बाद यानी 4 फरवरी 1948 को सरकार ने RSS पर बैन लगा दिया। संघ के तत्कालीन सरसंघचालक एमएस गोलवलकर और प्रमुख नेता बाला साहब देवरस समेत कई कार्यकर्ता गिरफ्तार कर लिए गए।
RSS का कहना था कि उनका इसमें कोई हाथ नहीं है लेकिन शक के आधार पर कार्रवाई हुई। बाद में जब पुलिस जांच की रिपोर्ट आई तब उसमें कहा गया कि महात्मा गांधी की हत्या में RSS का कोई हाथ नहीं है, लेकिन तब इस रिपोर्ट को सार्वजनिक नहीं किया गया। उधर गांधी जी की हत्या और उसके बाद लगे प्रतिबंधों के कारण संघ के अंदर भी मतभेद शुरू हो गए थे और लगने लगा कि संघ टूट जाएगा। कहते है RSS और सरकार के बीच बातचीत भी हुई और संघ की ओर से स्पष्ट कहा गया कि यदि प्रतिबन्ध नहीं हटाया गया तो वे राजनीतिक पार्टी बना लेंगे। आखिरकार 11 जुलाई 1949 को सरकार ने संघ पर से सशर्त प्रतिबंध हटा लिया। प्रतिबंध हटाने की शर्त यह थी कि, आरएसएस किसी भी प्रकार की राजनीतिक गतिविधियों में हिस्सा नहीं लेगा और खुद को सांस्कृतिक गतिविधियों तक सीमित रखेगा। प्रतिबंध हटने के बाद RSS ने सीधे तौर पर तो राजनीति में हिस्सा नहीं लिया लेकिन 1951 में श्यामा प्रसाद मुखर्जी के नेतृत्व में जनसंघ नाम की पार्टी बना दी गई। फिर 1980 में इसी जनसंघ के लोगों ने ही भारतीय जनता पार्टी का गठन किया।
इमरजेंसी के दौर में लगा दूसरी बार प्रतिबंध
साल 1975 के जून महीने में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी को बड़ा झटका लगा था। दरअसल इलाहबाद हाई कोर्ट का निर्णय इंदिरा गाँधी के खिलाफ आया और उनकी लोकसभा सदस्यता रद्द हो गई। साथ ही अदालत ने अगले 6 साल तक उनके कोई भी चुनाव लड़ने पर रोक लगा दी, ऐसी स्थिति में इंदिरा गांधी के पास राज्यसभा जाने का रास्ता भी नहीं बचा था। हालांकि अदालत ने कांग्रेस पार्टी को थोड़ी राहत देते हुए नया प्रधानमंत्री बनाने के लिए तीन हफ्तों का वक्त दे दिया था। इंदिरा गांधी ने तय किया कि वे 3 हफ़्तों की मिली मोहलत का फायदा उठाते हुए इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देंगी। पर कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि वे इलाहाबाद हाई कोर्ट के फैसले पर पूर्ण रोक नहीं लगाएंगे। सुप्रीम कोर्ट ने इंदिरा को प्रधानमंत्री बने रहने की अनुमति तो दे दी ,लेकिन कहा कि वे अंतिम फैसला आने तक सांसद के रूप में मतदान नहीं कर सकतीं। इस बीच 25 जून को दिल्ली के रामलीला मैदान में जयप्रकाश नारायण ने इंदिरा गांधी के ऊपर देश में लोकतंत्र का गला घोंटने का आरोप लगाया और सिंहासन खाली करो कि जनता आती है का नारा बुलंद किया। जयप्रकाश ने अपील कि वे लोग इस दमनकारी निरंकुश सरकार के आदेशों को ना मानें। इसी रैली के आधार पर इंदिरा ने आपातकाल 25 जून 1975 को लागू किया और यह आपातकाल 21 मार्च 1977 तक चला।
जाहिर सी बात है कि RSS भी आपातकाल के खिलाफ मुखर था। बाला साहब देवरस RSS के सरसंघचालक बन चुके थे। आपातकाल में तमाम विपक्षी नेताओं को गिरफ्तार किया जा रहा था और सरसंघचालक बाला साहब देवरस भी गिरफ्तार कर लिए गए। संघ के कार्यकर्ता भी बड़ी संख्या में गिरफ्तार किए गए। इसके बाद 4 जुलाई 1975 को सरकार ने RSS पर एक बार फिर प्रतिबंध लगा दिया।जब इमरजेंसी हटी और चुनाव हुए, तो इंदिरा गांधी की हार हुई और विपक्षी एकता के नाम पर बनी जनता पार्टी सत्ता में आई। जनता पार्टी ने सत्ता में आते ही RSS पर से प्रतिबंध हटा लिया।
बाबरी विध्वंस के बाद लगा तीसरी बार प्रतिबन्ध
1980 में भारतीय जनता पार्टी का गठन हुआ और RSS अब अपने पोलिटिकल विंग को सत्ता के शीर्ष पर देखना चाहता था। भाजपा ने 1984 का लोकसभा चुनाव लड़ा लेकिन केवल 2 सीटों पर सिमट गई। संघ और भाजपा समझ चुके थे कि माध्यम मार्गी होकर सफलता नहीं मिलेगी। इस बीच राजीव गाँधी सरकार ने फरवरी 1986 में अयोध्या के विवादित परिसर का ताला खोल दिया और मंदिर-मस्जिद की राजनीति शुरू हो गई। यहां से भाजपा और RSS ने अयोध्या राम मंदिर के मुद्दे को लपक लिया और देखते ही देखते ये देश का सबसे बड़ा मुद्दा बन गया। 1986 से 1992 के बीच राम मंदिर मुद्दे पर खूब टकराव, हिंसा हुई और हज़ारों लोगों की जानें गई। 6 दिसंबर 1992 को अयोध्या में उन्मादी भीड़ ने विवादित ढांचे का गुंबद गिरा दिया। इस घटना से अंतरराष्ट्रीय पटल पर भारत की धर्मनिरपेक्ष छवि धूमिल हुई और देश में कई जगह हिंसा हुई। इस प्रकरण में RSS और भाजपा के शामिल होने की बात कही जाने लगी। आखिरकार तत्कालीन प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव ने यूपी समेत 4 राज्यों की भाजपा सरकारों को बर्खास्त कर दिया और 10 दिसंबर 1992 को RSS पर तीसरी बार प्रतिबन्ध लगा। फिर जांच हुई और सीधे तौर पर RSS के खिलाफ कुछ नहीं मिला और 4 जून 1993 को सरकार को RSS पर से प्रतिबंध हटाना पड़ा।
शस्त्र पूजन करते है स्वयंसेवक
हर साल विजयादशमी का पर्व बड़ी धूमधाम से बनाया जाता है इस दिन शस्त्र पूजन का विधान है। ये प्रथा कोई आज की नहीं है बल्कि सनातन धर्म से ही इस परंपरा का पालन किया जाता है। इस दिन शस्त्रों के पूजन का खास विधान है। ऐसा माना जाता है कि क्षत्रिय इस दिन शस्त्र पूजन करते हैं। इस दौरान संघ के सदस्य हवन में आहुति देकर विधि-विधान से शस्त्रों का पूजन करते हैं। संघ के स्थापना दिवस कार्यक्रम में हर साल शस्त्र पूजन खास रहता है। बताते हैं, राक्षसी प्रवृति के लोगों के नाश के लिए शस्त्र धारण जरूरी है। सनातन धर्म के देवी-देवताओं की तरफ से धारण किए गए शस्त्रों का जिक्र करते हुए एकता के साथ ही अस्त्र-शस्त्र धारण करने की हिदायत दी जाती है। शस्त्र पूजन में भगवान के चित्रों के सामने शस्त्र रखते हैं। दर्शन करने वाले बारी-बारी भगवान के आगे फूल चढ़ाने के साथ शस्त्रों पर भी फूल चढ़ाते हैं।
गुरु की जगह भगवा ध्वज को किया स्थापित
RSS में 1928 में गुरु पूर्णिमा के दिन से गुरु पूजन की परंपरा शुरू हुई। जब सब स्वयं सेवक गुरु पूजन के लिए एकत्र हुए तब सभी स्वयंसेवकों को यही अनुमान था कि डॉक्टर साहब की गुरु के रूप में पूजा की जाएगी। लेकिन इन सारी बातों से इतर डॉ. हेडगेवार ने संघ में व्यक्ति पूजा को निषेध करते हुए प्रथम गुरु पूजन कार्यक्रम के अवसर पर कहा कि संघ ने अपने गुरु की जगह पर किसी व्यक्ति विशेष को मान न देते हुए परम पवित्र भगवा ध्वज को ही सम्मानित किया है। इसका कारण है कि व्यक्ति कितना भी महान क्यों न हो, फिर भी वह कभी भी स्थिर या पूर्ण नहीं होता।
संघ में शाखा एक महत्वपूर्ण हिस्सा
शाखा संगठन की आधारभूत इकाई हैं जो उसे जमीनी स्तर से जोड़े रखती हैं। RSS के अनुसार भारत में संघ की 83 हज़ार शाखाएं हैं। शाखा में सदस्यों को वैचारिक और शारीरिक रूप से प्रशिक्षित किया जाता हैं। यह शाखाएं हर दिन सुबह के समय होती हैं तो कभी शाम को चलाई जाती हैं, कुछ जगहों पर यह शाखाएं हफ्ते के कुछ दिन चलती है। शाखा में शारीरिक व्यायाम और खेलो के साथ टीम वर्क और नेत्तृत्व कौशल सुधरे के लिए गतिविधियां करवाई जाती हैं, मार्चिंग और आत्मरक्षा की भी गतिविधियां करवाई जाती हैं। संघ के मुताबिक सुबह-शाम संघ की शाखाओं में भाग लेने बाला व्यक्ति RSS का सदस्य बन जाता हैं।
RSS का महिला संगठन
महिलाएं RSS की सदस्य नहीं बन सकती। RSS का कहना हैं कि व्यावहारिक सीमाओं को देखते हुए केवल हिन्दू पुरुषों को ही प्रवेश की इजाज़त दी गई थी। जब हिन्दू महिलाओं के लिए भी इस तरह के संगठन की जरुरत महसूस की गई, तो महाराष्ट्र के वर्धा की एक सामाजिक कार्यकर्त्ता लक्ष्मीबाई केलकर ने हेडगेवार से मिलकर विचार-विमर्श किया और 1936 में राष्ट्रीय सेविका समिति शुरू करने का फैसला किया गया। संघ का कहना हैं कि RSS और राष्ट्रीय सेविका समिति का एक ही उदेश्य था, इस लिए महिलाएं राष्ट्रीय सेविका समिति में शामिल हो सकती हैं।
